चातुर्माससमय बलवान है, इसका महत्व समझें : स्वामी दिव्येशरामप्रतापगढ़. यहां रामद्वारा में चातुर्मास कर रहे रामस्नेही संत दिव्येशराम ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि समय बड़ा बलवान होता है। सदैव इसका महत्व समझना चाहिए। जीवन में हर कार्य समय पर करेंगे तो ही हमारे जीवन का औचित्य है। समय पर उठाना,भोजन, भजन, शिक्षा प्राप्त करना, धार्मिक स्थलों से जुडऩा, अपने हर सामाजिक और धार्मिक कार्यो को समय पर करना चाहिए।संत ने कहा कि ‘टाइम इज मनी’ यह कहावत वर्षो से प्रचलित है। समय निकलने के बाद कार्य करने पर विफलता ही हाथ लगती है। इसलिए कोई भी आयोजन हो तो समय पर अपनी उपस्थिति दें। इससे उसका पूरा लाभ मिल सके। स्वामी दिव्येशराम ने कहा कि इस ब्रह्मांड में केवल मनुष्य ही दान,भजन और धर्म कर सकता हैं परन्तु हम सभी सांसारिक भोग में लगे हुए हैं। मानसिक प्रेम सबसे बड़ा होता हैं मन से पुण्य करने की सोच ले तो कलयुग में यही सबसे श्रेष्ठ है। भगवान की मानसिक पूजा सबसे अच्छी हैं क्योंकि यह दोष रहित हैं। उन्होंने ‘सुमिरन क्यो नी करे रे मन सुमिरन क्यों नी करे’ भजन गाया। जिसका सभी भक्तों ने आनंद लिया। रामद्वारा ट्रस्ट के हितेष राजसोनी ने बताया कि कथा के बाद संत की पूजा,आरती,भोजन और प्रसाद के लाभार्थी राजेश सोलंकी परिवार रहे । उसके बाद स्वरूपाबाई सत्संग महिला मंडल द्वारा गुरुवाणी पाठ किया और रात्रि में 8 .30 बजे रामस्नेही नवयुवक मंडल द्वारा गुरुवाणी पाठ किया गया जो प्रत्येक गुरुवार को नियमित रूप से रामद्वारा में होता हैं ।स्वामी दिव्येशराम ने कहा कि इस ब्रह्मांड में केवल मनुष्य ही दान,भजन और धर्म कर सकता हैं परन्तु हम सभी सांसारिक भोग में लगे हुए हैं। मानसिक प्रेम सबसे बड़ा होता हैं मन से पुण्य करने की सोच ले तो कलयुग में यही सबसे श्रेष्ठ है। भगवान की मानसिक पूजा सबसे अच्छी हैं क्योंकि यह दोष रहित हैं। उन्होंने ‘सुमिरन क्यो नी करे रे मन सुमिरन क्यों नी करे’ भजन गाया। जिसका सभी भक्तों ने आनंद लिया। रामद्वारा ट्रस्ट के हितेष राजसोनी ने बताया कि कथा के बाद संत की पूजा,आरती,भोजन और प्रसाद के लाभार्थी राजेश सोलंकी परिवार रहे । उसके बाद स्वरूपाबाई सत्संग महिला मंडल द्वारा गुरुवाणी पाठ किया और रात्रि में 8 .30 बजे रामस्नेही नवयुवक मंडल द्वारा गुरुवाणी पाठ किया गया जो प्रत्येक गुरुवार को नियमित रूप से रामद्वारा में होता हैं ।स्वामी दिव्येशराम ने कहा कि इस ब्रह्मांड में केवल मनुष्य ही दान,भजन और धर्म कर सकता हैं परन्तु हम सभी सांसारिक भोग में लगे हुए हैं। मानसिक प्रेम सबसे बड़ा होता हैं मन से पुण्य करने की सोच ले तो कलयुग में यही सबसे श्रेष्ठ है। भगवान की मानसिक पूजा सबसे अच्छी हैं क्योंकि यह दोष रहित हैं। उन्होंने ‘सुमिरन क्यो नी करे रे मन सुमिरन क्यों नी करे’ भजन गाया। जिसका सभी भक्तों ने आनंद लिया। रामद्वारा ट्रस्ट के हितेष राजसोनी ने बताया कि कथा के बाद संत की पूजा,आरती,भोजन और प्रसाद के लाभार्थी राजेश सोलंकी परिवार रहे । उसके बाद स्वरूपाबाई सत्संग महिला मंडल द्वारा गुरुवाणी पाठ किया और रात्रि में 8 .30 बजे रामस्नेही नवयुवक मंडल द्वारा गुरुवाणी पाठ किया गया जो प्रत्येक गुरुवार को नियमित रूप से रामद्वारा में होता हैं ।
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