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कंगाली में गीला आटा!

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सीकर. सरकार भले ही लाखों रुपए खर्च कर हाईटेक खेती बढ़ाने का दावा करे लेकिन हकीकत यह है कि रसायनों के बढ़ते प्रयोग से बंजर होने के कगार तक पहुंच रही ‘कोख’ का रखवाला ही नहीं है। इसकी बानगी यह है कि सीकर जिले में किसानों से सीधा संवाद रखने वाले कृषि पर्यवेक्षकों के १५ फीसदी पद खाली हैं। नतीजतन एक पर्यवेक्षक के पास चार से पांच ग्राम पंचायतों का भार है। किसान और कृषि विभाग के बीच सेतु का काम कृषि पर्यवेक्षक करता है, लेकिन लम्बे समय से यह संवाद टूटा हुआ है। एेसे में न तो किसानों को फसलों में लगने वाली बीमारियों की रोकथाम की सलाह मिल पा रही है और ना ही ही सरकारी योजनाओं की जानकारी किसानों तक समय पर पहुंच पा रही है। जानकारों के अनुसार सटीक जानकारी के अभाव में हर पंचायत के करीब ७८ फीसदी किसान अनजाने में ही रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं। जिससे भूमि के पोषक तत्व असंतुलित हो रहे हैं। गौरतलब है कि जिले में रबी सीजन में करीब पौने तीन लाख और रबी सीजन में पांच लाख से ज्यादा किसान खेती करते हैं।
दुकानदार ही बन गए सलाहकार
जिले में खाद बीज और कीटनाशकों की ४५० से ज्यादा दुकानें हैं। खाद-बीज की दुकानों के लिए लाइसेंस लेने की अनिवार्यता है लेकिन अधिकांश दुकानों के कस्बा और ग्रामीण क्षेत्र में होने के कारण इन पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। एेसे दुकानदारों की सलाह पर ही किसान कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। इससे एकबारगी उत्पादन तो बढ़ जाता है लेकिन मिट्टी की उर्वरा क्षमता गिर रही है।
यों बिगाड़ी सेहत
करीब एक दशक पहले केन्द्र सरकार की ओर से प्रदेश में हुए खेतों की मिट्टी परीक्षण के दौरान अधिकांश नमूनों में जिंक की कमी मिली। यह कमी पूरा करने के लिए विभाग की ओर से जिप्सम डालने की अनुशंषा की गई और जिप्सम के हर बैग पर ५० प्रतिशत तक अनुदान दिया गया। जिस कारण किसानों ने जिप्सम का अंधाधुंध प्रयोग किया। जिंक की पूर्ति तो हो गई लेकिन आयरन की कमी हो गई। जिसका नतीजा यह रहा कि फसलों की सही तरीके से बढ़वार नहीं हो पाती।
यों समझिए कृषि में पर्यवेक्षकों की पद रिक्तता
पं.स. स्वीकृत कार्यरत रिक्तफतेहपुर १७ ०५ १२लक्ष्मणगढ २८ १७ ११धोद २८ १८ १०पिपराली २३ १८ ०५दांतारामगढ़ ३४ ३३ ०१

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