सीकर.प्रदेश में कमजोर पानी निकासी प्रबंधन हर साल सरकार को लाखों रुपए का झटका दे रहा है। इसके बाद भी सरकार के पास बेहतर पानी निकासी के प्रबंधन को लेकर कोई प्लान नहीं है। अफसरों को भी मरम्मत के कार्यो से इतना मोह है कि वह स्थायी इंतजाम करने के प्रस्तावों से सोशल डिस्टेंस बनाए हुए है। प्रदेश के इंजीनियरिंग विद्यार्थियों ने प्रदेश के सभी क्षेत्रों में गु्रप बनाकर एक सर्वे कराया। इसके हिसाब से प्रदेश में पिछले डेढ़ महीने में लगभग 700 करोड़ की सड़क बह गई। इस राशि से प्रदेश के 24 नगर निकायों में आसानी से जल प्रबंधन के स्थायी इंतजाम किए जा सकते थे। अब बारिश से जर्जर सड़कों के लिए नगर निकाय व सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से बजट के प्रस्ताव भिजवाए जा रहे हैं। इस साल भी प्रदेश में टूटी सड़कों पर दीवाली से पहले एक हजार करोड़ रुपए खर्च होने लगभग तय है।
6 साल में 3600 करोड़ पेचवर्क में लगाएपिछले छह साल में स्वायत्त शासन व सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से 3600 करोड़ रुपए बारिश से टूटी सड़कों के पेचवर्क में खर्च किए गए। इसके अलावा ग्राम पंचायत सहित कई अन्य एजेन्सी की ओर से भी 570 करोड़ रुपए से ज्यादा इस मद में खर्च किए गए है।
ऐसे समझें पानी निकासी के प्रबंधन में लापरवाही को
केस एक:प्रदेश की राजधानी जयपुर में बारिश के बाद टूटी सड़क गहरा दर्द दे रही है। जयपुर-बीकानेर मार्ग पर 14 नंबर पुलिया के पास पिछले चार साल में सरकार पानी निकासी के कोई इंतजाम नहीं कर सकी। चार साल में सड़क के आधा किलोमीटर टुकड़े पर लगभग 60 लाख रुपए मरम्मत के खर्च हो चुके है। जयपुर के एन्ट्री प्वॉइंट पर जलभराव होने से दिनभर जाम भी लगा रहता है। इस साल भी 20 लाख रुपए के कार्य होना प्रस्तावित है। एक्सपर्ट का कहना है कि इस राशि से आसानी से यहां पानी निकासी के स्थायी इंतजाम किए जा सकते थे।
केस दो:सीकर जिले में 23 जलभराव वाले केन्द्रों पर हर साल मानसून सीजन में सड़क बह जाती है। पिछले छह सालों में 78 लाख रुपए से ज्यादा राशि सड़क की मरम्मत पर खर्च की जा चुकी है। जबकि इनमें आठ प्वॉइंट पर इस राशि से स्थायी पेयजल निकासी के इंतजाम किए जा सकते हैं। जर्जर सड़क की वजह से आए दिन हादसे भी हो रहे हैं।
केस तीन:झुंझुनूं में 11 जलभराव वाले स्थानों पर एक करोड़ से अधिक की सड़क बह गई। पिछले सात साल से यह सिलसिला जारी है। इनमें से तीन स्थानों पर महज पांच करोड़ से नाला बनाकर राहत दी जा सकती थी। लेकिन जिम्मेदारों की ओर से कभी भी स्थायी समाधान समाधान की दिशा में प्रयास नहीं किए गए।
आंकड़ों का गणितहर साल बारिश से टूटती है सड़क: 700 करोड़ की6 साल में मरम्मत पर खर्च: 3600 करोड़़इस साल मरम्मत के लिए राशि मंजूर होगी: 1 हजार करोड़कितने स्थानों पर बारिश से बही सड़क: 1110जलभराव वाले स्थानों की डीपीआर बनी: 319
एक्सपर्ट व्यू:प्रदेश की सड़कों के बारिश के मौसम में कमजोर पानी निकासी की वजह से टूटने को लेकर सर्वे किया गया। सर्वे में सामने आया कि हर साल राजस्थान में 700 करोड़ से अधिक की सड़क टूट जाती है। लेकिन सरकार इसको प्राकृतिक आपदा मानकर मरम्मत के लिए बजट जारी करती है। इसको सभी सरकारों ने परम्परा बना दिया है। लेकिन इसके स्थायी समाधान के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किए गए। पिछले छह साल में जितना पैसा सरकार ने सड़कों की मरम्मत पर खर्च किया है उससे चौथाई से ज्यादा स्थानों पर पानी निकासी के स्थायी इंतजाम किए जा सकते थे।इंजीनियर महेन्द्र सिंह, सीकर
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