नरेंद्र शर्मा. सीकर. शेखावाटी में सट्टे का खेल कोई नई बात नहीं है। क्रिकेट मैचों से पहले यहां बारिश पर भी सट्टा खेला जाता था, लेकिन पिछले दो दशक से क्रिकेट सटोरियों के लिए पसंदीदा शगल हो गया है। सट्टा शेखावाटी में अपनी जड़ें गहरे तक जमा चुका है। पुलिस की लाख कोशिशों के बावजूद सटोरिए इस खेल को बेखौफ खेल रहे हैं। अभी दुबई में चल रहे आइपीएल 14 क्रिकेट मैचों के लिए भी शेखावाटी में रोज करीबन 100 करोड़ के दांव खेले जा रहे हैं।हालांकि शेखावाटी के परम्परागत सट्टे का स्वरूप अब बदल गया है, सट्टा अब ऑनलाइन खेला जा रहा है। सटोरियों ने इसके लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म तैयार कर रखा है, हजारों सटोरिए इससे जुड़े हैं। शेखावाटी से पांच हजार से ज्यादा लोग इस खतरनाक प्लेटफार्म से जुड़े हैं। सीकर शहर, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, चूरू, नागौर, नावां, कुचामन, झुंझुनूं व जयपुर के सटोरिये इसके जरिए सट्टे का खेल खेल रहे हैं। ऑनलाइन होने के कारण शेखावाटी के सटोरिए देश के अन्य राज्यों से भी जुड़े हुए हैं। सोशल मीडिया पर बने पेजों के जरिए सभी एक दूसरे से आसानी से जुड़े हैं। इस ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एक निश्चित रकम के बदले वॉलेट बनाए जाते हैं।
फंटर…खाईवाली…लगाईवाली…सट्टे में अमूमन ये तीन शब्द ज्यादा चलते हैं। फंटर सट्टे पर दांव लगाने वाले को कहते हैं और जो दांव लगवाता है वह बुकी कहलाता है। पसंदीदा टीम पर लगे दांव को लगाईवाली और दूसरी टीम पर दांव लगाना हो, तो उसे खाईवाली कहा जाता है। सटोरियों द्वारा बनाए गए ऑनलाइन प्लेटफार्म पर 3 हजार रुपए देकर अकाउंट बनाया जाता है, जिसके बाद आइडी पासवर्ड संबंधित व्यक्ति को मिल जाते हैं। फिर ऑनलाइन खेल शुरू हो जाता है।
हर सोमवार…कहीं पौ बारह…कहीं अफसोससीकर सहित शेखावाटी के अधिकांश क्षेत्रों में ऑनलाइन सट्टे का हिसाब हर सोमवार को होता है। बड़े सटोरियों की ओर से ऑनलाइन वॉलेट में जमा करवाए गए पैसे और ग्राहक की ओर से खेले गए सट्टे का सोमवार को हिसाब कर भुगतान किया जाता है। इस कारोबार में कोई नया ग्राहक सट्टा खेलना चाहता है तो उसे बिना गारंटी एंट्री नहीं मिलती। उसे पहले पैसा या गारंटर लाना होगा।
जीत पर खुशी…हार पर दर्द का कारोबारसट्टेबाजों में 70 फीसदी युवा पीढ़ी जुड़ी हुई है। कई मामलों में यह कारोबार झगड़ा-फसाद से लेकर बड़े अपराधों को जन्म दे रहा है। अब तक यह शहरों में ही चल रहा था, लेकिन अब यह ग्रामीण इलाकों में अपनी जड़ें जमा चुका है। पुलिस की ढिलाई से युवा वर्ग सट्टेबाजी के चंगुल में फंसकर बर्बाद हो रहा है।
सट्टा…सूद…और सदमाशौक से शुरू होकर सट्टे का खेल सूदखोरी तक पहुंच जाता है और सूदखोरी में फंसा व्यक्ति इस जाल से कभी निकल ही नहीं पाता। सीकर में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें सट्टे का कर्जा उतारने के लिए व्यक्ति सूदखोरों से भारी भरकम ब्याज पर पैसा उठाता है। अमूमन रुपया या दो रुपया सैकड़ा के हिसाब से मिलने वाला कर्ज सूदखोर 10 रुपए या 20 रुपए सैकड़ा के हिसाब से देते हैं। इतना ही नहीं इस पर फिर चक्रवती ब्याज और समय पर नहीं चुकाने पर पेनल्टी का भी प्रावधान कर रखा है। सीकर में नाम नहीं छापने की शर्त पर कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने चार लाख या आठ लाख तक का कर्ज सट्टा का कर्जा उतारने के लिए उठाया था। अब स्थिति यह है कि सट्टे का कर्ज तो उतर गया, लेकिन सूदखोरों को उनकी मूल रकम चुकाने के बाद भी 20-20 लाख रुपए अभी ब्याज और पेनल्टी के बकाया कर रखे हैं, जिन्हें नहीं चुकाने पर धमकियां मिलती है।
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