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संस्कृत और संस्कृति परस्पर पोषक हैं : डॉ. कौशल

जोधपुर. संस्कृत ( Sanskrit ) और संस्कृति परस्पर पोषक हैं। वेदों से लेकर अद्यावधिपर्यन्त संस्कृत भाषा में उत्कृष्ट काव्य रचना, संस्कृत की सनातनता का प्रमाण है। ये विचार संस्कृत साहित्यकार और संस्कृत विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर सरोज कौशल ( Dr saroj kaushal ) ने व्यक्त किए। वे संस्कृत दिवस ( world Sanskrit day ) के कार्यक्रमों की शृंखला में महिला पी.जी.महाविद्यालय ( mahila pg college ) में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उदबोधन दे रही थीं। प्रो सरोज कौशल ने कहा कि वर्तमान में संस्कृत के रचनाकारों ने हाशिये पर पड़े श्रमिकों, हलवाहों,चरवाहों, स्त्रियों के संघर्ष का संज्ञान लिया है, उन पर मार्मिक कविता रच कर संस्कृत पर लगाए जाने वाले मिथ्या आरोपों का खण्डन किया कि संस्कृत सामन्तों की भाषा है।
उन्होंने कहा कि कर्मकाण्ड पर संस्कृत कवि कबीर के समान निर्मम कटाक्ष करता है। संस्कृत कवि परम्परा छल कपट रहित मनुष्यता की पक्षपाती है। इस प्रसंग में डॉ कौशल ने प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी ( Prof Radhavallabh Tripathi ), प्रो अभिराज राजेन्द्र मिश्र ( Prof. Abhiraj Rajendra Mishra ) , डॉ महाराजदीन पाण्डेय ( Dr. Maharajdeen Pandey ) , डॉ हर्षदेव माधव ( Dr. Harshadeva Madhava ) और डॉ प्रवीण पण्ड्या ( Dr. Praveen Pandya ) आदि अनेक कवियों को उद्धृत करते हुए संस्कृत के समकालीन साहित्य का महत्व बताया। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि प्रो नरेन्द्र अवस्थी ( Prof. Narendra Awasthi ) ने संस्कृत भाषा की सरलता और सहजता कविता के माध्यम से व्यक्त की। डॉ नीतेश व्यास ने कार्यालय वधू तथा गृह वधू विषयक संस्कृत कविता प्रस्तुत की। कार्यक्रम में महाविद्यालय की छात्राओं ने कविता, भाषण और संस्कृत लघु नाटिका की प्रस्तुति से संस्कृत भाषा के प्रयोग का जीवंत प्रदर्शन किया। आरंभ में प्रो पी एम जोशी ने अतिथियों का स्वागत किया। अंत में प्रो एस पी व्यास ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रो के एन व्यास, डॉ पुष्पा गुप्ता, डॉ शरदचन्द्र भाटी, डॉ छैलसिंह, डॉ रंजना उपाध्याय, डॉ अनूप पुरोहित व डॉ सुनीता बोहरा आदि कई शिक्षाविद् व महाविद्यालय के आचार्य उपस्थित रहे।
 

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