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सरकारी स्कूल में अपने खर्च पर लागू की अलग यूनिफॉर्म व टाई- बेल्ट की व्यवस्था, एक करोड़ से विकास करवाने पर सरकार ने दिया भामाशाह अवार्ड

सीकर/शिश्यू. शिक्षक का काम केवल शिक्षा देना ही नहीं, उसके लिए अनुकूल वातावरण बनाना भी है। ताकि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके। फिर बात दो कुल को रोशन करने वाली बेटियों की हो तो संजीदगी ज्यादा होनी चाहिए। इसी भावना के साथ शहर की शास्त्री नगर निवासी नयन कंवर शेखावत रानोली की राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक स्कूल के कायाकल्प में जुटी है। निजी स्कूल की तर्ज पर वह स्कूल में अपने वेतन से दो लाख रुपए खर्च कर टाई-बेल्ट, जूते व आईकार्ड के साथ अलग यूनिफार्म लागू कर चुकी है। वहीं, इंग्लिश स्पोकन सरीखे प्रयोगों के अलावा भामाशाहों के सहयोग से स्कूल में एक करोड़ रुपए का विकास कार्य करवाकर राज्य सरकार के भामाशाह सम्मान से भी नवाजी जा चुकी है।
नींव अभियान से प्रेरणा लेकर लागू की अलग यूनिफॉर्मनयन कंवर रानोली स्कूल में 2014 में प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्त हुई थी। इसी बीच राजस्थान पत्रिका का नींव अभियान शुरू हुआ। जिससे प्रेरणा पाकर नयन कंवर ने निजी स्कूलों को टक्कर देते हुए अपने स्तर पर ही बच्चों के लिए अलग यूनिफॉम लागू कर दी। टाई- बेल्ट, जूते व आईकार्ड सहित छात्राओं को यूनिफॉर्म उपलब्ध करवाने के लिए अपने वेतन से दो लाख रुपए खर्च किए। साथ ही इंग्लिश स्पोकन की विशेष कक्षाएं भी शुरू करवाई। नई यूनिफॉर्म सरकार द्वारा नई यूनिफॉर्म लागू नहीं होने तक चार साल तक जारी रही।
एक करोड़ से बनवाया स्कूल भवन, मिला भामाशाह सम्मान
संयोग से नयन कंवर के प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के साथ ही बालिका स्कूल भी उच्च माध्यमिक स्कूल में क्रमोन्नत हो गया। जिसमें विज्ञान विषय खुल गया। ऐसे में नए भवन की आवश्यकता होने पर नयन कंवर ने भामाशाहों से संपर्क किया तथा करीब एक करोड़ की लागत से विशाल कमरों वाला नया भवन तैयार करवाया। पांच लाख की लागत से फर्नीचर व अत्याधुनिक लैब जैसी सुविधाएं भी छात्राओं को उपलब्ध करवाई। इस उपलब्धी के चलते नयन कंवर को 2019 में राज्य सरकार का भामाशाह सम्मान पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। सीसीटीवी कैमरे लगवा रही नयन कंवर अब स्कूल की वेबसाइट बनाने की तैयारी भी कर रही है।
70 से 500 तक पहुंचाया नामांकन, अब खेल मैदान के लिए संघर्षबालिका स्कूल में नयन कंवर की नियुक्ति के समय सिर्फ 70 बच्चों का नामांकन था। जो उनकी मेहनत व नवाचारों से अब 500 तक पहुंच गया है। लॉकडाउन काल में भी ऑनलाइन कक्षाओं का बखूबी संचालन करवा चुकी प्रधानाचार्य अब बालिकाओं के खेल मैदान के लिए भी संघर्ष कर रही है। इसके लिए वह रात्रि चौपाल में कलक्टर से मिलने के अलावा स्थानीय राजनेताओं से भी संपर्क कर रही है।

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