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जो दिख रहा है वह है नहीं, कैसे मजबूत हो रही है कांग्रेस?

बीजेपी समर्थक मीडिया में चारों तरफ यही दिखाया जा रहा है कि कांग्रेस की अंतर कलह अब खुलकर सामने दिखाई दे रही है. कांग्रेस के अंदरूनी मसलों पर अगर कोई कांग्रेस का नेता सवाल खड़े कर रहा है तो मीडिया उसे खूब हाईलाइट कर रहा है.
जो नेता कांग्रेस के नेतृत्व पर, कांग्रेस की गतिविधियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं, मीडिया उन नेताओं को उस वक्त तवज्जो नहीं देता जब वह मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर सवाल खड़े करते हैं. लेकिन जैसे ही वह अपनी ही पार्टी पर सवाल खड़े करते हैं. मीडिया उन्हें हरिश्चंद्र साबित करने लगता है. क्योंकि वह कांग्रेस के खिलाफ लगने लगते हैं. दरअसल कांग्रेस के अंदर जो कुछ भी चल रहा है और जो कुछ भी मीडिया में दिखाया जा रहा है वह इस बात का सबूत है कि राहुल गांधी और उनकी टीम मजबूती के साथ आने वाले हैं.
जो कांग्रेस के नेता मीडिया में कांग्रेस के खिलाफ बयान बाजी कर रहे हैं दरअसल वह राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते और उन्हें भी अब लगने लग गया है कि राहुल गांधी एक बार फिर कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले हैं. कपिल सिब्बल और तमाम चिट्ठीबाज नेता जो दिल्ली में रहकर मीडिया में कांग्रेस की अंदरूनी खबरों को लीक करके समय-समय पर सुर्खियों में बने रहते हैं, वह तथाकथित कद्दावर नेता अपने-अपने प्रदेशों में जाकर कांग्रेस को मजबूत करने के लिए जमीनी संघर्ष क्यों नहीं कर रहे हैं? क्यों नहीं अपने-अपने प्रदेशों में जाकर भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ रहे हैं. क्यों दिल्ली में बैठे हुए हैं?
इंदिरा राजीव युग की वापसी
इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के छत्रपो पर गजब की नकेल कसी जाती थी कोई भी छत्रप नेतृत्व के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं दिखा पता था कोई भी छत्रप अपनेे आपको नेतृत्वव से बड़ा समझने की भूल नहींं करता था. इंदिरा और राजीव के वक्त क्षेत्रीय नेताओं के अंदर इस बात का डर रहता था कि अगर पार्टी को अंदरूनी तौर पर कमजोर करने की कोशिश की या पार्टी को ब्लैकमेल करने के लिए मीडिया में आकर बयान बाजी की तो कड़े फैसले लिए जा सकते हैं. क्षेत्रीय नेताओं में यह डर सोनिया गांधी के राज में पूरी तरीके से खत्म हो गया था.
क्षेत्रीय नेता अपने-अपने तरीके से सोनिया गांधी को बातों में उलझाए रखते थे. अपनी कुर्सी बचाने के लिए, अपना पद बचाने के लिए वह लगातार राज्यों में कांग्रेस को कमजोर करते गए. नेतृत्व तैयार होने नहीं दिया, खुद को ही आगे रखने की कोशिश में पीढ़ियों को पनपने नहीं दिया और कांग्रेस को कमजोर करते गए, पंजाब किसका उदाहरण है. प्रदेश स्तर के नेताओं के अंदर से यह डर खत्म हो गया था कि अगर हम मनमानी करेंगे, दूसरों को दबाएंगे, पार्टी हारे चाहे भी तो खुद को ही आगे रखेंगे तो नेतृत्व कड़े फैसले भी ले सकता है.
लेकिन राहुल गांधी अध्यक्ष ना रहते हुए भी जिस तरीके की राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दे रहे हैं वह काबिले तारीफ है. राहुल गांधी ने पंजाब से कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर यह साबित कर दिया कि राहुल गांधी का नेतृत्व कमजोर नहीं है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें पद से हटाया जा सकता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस तरह वह पंजाब में एक अलग ही खुद की कांग्रेस चला रहे थे, दिल्ली आलाकमान की बातों को लगातार अनसुना कर रहे थे, 1 दिन राहुल गांधी इस तरीके का फैसला ले सकते हैं.
