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Categories: Sikar news

गल्फ में रहने वाले लाखों मजदूरों पर छाया संकट

खाटूश्यामजी. तन से बहता रोज पसीना, हर दिन होता दुर्लभ जीना। खाने की तो बातें छोडो़, मुश्किल जिसको पानी पीना। मन में जिसके टूटे सपने, हर उम्मीद अधूरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है। कोराना की दूसरी लहर से मजूदर एकदम टूट सा गया है, खासकर गल्फ में काम करने वाले मजदूर। जिनपर उक्त कविता चरितार्थ हो रही है। पहले कोरोना काल में रोजगार पर संकट आने पर गल्फ में लाखों मजदूर अपने वतन वापस आ गए। मगर इस साल कोरोना की दूसरी लहर से कंपनियों ने मजदूरों से नाता तक तोड़ लिया। यहां तक की महिनों की पगार और बोनस भी देने से इंकार कर रही है। ऐसे में गल्फ गए देशभर के लाखों मजदूरों के सपने चूर-चूर हो गए है। पत्रिका ने ऐसे ही गल्फ में संकट में फंसे मजदूरों से बात की तो उन्होंने अपनी दुखभरी पीड़ा जाहिर की।मजदूरों ने पत्रिका से जाहिर की पीड़ाओमान में काम करने वाले दांता के लिखा सिंह सैनी ने बताया कि बहुत सी कम्पनियों में काम खत्म होने से क्षेत्र के लोग काफी समय से कम्पनियों में बैठे हुए है। बहुत से मजदूर गल्फ से अपने घर आ गये तो उनका समय पर वापस नहीं जा सके, ऐसे मजदूर 15-20 सालों का बोनस व 7-8 महिनों की पगार का इंतजार कर रहे है। पहले तो पगार का संकट आ गया अब ऐसे हालात में मैं गांव भी नहीं जा पा रहा हूं। मस्कट में काम करने वाले भोजासर (सीकर) के किशोर चौधरी ने बताया की मैं यहां दस सालों से काम कर रहा हूं, परंतु कोरोना काल के चलते दो साल से घर नहीं जा पाया। मेरा चार पांच महिनों का वेतन रुक गया है।
पगार मांगने पर कम्पनी आजकल-आजकल का नाम टरका रही है। घर पर पैसा नहीं भेजने से परिजन भी संकट में है। कतर से मुकेश कुमावत (दांता) ने बताया की वेतन समय पर नहीं मिल रहा है। पैसों को लेकर घर से भी फोन आ रहा है। ऐसे में परिजनों की आजीविका चलाने में काफी परेशानी आ री है। सोचा था वेतन मिलने पर घर का संकट दूर कर सकूंगा। मगर कोरोना ने ऐसा होने नहीं दिया। दुबई में मजदूरी करने वाले रामगढ के दीपक कुमावत ने बताया कि कोरोना ने मजदूरों को संकट में लाकर खड़ा कर दिया है। सोचा था विदेश में कमाकर परिवार को मुसिबतों से उबारेंगे। मगर कोरोना ने इन सपनों पर पानी फेर दिया।

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