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बंगाल चुनाव की तैयारियों के बीच जेपी नड्डा के UP दौरे के क्या हैं मायने?

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी एक साल का वक्त बचा हुआ है. इससे पहले बंगाल में चुनाव होना है. लेकिन UP में सभी पार्टियों ने ताकत लगाना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में आज भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिवसीय यूपी के दौरे पर आए हैं.
यूपी दौरे पर वह सरकार और संगठन के साथ-साथ विधायक और सांसदों से भी मुलाकात करेंगे. चुनावी वर्ष होने के कारण जेपी नड्डा का यह दौरा 2022 विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की तैयारियों का आगाज माना जा रहा है. ऐसे में जेपी नड्डा के UP आने के क्या मायने हैं? चुनावी वर्ष में कैबिनेट विस्तार की चर्चा क्यों हो रही है और इसके दूरगामी परिणाम क्या होने हैं? IAS से रिटायर्ड एके शर्मा अब MLC बन गए हैं. भाजपा को उनसे क्या फायदा होगा?
बीते 4 साल की सरकार में मुख्यमंत्री योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच खींचतान देखने को मिली. जबकि विधानसभा के भीतर 200 से ज्यादा विधायकों के बीच नाराजगी भी दिखी. ऐसे में इन सबके बीच समन्वय बनाने की जिम्मेदारी भी नड्डा पर होगी. पिछले 6 सालों का ट्रेंड देखा जाए तो पता चलता है कि जिस राज्य में भी चुनाव होता है, वहां भाजपा एक साल पहले से ही चुनाव की तैयारियों में लग जाती है. जिन राज्यों में उसकी सरकार है, वहां विशेष फोकस सरकार और संगठन के कामकाज को लेकर रहता है. यूपी वैसे भी सभी दलों की प्राथमिकता में रहता है. ऐसे में चुनावी वर्ष में जेपी नड्डा का यूपी के दो दिवसीय दौरे पर आना यूपी के महत्व का अंदाजा बताता है.
जेपी नड्डा सरकार और संगठन से जुड़े लोगों की परफॉरमेंस की रिपोर्ट तो लेंगे ही, साथ ही साथ इस समय कृषि बिल का जो मुद्दा चल रहा है और सरकार गांव-गांव अपने कार्यकर्ताओं को भेज रही थी तो यूपी में उसका क्या फीडबैक है? उसका भी जायजा लेंगे. शीर्ष नेतृत्व यहां सबको नए सिरे से जिम्मेदारियां बांट कर भी जाएगा, ताकि अगस्त-सितंबर तक सरकार और संगठन चुनाव के लिए तैयार हो सके. जिसके बाद यह पूरी ताकत से मैदान में उतर सकेंगे. जेपी नड्डा प्रमुख 4 पॉइंट्स पर फोकस करेंगे. विधानसभा चुनाव के लिए सरकार और संगठन कितना तैयार है? गिले-शिकवे भुला कर सबको एक जुट करना. सबके बीच एक समन्वय स्थापित करना, ताकि चुनाव के दौरान मतभेद सामने न आ सके. सबके बीच जिम्मेदारियों का बंटवारा करना.
सीएम योगी पर चुनावी वर्ष में क्या फर्क पड़ेगा?
जब 2017 में सरकार बनी थी, तब एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर योगी को सीएम बनाया गया था. योगी एक ऐसे नेता थे, जिनकी छवि ठाकुर नेता की न होकर हिंदूवादी लीडर की थी. ऐसे में 4 साल सीएम की कुर्सी पर बिठाकर इस चुनावी वर्ष में उनका दायरा कम किया जाए, इसकी उम्मीद कम ही है. योगी के जरिए भाजपा ने अपने हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ावा दिया है. यही वजह रही कि कैबिनेट में कभी भी किसी जाति विशेष का प्रभुत्व नहीं बन पाया. अब योगी ठाकुर जरूर हैं, लेकिन कैबिनेट में ठाकुर बाहुल्यता नहीं है. इसी तरह अन्य जातियों का भी संतुलन रखा गया है.
हालांकि बीते 4 साल में सीएम योगी पर जाति विशेष के उत्पीड़न का आरोप भी लगा है तो उसे अपने ऊपर उन्होंने हावी नहीं होने दिया है. जब विकास दुबे कांड के बाद ब्राह्मण उत्पीड़न का आरोप लगा तो उसके बाद सरकार ने मुख्तार, अतीक और आजम पर भी कार्रवाई की और अब धनन्जय सिंह सरकार के टारगेट पर हैं. अभी हाल ही में हुई ब्लाक प्रमुख पति की हत्या मामले उनका नाम आया है. दरअसल, भाजपा योगी को किसी जाति के साथ नहीं जोड़ना चाहती है, भाजपा योगी को और मजबूत करना चाहती है. क्योंकि 4 साल सरकार चलाने के बाद योगी की छवि इतनी मजबूत हो गई है कि अब योगी के अलावा कोई दमदार विकल्प संगठन के सामने नहीं है.