राहुल गांधी ने पंजाब में जो करके दिखाया है उसका असर दूर तलक दिखाई देगा. चाहे वह राजस्थान हो, हरियाणा हो, दिल्ली हो, मध्य प्रदेश हो या फिर छत्तीसगढ़ हो या कोई दूसरा प्रदेश, कोई भी क्षेत्रीय नेता, कोई भी प्रदेश स्तर का नेता जो लंबे समय से कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व को लगातार ब्लैकमेल करता रहा है, ऐसे नेता अब सचेत हो जाएंगे और ऐसे नेताओं के अंदर अब इस बात का डर बैठ जाएगा कि नेतृत्व कभी भी कड़े फैसले ले सकता है. कांग्रेस 2014 के बाद लगातार चुनाव हारती रही है. इस बात का श्रेय मीडिया द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दिया गया.
जबकि हकीकत यही है कि कांग्रेस लड़ाई बीजेपी से नहीं, प्रधानमंत्री मोदी से नहीं बल्कि खुद से हार रही है. राहुल गांधी ने 2019 लोकसभा चुनाव की हार के लिए खुद को जिम्मेदार बताते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त उन्होंने कई तरह की बातें की थी कांग्रेस की अंदरूनी गतिविधियों को लेकर. हकीकत यही है कि कांग्रेस के अंदर कई पुराने नेता ऐसे हैं जो सोचते हैं कि कांग्रेस चुनाव हारती चली जाए कोई फर्क नहीं पड़ता है. बस कांग्रेस के अंदर उनका पद बचा रहना चाहिए या फिर किसी प्रदेश में जो जिम्मेदारी दी गई है उसका निर्वहन ईमानदारी से भले ना हो रहा हो, लेकिन वह पद उनका बचा रहना चाहिए. कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण यही है.
कपिल सिब्बल और तमाम इनके साथी जो लंबे समय से कांग्रेस में बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं, कांग्रेस के नेतृत्व की सरकारों में कई मंत्रालय भी संभाले हैं, अब वक्त है राहुल गांधी के नेतृत्व में इनके कामों का ऑडिट हो. इन्होंने कांग्रेस के अपने इतने लंबे सफर में कांग्रेस से लिया क्या है कांग्रेस को दिया क्या है, इस बात का ऑडिट करके जानकारियां सार्वजनिक की जाए.
यह जो नेता समय-समय पर मीडिया में आकर कांग्रेस के खिलाफ बयान बाजी करते हैं और अपने आप को कांग्रेस का शुभचिंतक भी बताते हैं, इनसे जानकारी मांगी जाए, यह अपने-अपने प्रदेशों में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए, कांग्रेस का संगठन तैयार करने के लिए पिछले 6-7 सालों क्या-क्या किया है या फिर अगर इन्हें अलग-अलग प्रदेशों का प्रभारी बनाया गया है, जैसे गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक का प्रभारी बनाया गया, कांग्रेस को कितना मजबूत किया?
एक पत्रकार राहुल गांधी को लाइव चैनल पर गाली देती है तो कोई G-23 का सदस्य मीडिया में या फिर सोशल मीडिया पर उसका विरोध करते हुए दिखाई नहीं देता, राहुल गांधी के साथ खड़ा होते हुए दिखाई नहीं देता. लेकिन कपिल सिब्बल के घर के बाहर कांग्रेस के कार्यकर्ता फूल लेकर प्रदर्शन करते हैं तो कपिल सिब्बल के साथियों को बुरा लगता है ट्वीट पर ट्वीट करते हैं. इसको क्या माना जाए? गांधी परिवार की इमेज की परवाह नहीं है?
दरअसल अब कांग्रेस नीचे नहीं जाएगी बल्कि ऊपर आएगी. क्योंकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मिलकर वह सभी फैसले कर रहे हैं जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था और उन्हीं फैसलों की छटपटाहट है जो दिखाई दे रही है कपिल सिब्बल और तमाम चिट्ठीबाज नेताओं में. जितने भी G-23 के सदस्य हैं सभी बिना मेहनत के बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं. जनता के बीच उनका जनाधार भी नहीं है, लेकिन यह कांग्रेस के हर फैसले में शामिल होना चाहते हैं और राहुल गांधी प्रियंका गांधी इसी बात का विरोध कर रहे हैं. असर दिखाई देगा जो कांग्रेस के लिए सकारात्मक होगा.
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