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रवीश कुमार और उनके करोड़ों चाहने वालों के लिए आज गर्व का दिन

आज रवीश कुमार को मैगसेसे पुरस्कार से भी बड़ा पुरस्कार मिला है और वो है विश्वसनीयता का तमगा. दिल्ली हाईकोर्ट ने आज एनडीटीवी के एक वीडियो के आधार पर दिल्ली दंगों के आरोप में एक साल से जेल में बंद तीन लोगों को ज़मानत दे दी है.
दिल्ली हाइकोर्ट ने पिछले साल हुए दिल्ली दंगों के दौरान हिंसा के तीन आरोपियों को जमानत के लिए NDTV के ग्रुप एडिटर और प्राइम टाइम के एंकर रवीश कुमार के कार्यक्रम में दिखाए गए वीडियो को आधार बनाया है. दिल्ली हाइकोर्ट ने दिखाए गए वीडियो के आधार पर कहा कि जुनैद, चांद मोहम्मद और इरशाद के खिलाफ प्रत्यक्ष या पारिस्थितिजन्य या फॉरेंसिक किसी भी तरह के सबूत नहीं है.
इन तीनों पर फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के दौरान शाहिद नाम के शख्स की हत्या का आरोप है और ये एक अप्रैल 2020 से जेल में हैं. इस मामले में आरोपियों के वकील ने जमानत की मांग करते हुए NDTV के वीडियो का जिक्र किया था. वकील सलीम मलिक ने बताया था कि NDTV का वीडियो भी चलाकर दिखाया था. ये मामला उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग इलाके का था.
पुलिस के मुताबिक ये तीनों उन लोगों में शामिल थे जो सप्तर्षि बिल्डिंग की छत पर थे और दूसरे छत पर मौजूद लोगों को निशाना बना रहे थे. पुलिस का आरोप है कि इसी दौरान गोली लगने से सप्तर्षि बिल्डिंग की छत पर मौजूद शाहिद की मौत हो गई थी.
आपको बता दे कि इस दौर में न्यूज़ चैनलों की विश्वसनीयता और निष्पक्षता रसातल में है. रिपब्लिकन टीवी के अर्णब गोस्वामी सबसे बड़े खलनायक की तरह उभरे हैं जो सरकार से सांठ-गांठ भी रखते हैं और टीआरपी से छेड़छाड़ भी करते हैं और अपने यहां काम करने वालों को पैसा भी नहीं देते. शिखर के लिए घाटी का होना ज़रूरी है. ऊंचाई के अहसास के लिए नीचाई भी ज़रूरी है.
घटियापन और नीचता के सबसे आखरी सोपान पर अर्णब गोस्वामी, जी टीवी के सुधीर चौधरी, एबीसी न्यूज़ की रुबिका लियाकत, अमीश देवगन, अंजना ओम कश्यप, दीपक चौरसिया ऐसे नाम हैं जो पत्रकारिता को कलंकित करने के लिए याद रखे जाएंगे. इनके घटियापन पर भी अदालत की मुहर लग चुकी है. कोरोना को लेकर इन्होंने जिस तरह की घृणित रिपोर्टिंग की थी, वो सदियों तक याद रखी जाएगी.
अदालत ने बाद में कहा भी था कि अगर मीडिया मुसलमानों को कोरोना का जिम्मेदार नहीं बताता तो हम इस महामारी से और अच्छी तरह निपट सकते थे. बहरहाल एक तरफ वो मीडिया है जिसे गोदी मीडिया के नाम से देश पुकारता है और दूसरी तरफ रवीश कुमार हैं जिनकी विश्वसनीयता इतनी है कि कोर्ट उनके न्यूज क्लिप के आधार पर ज़मानत दे देती है.
होना तो यह चाहिए कि सभी ईमानदार हों. ईमानदारी कोई अतिरिक्त गुण नहीं पत्रकारिता की पहली शर्त है. मगर तमाम चैनल जैसे एक दूसरे से स्पर्धा करते हैं कि कौन ज्यादा चाटुकार और बेईमान है. ऐसे में अगर कोई हाईकोर्ट दिल्ली दंगों के मामले में आरोपियों को राहत देती है, तो खुशी होती है. रवीश कुमार पत्रकारिता के शिखर बन गए हैं. उन्हें एक बार फिर बधाई.
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