सीकर. प्रशासन की लापरवाही नेे एक गरीब परिवार के मुखिया की जान ले ली। जिसके बाद आठ नाबालिग बच्चों सहित उसकी बेवा के भविष्य पर भयावह संकट खड़ा हो गया है। जूझने पर भी परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं हो पा रहा। लक्ष्मणगढ़ के बलारां गांव में सात नाबालिग बेटी व एक बेटे के बीमार पिता भंवरलाल का गरीबी की वजह से इलाज नहीं हो पा रहा था। मदद के लिए प्रशासन से बार बार की गुहार पर भी सुनवाई नहीं हुई तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखा गया। आयोग ने तीन महीने पहले संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन को कार्यवाही कर आठ सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन, इसके बाद भी भंवरलाल व उसके परिवार की सुध नहीं ली गई। आखिरकार दवा व खुराक की कमी से भंवरलाल ने 14 दिन पहले दम तोड़ दिया।
इलाज के लिए मां ने बेची बकरियां, नाबालिग बेटियों ने की मजदूरीबीड़ में खुले में जीवन यापन करने वाले बावरी समाज के भंवरलाल को शुरू में मिर्गी की बीमारी थी। धीरे धीरे उसके बाकी अंग भी खराब होने लगे। जयपुर दिखाने पर चिकित्सकों ने ऑपरेशन ही उपचार बताया। काम करने में अक्षम होने पर मां मंगली ने अपनी बकरियां बेचकर उसके उपचार का प्रयास किया। पत्नी व दो बेटियों ने भी खेतों में मजदूरी की। लेकिन, लंबी बीमारी व महंगे इलाज में वह रुपया भी कम पड़ गया। ऐसे में कुछ राशि कर्ज भी ली गई। लेकिन, भंवरलाल की जान नहीं बचाई जा सकी।
27 अगस्त को लिया संज्ञान, नहीं ली सुधभंवरलाल की मदद के लिए सामाजिक कार्यकर्ता जगदीश सुंडा ने प्रशासनिक अधिकारियों से कई बार गुहार की। सुनवाई नहीं होने पर उसने प्रधानमंत्री कार्यालय व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखा। जिस पर संज्ञान लेते हुए मानवाधिकार आयोग ने 27 अगस्त को जिला प्रशासन को पत्र लिखकर आठ सप्ताह में कार्यवाही कर रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन, प्रशासन ने परिवार की मदद तो दूर परिवार का मुआयना तक नहीं किया। सामाजिक कार्यकर्ता सुंडा की मानें तो भंवरलाल को दवा तो दूर दो समय का भोजन भी बमुश्किल मिल पाया।
3 से 14 साल के बच्चे मांगने व मजदूरी को मजबूरभंवरलाल के सात बेटी व एक बेटा है। सभी नाबालिग है। जिनमें सबसे छोटा बेटा करीब चार साल का है। जबकि मां व तीन बेटियां पिता की बीमारी के समय से ही खेतों में मजदूरी तो कभी मांगकर परिवार का पेट भर रही है।
खाली चुनाव में काम आ रहे राशन कार्ड व आधार कार्डभंवरलाल व उसका परिवार राशनकार्ड,आधार कार्ड व वोटर आईडी कार्ड धारक है। लेकिन, उसका उपयोग राजनेताओं ने ही चुनावों के समय किया। बाकी परिवार को कभी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला।
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