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मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत के बाद क्या बदलने वाला है?

मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत (Mahapanchayat) में दावा किया जा रहा है कि लगभग 20 लाख किसानों ने शिरकत की. संख्या कितनी थी यह तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन इतना जरूर है कि यह महापंचायत अभूतपूर्व थी. काफी भीड़ थी, इतनी भीड़ की ऐसी भीड़ प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में भी कभी दिखाई नहीं दे.
मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत (Mahapanchayat) के मंच से अल्लाह हू अकबर और हर-हर महादेव के नारे एक साथ लगाए गए. मुजफ्फरनगर में मंच से लगाए गए इन नारों का खास महत्व है. मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के दम पर, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लेकर ही एक पार्टी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई थी. प्रचंड बहुमत देने में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा हाथ था और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अंदर ही मुजफ्फरनगर पड़ता है.
मुजफ्फरनगर में हुए हिंदू-मुस्लिम (Hindu-Muslim) दंगों ने निश्चित तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूत किया था. कल हुई महापंचायत में लाखों की भीड़ के बीच हिंदू-मुस्लिम एकता के ऐसे ऐसे नारों ने कहीं ना कहीं बीजेपी को जरूर परेशान किया होगा, बीजेपी के रणनीतिकारों को चिंता में जरूर डाला होगा.
कुछ ही दिनों पहले उत्तर प्रदेश बीजेपी के टि्वटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया था, जिसमें एक कार्टून पोस्ट किया गया था. कार्टून के अंदर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक किसान का सर पकड़कर घसीटते हुए ले जा रहे हैं. कार्टून में किसान को राकेश टिकैत बताया गया था. किसानों ने मुजफ्फरनगर में लाखों की भीड़ इकट्ठी करके पंचायत की और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरी बीजेपी को बड़ा संदेश भी दे दिया है कि किसान डरने वाले नहीं है.
जिस तरीके से मुजफ्फरनगर में मंच से हिंदू-मुस्लिम एकता के नारे लगे हैं, अगर यही एकता चुनाव तक कायम रही, तो निश्चित तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह पुलिस प्रशासन के दम पर लोगों की आवाज दबाने की कोशिश करती है आलोचना करने वालों को F.I.R और मुकदमों के दम पर डराने की कोशिश की जाती है.
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल और केंद्र की मोदी सरकार की तरह ही उत्तर प्रदेश की सरकार भी झूठे विज्ञापनों के दम पर झूठे पोस्टर और बैनर ओं के दम पर खुद को नंबर वन बताती रही है. उत्तर प्रदेश की सरकार विदेशी मीडिया संस्थानों को पैसे देकर विज्ञापन देती है और फिर उसी विज्ञापन के सहारे प्रचारित करवाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार की तारीफ विदेशी मीडिया संस्थानों तक में हो रही है.
मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में यह बात साफ हो चुकी है कि अब किसान लामबंद हो चुके हैं. अब किसानों का यह आंदोलन तीनों कृषि बिलों के साथ-साथ देश बचाने का भी है. राकेश टिकैत ने खुलकर यह बात कही है कि सरकारी संस्थाओं को बेचा जा रहा है, यह सरकार उद्योगपतियों के हाथों चलाई जा रही है. सरकारी संस्थाएं प्राइवेट हो रही है, सरकारी रोजगार इससे खत्म होंगे और बेरोजगारी बढ़ेगी. अब यह आंदोलन कृषि बिलों से ऊपर उठकर पूरे देश की समस्याओं पर केंद्रित हो चुका है.
अगर देश के बेरोजगार युवा अपनी मांगों को जोड़ते हुए इस आंदोलन से जुड़ जाते हैं. महिला सुरक्षा को लेकर महिलाएं इस आंदोलन से जुड़ जाती हैं. छोटे दुकानदार और व्यापारी, जिनके काम धंधे ठप हो चुके हैं, वह भी अपनी समस्याओं को लेकर इस आंदोलन से जुड़ जाते हैं. इसके साथ साथ देश का बुद्धिजीवी वर्ग इस आंदोलन में जुड़े हुए लोगों की आवाज को मजबूती दे देता है तो कहीं ना कहीं यह आंदोलन एक विकराल रूप ले लेगा और यह आंदोलन कहीं ना कहीं देश की आवाज बन जाएगा और यह वह आवाज होगी जो मोदी सरकार को सुननी ही पड़ेगी.
इसके साथ साथ इस आंदोलन से मध्यम वर्ग भी बहुत जल्द जुड़ता हुआ दिखाई देगा. क्योंकि पेट्रो- डीजल और एलपीजी की बढ़ी हुई कीमतों का असर हर वस्तु पर पड़ रहा है और इसका साइड इफेक्ट मध्यमवर्ग पर दिखाई देने लगा है. यह सरकार पेट्रोल डीजल और एलपीजी की कीमतों को लेकर ही आई थी. इसके साथ-साथ 2014 से पहले की सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे और रामदेव जैसे व्यापारियों ने चंद उद्योगपतियों और RSS के इशारे पर भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर आंदोलन किया था जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ था.
आज अन्ना हजारे और रामदेव जैसे व्यापारी देश की जनता की समस्याओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. अन्ना हजारे और रामदेव जैसे लोग आज देश की जनता के सामने एक्सपोज हो चुके हैं. वह आंदोलन भी पूरी तरीके से एक्सपोज हो चुका है जो कांग्रेस के खिलाफ हुआ था. लेकिन आज किसान अपनी मूलभूत समस्याओं को लेकर सड़कों पर हैं, सरकार द्वारा उद्योगपतियों के हित में लाए गए कृषि से जुड़े हुए कानूनों के विरोध में सड़कों पर है. इसके साथ-साथ देश का अलग-अलग वर्ग अगर इस आंदोलन से जुड़ जाता है तो कहीं ना कहीं यह आंदोलन इस सरकार को कुर्सी से उखाड़ कर फेंक सकता है.
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