हल लेकर खेतों की ओर आज कोई निकल पड़ा है , फटी जूती, फटे कपड़े बारिश की आस में चल पड़ा है, ऐ खुदा रहम कर, बख्श इस शख्स को, मायूस बैठा है आज, चलाता है जो तख्त को, आवाम इसके खिलाफ है, हुकूमत कर रही अदावत, सबसे इसका एक ही नाता, सबके लिए ये कर्जदार है, देश का पेट भरने वाला, ये एक ऐसा इंसान है, खुद भुख से तड़पने वाला ये भारत का किसान है!
दिन आज ऐसे आ गये हैं, इसे सड़कों पर उतरना पड़ रहा है, हुकूमत तक आवाज पहुंचाने के लिए, खून बहाना पड़ रहा है, किस गुमान में हो तुम, जो इन पर लाठियां चलाते हो, शायद तुम ये भूल रहे, इन्हीं का अन्न खाते हो…
कब तक आवाज दबाओगे, कब तक इन्हें सताओगेदेश का पेट भरने वाला ये एक ऐसा इंसान है, खुद भुख से तड़पने वाला ये भारत का किसान है..!
झोपड़ी इसकी टूटी है, किस्मत इसकी फूटी है, घर में जवान बेटी बिन ब्याही बैठी है, साहूकार घर पे कतार लगाये बैठे है, बस होगा ये कि वो मर जाएगा, इस मिट्टी में ही दब जाएगा, मजाल है बवाल हो जाएगा, वो गरीब है सब खामोश हो जाएगा,देश का पेट भरने वाला ये एक ऐसा इंसान है, खुद भूख से तड़पने वाला ये भारत का किसान है..।
रचनाकार: कवि शिवराज सिंह शेखावत
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