कैबिनेट विस्तार से क्या फर्क पडेगा?
जेपी नड्डा के आने से पहले ही यूपी में भाजपा सरकार चुनावी वर्ष में अपना आखिरी कैबिनेट विस्तार भी कर सकती है. इससे पहले सिर्फ दो विस्तार ही हुए हैं, जोकि पिछले 15 सालों में सबसे कम विस्तार किसी सरकार में हुए हैं. जेपी नड्डा के जाने के बाद कैबिनेट विस्तार संभव है. जिसके लिए दो मानदंड बनाए गए हैं. पहला जो मंत्री सुस्त है और बेहतर रिजल्ट नहीं दे पा रहे हैं. जबकि दूसरा वे मंत्री जिनके साथ कुछ विवाद जुड़ा हुआ है. ऐसे लोगों को हटाने से पहले नड्डा यह भी देखेंगे कि चुनावी वर्ष में यह कितना नुकसान कर सकते हैं. इसके बाद ही कोई फैसला लेंगे.
चुनावी वर्ष में कैबिनेट विस्तार का मतलब यही होता है कि पार्टी से जुड़े लोगों को संतुष्ट करना. बीते उपचुनावों में घाटमपुर विधानसभा से उपेंद्र पासवान को टिकट दिया गया था. उपेंद्र भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता थे. जब उन्हें टिकट दिया गया तब उनके पास चुनाव लड़ने के भी पैसे नहीं थे. लोगों ने मदद की तब वह चुनाव लड़ सके. इससे साफ है कि कैबिनेट विस्तार में उनको जरूर मौका दिया जाएगा जो वर्षों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं. जिससे यह संदेश भी दिया जा सके कि पार्टी नेपोटिज्म में नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं में विश्वास करती है.
चुनावी वर्ष में कैबिनेट से किसी को हटाने का काम भाजपा नहीं करेगी, क्योंकि इससे नकारात्मक मैसेज जाता है जिसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. अभी 54 कैबिनेट मिनिस्टर हैं. जबकि 6 की गुंजाइश अभी है. इसी तरह राज्य मंत्री का दर्जा देकर भी पार्टी कार्यकर्ताओं को संतुष्ट किया जा सकता है. कैबिनेट विस्तार में जाति का संतुलन यूपी में हमेशा ही बनाया जाता है. भाजपा भी इससे अछूती नहीं है. जब ओम प्रकाश राजभर को कैबिनेट मंत्री पद से हटाया गया तो अनिल राजभर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. वर्तमान परिस्थितियों में देखा जाए तो चर्चा है कि विकास दुबे कांड के बाद ब्राह्मण सरकार से नाराज हैं. ऐसे में कैबिनेट में किसी ब्राह्मण नेता को समायोजित किया जा सकता है.
IAS से रिटायर होकर MLC बने एके शर्मा का क्या रोल होगा?
अभी कुछ दिनों पहले सीएम योगी ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. उनके दिल्ली से लौटने के बाद ही IAS से रिटायर हुए एके शर्मा की यूपी में चर्चा शुरू हो गयी. दअरसल, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सीएम योगी को फूल हैंड देना चाहता है. अभी सामने बंगाल चुनाव है. जहां योगी की डिमांड बहुत ज्यादा रहेगी. तब चुनावी वर्ष में योगी का सरकार और प्रदेश पर फोकस कर पाना मुश्किल होगा. ऐसे में अरविंद शर्मा को भेजा गया है, जोकि सरकार और संगठन दोनों जगह अपनी निगाह रखेंगे. पीएम पहले भी परफॉर्म करने वाले ब्यूरोक्रेट और टेक्नोक्रेट को पॉलीटिक्स में लाते रहे हैं.
केंद्र में हरदीप सिंह पुरी और विदेश मंत्री एस जयशंकर इसके उदाहरण हैं. ऐसे में एके शर्मा को सीएम का हैंड बना कर एक रणनीति के तहत भेजा गया है. शर्मा सरकार और संगठन से नाराज लोगों की पहचान कर उनसे समन्वय स्थापित करने का काम करेंगे. कैबिनेट विस्तार में भी उन्हें गृह और नियुक्ति एवं कार्मिक जैसे विभाग भी दिए जा सकते हैं. हालांकि आमतौर पर यह विभाग सीएम के पास ही होते हैं, लेकिन शर्मा को यह विभाग देकर उनके महत्व को दर्शाया जा सकता है. ऐसे में एके शर्मा को सिर्फ और सिर्फ सीएम योगी को मजबूत करने के लिए ही भेजा गया है.
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