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क्या हो रहा है और क्या होने वाला है पंजाब कांग्रेस में?

मीडिया में जो खबरें आ रही है उसके अनुसार आज पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के लिए बड़ा दिन है. कांग्रेस आलाकमान के आदेश पर मेन स्ट्रीम मीडिया शाम 5:00 बजे चंडीगढ़ में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई है. लेकिन इस होने वाली बैठक से पहले ही बड़ी खबर आ गई है.
सूत्रों से निकलकर जो जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कह दिया है. वही यह भी बताया जा रहा है कि आज कांग्रेस विधायक दल की बैठक से सीएम अमरिंदर नाराज हैं.
जो जानकारी सूत्रों के माध्यम से आ रही है उसके मुताबिक नाराज कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी से बातचीत भी की है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरफ से कहा गया है कि बिना रायमशवरा के विधायक दल की बैठक बुलाया जाना अपमानजनक है. कैप्टन से नाराज चल रहे 40 विधायकों ने हाईकमान को चिट्ठी भेजकर बैठक बुलाने की मांग की थी.
आज अमरिंदर सिंह के भविष्य पर भी फैसला होना है. माना जा रहा है कि आज की कांग्रेस विधायक दल की बैठक में यह फैसला हो जाएगा कि अमरिंदर चुनाव तक पंजाब के सीएम बने रहेंगे या नहीं. इससे पहले हरीश रावत ने कहा था कि आगामी चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में ही लड़ा जाएगा.
लेकिन जो सूत्रों से निकलकर जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने बोल्ड डिसीजन ले लिया है और शायद कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए. हालांकि नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना कम है. क्योंकि जो राहुल गांधी के अभी तक के फैसले रहे हैं उसके मुताबिक अध्यक्ष को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया है.
वहीं दूसरी तरफ मेन स्ट्रीम मीडिया का भी इस पूरे मसले पर दोहरा रवैया देखने को मिल रहा है. कुछ दिन पहले ही बीजेपी ने अपना गुजरात का पूरा मंत्रिमंडल मुख्यमंत्री के साथ बदल दिया था. उसको मेन स्ट्रीम मीडिया मोदी और शाह का मास्टर स्ट्रोक बता रहा था.
लेकिन पंजाब में जो कांग्रेस के अंदर हो रहा है उसको अंदरूनी कला मीडिया के द्वारा बताया जा रहा है. बीजेपी पिछले कुछ महीनों में कई राज्यों के मुख्यमंत्री बदल चुकी है लेकिन मीडिया के लिए वह मास्टर स्ट्रोक था. और कांग्रेस के अंदर अगर ऐसा कोई फैसला होता है या फिर विधायक दल की बैठक होती है तो मीडिया के लिए यह अंदरूनी कलह और कांग्रेस की आपसी फूट है.
महत्वाकांक्षा की लड़ाई
यह महत्वाकांक्षा की लड़ाई है. सिद्धू एक पापुलर चेहरा हैं और वे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. वहीं, कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हें यह मौका देने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. इसी वजह से यह विवाद इतना बढ़ गया है. पंजाब में अमरिंदर के विरोधी भी सेलिब्रिटी चेहरे के तौर पर सिद्धू के साथ खड़े दिख रहे हैं. सिद्धू का आरोप है कि कैप्टन अकाली दल (बादल) के नेताओं के खिलाफ नरमी दिखा रहे हैं. 2017 के चुनावों से पहले तो उन्होंने 2015 के गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी के मामले में आरोपियों को जेल में डालने का वादा किया था, पर कैप्टन इसमें नाकाम रहे.
इसी तरह रोजगार और नशाखोरी रोकने में भी कैप्टन पर सिद्धू के तीखे आरोप हैं. इस दौरान कैप्टन के विरोधी विधायक और मंत्री भी सिद्धू के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इसमें कैप्टन के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वाले सुखजिंदर रंधावा और राजिंदर सिंह बाजवा जैसे मंत्री ऐसे हैं जो कभी मुख्यमंत्री के खास माने जाते थे. सिद्धू ने विरोध में बिगुल फूंका तो यह दोनों भी सक्रिय हो गए. इस तरह कैप्टन की सभी निगेटिव फोर्सेस साथ काम कर रही हैं.
पंजाब के पॉलिटिकल एनालिस्ट कहते हैं कि दोनों के बीच वैचारिक मतभेद हैं. दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते. दोनों के ही रिश्ते तल्ख रहे हैं. सिद्धू 2004 से 2014 तक अमृतसर से सांसद रहे. इस दौरान 2002-2007 तक अमरिंदर के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के सिद्धू कटु आलोचक रहे थे. 2014 के चुनावों में भाजपा ने सिद्धू के बजाय अमृतसर से अरुण जेटली को मैदान में उतारा था और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें हराकर भाजपा से यह सीट जीत ली थी. 2014 के चुनावों में टिकट न मिलने से सिद्धू भाजपा से नाराज थे और खबरें चल रही थीं कि वे आम आदमी पार्टी या कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं.
पंजाब प्रदेश अध्यक्ष बनते ही सिद्धू ने विधायकों की मीटिंग बुलाई. दावा किया कि 70 विधायक उनके साथ हैं. कैप्टन को हटाने की मुहिम शुरू की. उधर, कैप्टन भी सक्रिय हुए. महलों में रहने वाले कैप्टन ने फार्म हाउस और अन्य जगहों पर विधायकों से मिलना शुरू किया. उनके खिलाफ मुखर हो रहे एक मंत्री के दामाद को दो दिन पहले कैबिनेट मीटिंग में फैसला कर सरकारी नौकरी दी गई है. यानी हरसंभव कोशिश है कि विधायक उनके साथ बने रहें.
कई विधायक ऐसे हैं जो दोनों की बैठकों में जा रहे हैं. ऐसे में नंबर पर कयास लगाना ठीक नहीं हैं. हाईकमान सक्रिय हुआ तो कई विधायक ऐसे हैं जो पांच-छह महीने के लिए विधायकी छोड़ने का रिस्क नहीं उठाना चाहेंगे. 2017 के चुनावों में 117 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 77, आम आदमी पार्टी के 20, अकाली दल के 15 और भाजपा के 3 विधायक जीतकर आए थे. ऐसे में अगर पार्टी टूटी तो आप और अकाली दल के विधायकों का रुख महत्वपूर्ण हो जाएगा.
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