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कविता: ओ सपनों में जीने वालों

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कविता: ओ सपनों में जीने वालों
ओ सपनो में जीने वालों,छुप-छुपकर न यूँ अश्क बहाओ।ख्वाब तुम्हारे भी है कुछ,ना उनको यूँ मिटाओ।सुख दुःख तो है ,धूप छाव की एक कहानी।एक हँसता एक रोता,यह तो है वक्त की मेहरबानी।ओ शोषण के शिकार होने वालो,ना यूँ अपना शोषण करवाओ।तुम भी हो जिन्दा इंसान,ना यूँ जीवन अपना मिटाओ।वक्त चला गया तो,जीवन अपना सारा वीरान है।कर ना सका वक्त पर कुछ,जीवन भर वो परेशान है।ओ सपनों में जीने वालों,ना तकदीर पर आस लगाओ।खोलो बन्द आँखे अपनी,मंजिल की राह तुम बनाओ।दिन रुकता नही रोके,निशा काली चादर ओढ़े चली आती है।ओ मदहोश होकर नशे में चलने वालों,ना जीवन को जहन्नुम बनाओ।बाक़ी है अभी उम्र जीने की,उसको तुम यूँ ना घटाओ।ओ गमो में जीने वालो,छुप-छुपकर यूँ ना अश्क बहाओ।
रचनाकार: नारमल रोलन अम्बेडकर नगर,सीकर

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