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सबसे मुश्किल इलाके की जिम्मेदारी अमित शाह को दी गई है

अमित शाह (Amit Shah) जब बीजेपी के अध्यक्ष बने उसके बाद से ही लगातार बीजेपी का ग्राफ बढ़ता चला गया. अमित शाह ने बीजेपी को चुनावी जीत दिलाने के लिए हर हथकंडे अपनाए हैं और बीजेपी को वहां ले गए जहां किसी ने सोचा नहीं था. कई तरह के आरोप भी लगे हैं लेकिन बीजेपी लगातार आगे बढ़ती रही. अब एक बार फिर से अमित शाह को उस इलाके की जिम्मेदारी दी गई है जहां बीजेपी के लिए 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में खासी मुश्किलें पैदा होने वाली है. जी हां अमित शाह को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाया गया है विधानसभा चुनाव के मद्देनजर. क्या यहां पर अमित शाह की चाणक्य नीति चल पाएगी?
बीजेपी ने पूरे उत्तर प्रदेश को 6 जोन में बांट दिया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर कमान तो संभाल ली है. लेकिन उनके अलावा बीजेपी के सबसे सीनियर तीन नेताओं ने भी कमान संभाल ली है. ध्यान देने वाली बात यहां पर यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सबसे मुश्किल टास्क अपने जिम्मे ले रखा है. अमित शाह ने जिस इलाके की जिम्मेदारी खुद के कंधों पर ली है, उस इलाके में बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 135 में से 115 विधानसभा सीटें जीत ली थी. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 27 में से 24 सीटें जीत ली थी.
इस बार भी अमित शाह की कोशिश है कि पश्चिमी यूपी और ब्रज के क्षेत्र में बीजेपी को बढ़त मिले और इसके लिए अमित शाह ने तैयारियां भी शुरू कर दी है. ब्रज और पश्चिम जोन को 6 डिवीजन में बांटा गया है और हर डिवीजन में 3 जिले शामिल किए गए हैं. अमित शाह ने जैसे ही ब्रज और पश्चिमी यूपी की कमान संभाली उसके दूसरे ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. इसके पीछे भी कयास यही लगाए जा रहे हैं कि अमित शाह की रणनीति काम कर रही है.
लेकिन सवाल सबसे बड़ा यही है कि क्या तीनों कृषि कानूनों के वापस लिए जाने के बाद पश्चिमी यूपी के किसान फिर से बीजेपी की तरफ से झुक जाएंगे, बीजेपी को एक और मौका देंगे? क्योंकि जिन कृषि कानूनों को बीजेपी ने वापस लिया है वह कानून तो खुद बीजेपी लेकर आई थी. तो फिर नया क्या किया है, जिससे किसानों की नाराजगी खत्म हो? तीनों कृषि कानूनों के वापस लिए जाने के ऐलान के बाद साक्षी महाराज से लेकर कलराज मिश्र जैसे बीजेपी के बड़े नेताओं ने मीडिया में आकर यह बयान दिया कि तीनों कृषि बिल बाद में भी लाए जा सकते हैं. फिर अमित शाह या फिर बीजेपी पर पश्चिमी यूपी के किसान भरोसा कैसे करेंगे?
अमित शाह को कैसे रोक सकता है विपक्ष या फिर विपक्ष को कैसे मात दे सकते हैं शाह?
अमित शाह की रणनीति यही है कि विपक्ष एकजुट ना हो और जनता का वोट, खासतौर पर पश्चिमी यूपी में अगर जाट बीजेपी के साथ आता है तो ठीक है, नहीं तो अमित शाह की पूरी कोशिश है कि जाट मायावती (Mayawati) के साथ जाए. अमित शाह को पता है कि अगर लड़ाई सीधी दो पार्टियों के बीच हुई तो बीजेपी को मात. मिलेगी. इसलिए अमित शाह इसी रणनीति पर काम करेंगे कि विपक्ष एकजुट ना हो या फिर जनता एकजुट होकर बीजेपी के सामने किसी एक पार्टी के साथ ना खड़ी हो जाए.
पश्चिमी यूपी ही नहीं अगर पूरे उत्तर प्रदेश में विपक्ष एकजुट हो गया तो बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा यह भी तय है. क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन कामयाब ना हुआ हो लेकिन 2021 में परिस्थितियां बदली हुई है. जनता कई मुद्दों पर बीजेपी से नाराज है.
लेकिन अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की रणनीति छोटे दलों को साथ लेकर चलने की है. अब देखना यह होगा कि चुनावों के बीच मायावती के साथ जनता जाती है या नहीं. क्योंकि मायावती कुछ खास एक्टिव नजर नहीं आ रही है. उत्तर प्रदेश में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़ रहा है. हाथरस से लेकर प्रयागराज तक दलित बेटियों की आबरू से खिलवाड़ हो रहा है. लेकिन मायावती इसके बावजूद सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं. तो क्या जाट या फिर दलित मायावती को वोट देगा? सवाल यही है.
जहां तक बात कांग्रेस या फिर प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की है तो निश्चित तौर पर प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक हलचल जरूर पैदा कर दी है. उत्तर प्रदेश की जनता कांग्रेस के बारे में बात नहीं करती थी, लेकिन इस वक्त प्रियंका गांधी की मौजूदगी ने यह परिस्थिति पैदा कर दी है कि, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बिना कांग्रेस की बात किए उत्तर प्रदेश का चुनाव पूरा नहीं हो सकता. जनता कांग्रेस का साथ कितना देती है या फिर उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी को कितनी सफलता मिलती है, यह तो वक्त बताएगा.
लेकिन जिन मुद्दों को प्रियंका उठा रही हैं जो वादे प्रियंका कर रही हैं उससे विपक्षी दलों में हलचल जरूर पैदा हो गई है. क्योंकि प्रियंका गांधी डायरेक्ट महिलाओं से पार्टी को कनेक्ट कर रही है. 40% टिकट अगर महिलाओं को देने की बात कर रही हैं तो इससे महिलाओं में उत्सुकता जरूर बढ़ी है. इसके अलावा प्रियंका गांधी दलितों को जोड़ने की रणनीति पर भी लगातार काम कर रही हैं. दलितों के खिलाफ जो भी अपराध हो रहा है उसमें मुखर होकर सबसे आगे कोई खड़ा है और उनके समर्थन में सत्ता के खिलाफ आवाज उठा रहा है तो वह प्रियंका गांधी ही हैं. लेकिन दलित कितना जुड़ता है कांग्रेस से यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा.
बहरहाल बात अमित शाह की हो रही थी. अमित शाह निश्चित तौर पर सबसे मुश्किल टास्क को अपने कंधे पर लिए हुए हैं. अमित शाह के लिए इस बार उत्तर प्रदेश में चुनौती बड़ी है. माना यह जा रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान पश्चिमी यूपी के मौजूदा जाट विधायकों के टिकट काटा जाना करीब करीब पक्का है.
पक्का इसलिए भी है, क्योंकि अमित शाह ने पश्चिमी यूपी की कमान भी खुद संभाल रखी है और सत्ता विरोधी लहर की काट में उनका यह पुराना आजमाया हुआ और बेहद कारगर नुस्खा रहा है. वैसे भी पूरे उत्तर प्रदेश में लगभग डेढ़ सौ विधायकों के टिकट काटे जाने की बात पहले से ही चर्चा में है.
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