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कांग्रेस पार्टी में हो क्या रहा है? क्या यह बड़े तूफान की आहट है?

कांग्रेस में लगातार कांग्रेस में कभी बड़े-बड़े मंत्रालय संभालने वाले और बड़े-बड़े पदों पर रहे नेताओं का कांग्रेस के अंदरूनी मामलो पर मीडिया में आकर बयान देने का सिलसिला जारी है.
कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता और पिछले दिनों मीडिया में आई चिट्ठी को लिखने वालों में प्रमुख नाम रहे गुलाम नबी आजाद ने फिर से एक बार मीडिया में आकर कांग्रेस की अंदरूनी बातों पर बयान बाजी की है. गुलाम नबी आजाद का इस बार कहना है कि फाइव स्टार होटल में बैठकर चुनाव नहीं लड़े जाते. उनका कहना है कि कांग्रेस के नेता आम लोगों से पूरी तरीके से कटे हुए हैं और पार्टी में पांच सितारा संस्कृति घर कर गई है.
आजाद ने एक बार फिर से संगठनात्मक ढांचे में आमूल चूल परिवर्तन का आह्वान किया है. बिहार में निराशाजनक प्रदर्शन किया कांग्रेस ने, उसके ठीक बाद गुलाम नबी आजाद ने मीडिया में आकर कांग्रेस की अंदरूनी बातों पर अपनी राय फिर से रखी है.बिहार में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें उसे केवल 19 सीटों पर जीत मिली.
गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि ब्लॉक से लेकर जिला और राज्य स्तर तक चुनाव कराकर पार्टी के ढांचे में आमूल चूल परिवर्तन की तत्काल जरूरत है. गुलाम नबी आजाद ने इसके साथ ही कहा है कि कांग्रेस के नेताओं को कम से कम चुनावों के दौरान पांच सितारा संस्कृति छोड़ देनी चाहिए. गुलाम नबी आजाद ने इसके साथ ही कहा है कि मैं “विद्रोही” नहीं हूं मैं “सुधारवादी” हूं और इसी के रूप में मुद्दे उठा रहा हूं.
गुलाम नबी आजाद से कुछ सवाल
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने बिल्कुल सही राय दी है, लेकिन उन्हें और भी कुछ सवालों के जवाब देने चाहिए. कपिल सिब्बल की तरफ से कहा गया कि उनको बिहार में प्रचार नहीं करने दिया गया जो कि बेबुनियादी आरोप है. लेकिन गुलाम नबी आजाद तो बिहार में पार्टी के स्टार कैंपेनर थे, गुलाम नबी आजाद ने बिहार के अंदर पार्टी को मजबूती देने के लिए, जनता को कांग्रेस से जोड़ने के लिए कितनी चुनावी रैलियां की? कितनी नुक्कड़ सभाएं की? कार्यकर्ताओं की कितनी बैठकें ली?
कार्यकर्ताओं के बीच बैठकर कितने दिन गुलाम नबी आजाद ने उनका मनोबल बढ़ाया, उनके साथ अपना एक्सपीरियंस शेयर किया? चिट्ठी लिखने वाले तमाम नेताओं के साथ-साथ गुलाम नबी आजाद भी यूथ कांग्रेस में होने वाले चुनाव का विरोध करते थे और आज अचानक ब्लॉक और जिला लेवल पर पार्टी के अंदरूनी चुनाव की वकालत कर रहे हैं, ऐसा क्यों? जब युवा अवस्था में कार्यकर्ताओं के बीच आपसी स्पर्धा करा कर उनमें नया जोश भर के चुनाव करने की प्रक्रिया राहुल गांधी ने शुरू की थी, उस समय तो आप लोग राहुल गांधी की पार्टी के अंदर छोटे से छोटे लेवल पर और बड़े से बड़े लेवल पर चुनाव कराने की जायज कोशिशों का विरोध करते थे, फिर आज अचानक आप में यह बदलाव क्यों आया? कहीं ऐसा तो नहीं कि मीडिया में आकर बयान बाजी करने की, पार्टी की अंदरूनी बातों को सार्वजनिक करने की आप की पुरानी आदतें जा नहीं रही है?
गुलाम नबी आजाद को गोवा से लेकर हरियाणा, तमिलनाडु तथा दूसरे अन्य राज्यों का जिम्मा जब दिया गया था, प्रभारी बनाया गया था, उस समय गुलाम नबी आजाद ने जिन-जिन राज्यों की जिम्मेदारी संभाली या जिन जिन राज्यों का उन्हें प्रभारी बनाया गया था, उन-उन राज्यों में संगठन लेवल पर कितने चुनाव कराए या फिर चुनाव कराने की वकालत उस समय की थी? गुलाम नबी आजाद को जब अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी दी गई थी, बड़े-बड़े पदों से नवाजा गया था उस समय गुलाम नबी आजाद ने पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए अपनी तरफ से क्या-क्या प्रयास किया यह सभी बातें गुलाम नबी आजाद ने मीडिया के समक्ष क्यों नहीं रखी?
पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कांग्रेस पार्टी के अंदर बदलाव. पहले कहीं कांग्रेस किसी राज्य में चुनावी जीत होती थी या फिर चुनाव होने वाले होते थे तो गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस आलाकमान की तरफ से उन राज्यों की जिम्मेदारी दी जाती थी, ताकि वहां पर वह अपने अनुभव के आधार पर, अनुभव के दम पर कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाएं या फिर कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनाएं. पिछले कुछ सालों में लगातार देखा गया है कि जहां भी गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस आलाकमान की तरफ से जिम्मेदारी दी गई, कांग्रेस की सरकार बचाने की या फिर बनाने की उसमें यह वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नाकाम रहे. क्या उस समय यह पांच सितारा पॉलिटिक्स नहीं कर रहे थे?
जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनाने की जिम्मेदारी इन नेताओं को दी गई थी, क्या उस समय यह नेता पांच सितारा पॉलिटिक्स से हटकर कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उनकी राय लेते थे? अपना अनुभव साझा करते थे? क्या उस समय पांच सितारा होटल की पॉलिटिक्स पर पैसा बर्बाद नहीं होता था? कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले कुछ समय से गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की जगह रणदीप सुरजेवाला सहित दूसरे कांग्रेसी नेताओं को अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी दी जा रही है और यह बदलाव गुलाम नबी आजाद के साथ-साथ दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसियों को ठीक नहीं लग रहा है, इस कारण मीडिया में आकर ऐसी बयानबाजी इनकी तरफ से हो रही है?
बदलाव होने चाहिए
बिल्कुल कांग्रेस पार्टी के अंदर चुनाव होने चाहिए. ब्लॉक लेवल से लेकर जिला स्तर तक और राज्य स्तर तक चुनाव की प्रक्रिया में होनी चाहिए. पार्टी के हर स्तर पर ब्लॉक से लेकर जिला लेवल तक और युथ कांग्रेस में भी चुनावो की शुरुआत राहुल गांधी के आने के बाद हुई थी. राहुल गांधी ने लगातार इन चुनावी प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाया और इनकी वकालत की. राहुल गांधी लगातार कहते रहे कि कांग्रेस पार्टी के अंदर हर लेवल पर चुनाव होना चाहिए, कार्यकर्ताओं को आगे लाना चाहिए, उस समय राहुल गांधी की बातों का समर्थन गुलाम नबी आजाद के साथ-साथ तमाम वरिष्ठ कांग्रेसी क्यों नहीं करते थे?
आज गुलाम नबी आजाद सरीखे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मीडिया में आकर पार्टी की अंदरूनी बातों को सार्वजनिक करके कहीं ना कहीं पार्टी की छवि को मीडिया के माध्यम से जनता के बीच धूमिल करने का काम कर रहे है. गुलाम नबी आजाद सरीखे वरिष्ठ नेताओं को बताना चाहिए की हाल ही में संपन्न हुए राज्यों के चुनाव में या फिर उपचुनाव में अपनी तरफ से पार्टी को जिताने के लिए, संगठन को मजबूत करने के लिए, कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई के लिए, जनता को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने के लिए क्या प्रयास किया? जब आपको जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा रहा है, आपको कुछ समय के लिए पार्टी की तरफ से आराम देकर किसी दूसरे राज्य में किसी दूसरे व्यक्ति को जिम्मेदारी दे दी जा रही है तो वह जिम्मेदारी आपको पांच सितारा होटल की पॉलिटिक्स लग रही है और जब आप खुद वही काम कर रहे थे उस समय सब कुछ ठीक था?
पांच सितारा पॉलिटिक्स V/S मीडिया पॉलिटिक्स
जब आपको जिम्मेदारी दी गई और पार्टी हार गई या फिर किसी राज्य में आप पार्टी की बनी बनाई सरकार नहीं बचा पाए, तब आपने मीडिया में आकर बयानबाजी नहीं की और अब किसी दूसरे को जिम्मेदारी का एहसास कराया जा रहा है, जिम्मेदारी दी जा रही है तो आप मीडिया में आकर पार्टी के मसले पर पार्टी के अंदरूनी गतिविधियों पर, सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं. यह तो आप जैसे वरिष्ठ नेताओं द्वारा पार्टी के साथ की जा रही गद्दारी हुई, क्योंकि पार्टी ने आपको बहुत कुछ दिया है, जिम्मेदारियां मिली, बहुत से पदों से भी नवाजा और आज आप पार्टी को ही कटघरे में खड़ा करके मीडिया के माध्यम से शीर्ष नेतृत्व की छवि धूमिल करने का काम कर रहे हैं. सुधारवाद के समर्थक है तो पार्टी मीटिंग में सुझाव दीजिये, किसने रोका?
जब कांग्रेस पार्टी की सरकार केंद्र में थी उसी समय युवाओं के बीच रहकर जनता के बीच रहकर अपने एसी कमरों को छोड़कर कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने की जरूरत थी, ताकि कांग्रेस की सरकार केंद्र में बनी रहे. लेकिन गुलाम नबी आजाद सरीखे के वरिष्ठ नेताओं ने यह काम नहीं किया. गुलाम नबी आजाद के सुझाव का स्वागत होना चाहिए कांग्रेस पार्टी के अंदर. लेकिन खुद पांच सितारा होटल वाली पॉलिटिक्स करने वाले गुलाम नबी आजाद को यह बातें पार्टी के अंदर शीर्ष नेतृत्व के सामने पार्टी मीटिंग में करनी चाहिए ना कि मीडिया में आकर.
पार्टी को पांच सितारा पॉलिटिक्स छोड़ने का सुझाव देने वाले गुलाम नबी आजाद खुद मीडिया पॉलिटिक्स कर रहे हैं. यह कहां तक जायज है? गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की मोडिया पॉलिटिक्स ही कांग्रेस के जनता से कटने की बड़ी वजह रही है और आज भी गुलाम नबी आजाद सरीखे वरिष्ठ नेता मीडिया पॉलिटिक्स ही कर रहे हैं, यह कतई पार्टी हित में नहीं है.
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