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फ़िल्म पानीपत में जाट महाराजा सूरजमल के गलत चित्रण का विरोध

Aajkal Rajasthan/film and entertainment/panipat/bharatpur फ़िल्म पानीपत में भरतपुर के जाट महाराजा सूरजमल के बारे में गलत ऐतिहासिक तथ्य चित्रण करने पर उत्तरी मध्य भारत में चौतरफा विरोध शुरू हो गया है। जाट समाज ,राजपूत समाज गुर्जर समाज व समस्त राजवंश व सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं मंत्री विश्वेन्द्र सिंह, गोविंद सिंह डोटासरा व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने पर फ़िल्म में ग़लत ऐतिहासिक तथ्य दिखाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।

राजस्थानके शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने ट्वीट कर फ़िल्म में महाराजा सूरजमल के किरदार को गलत ऐतिहासिक तथ्य के साथ दिखाने पर कड़ी आपत्ति जताई है।

फिल्म के निर्देशक आशुतोष गोवारीकर को माफी मांगनी चाहिए।
निर्देशक को फिल्म में महाराजा सूरजमल के किरदार को करना चाहिए ठीक,’इतिहास के वीर पुरुषों का फिल्मों में इस तरीके से चित्रण सही नहीं है ,दर्शकों पर पड़ता है इसका गलत इंप्रेशन,यह तुरंत प्रभाव से बन्द होना चाहिए -: – गोविंद सिंह डोटासरा..

Govind singh dotasra tweet

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी फ़िल्म पानीपत में गलत ऐतिहासिक चित्रण पर नाराजगी जाहिर की है।

नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी फ़िल्म पानीपत पर आपत्ति दर्ज करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की चिट्ठी लिखकर फ़िल्म पर बैन लगाने या गलत दृश्य हटाने की मांग की है।

मुख्यमंत्री गहलोत का ट्वीट:

प्रदेश में फिल्म का बढ़ता विरोध देखते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने ट्वीट कर लिखा- फिल्म बनाने से पहले किसी को भी किसी के व्यक्तित्व को सही परिप्रेक्ष्य में दिखाना सुनिश्चित करना चाहिए ताकि विवाद की नौबत नहीं आए। मेरा मानना है कि कला का, कलाकार का सम्मान हो परंतु उनको भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी जाति, धर्म, वर्ग के महापुरुषों और देवताओं का अपमान नहीं होना चाहिए। फिल्म में महाराजा सूरजमल जी के चित्रण को लेकर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, ऐसी स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए थी। सेंसर बोर्ड इसमें हस्तक्षेप करे और संज्ञान लें। डिस्ट्रीब्यूटर्स को चाहिए कि फिल्म के प्रदर्शन को लेकर जाट समाज के लोगों से अविलंब संवाद करें।

गुर्जर नेता ने किया समर्थन का ऐलान

गुर्जर नेता हिम्मत सिंह ने भी जाटों का समर्थन का ऐलान किया है।एक ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा- ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड करते हुए भरतपुर के महाराजा सूरजमल जी जाट जैसे महान पुरूष का चित्रण ‘पानीपत’ फिल्म में बेहद गलत तरीके से किया गया है। फिल्म पानीपत में महाराजा सूरजमल के महान व्यक्तित्व को मजाकिया जैसा दिखाना राजस्थान की अस्मिता के साथ मजाक है।

फ़िल्म पानीपत के किस सीन पर है विवाद

फिल्म में महाराजा सूरजमल को मराठा पेशवा सदाशिव राव से संवाद के दौरान इमाद को दिल्ली का वजीर बनाने व आगरा का किला उन्हें सौंपे जाने की मांग करते दिखाया गया है। इस पर पेशवा सदाशिव आपत्ति जताते हैं। सूरजमल भी अहमदशाह अब्दाली के खिलाफ युद्ध में साथ देने से इनकार कर देते हैं। सूरजमल काे हरियाणवी व राजस्थानी भाषा के टच में भी दिखाया है।

फिल्म में सूरजमल का चरित्र ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत:इतिहासकार
महाराजा सूरजमल फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह औरकिसान नेता नेम सिंह फौजदार का कहना है कि महाराजा सूरजमल शुद्ध रूप से ब्रज भाषा बोलते थे। इसके अलावा पानीपत की लड़ाई से पहले राजा सूरजमल का आगराके लाल किलेपर कब्जा था।

वहीं, भरतपुर का इतिहास सहित 13 पुस्तकें लिख चुके इतिहासकार रामवीर वर्मा का कहना है कि फिल्म में महाराजा सूरजमल का चरित्र तथ्यों से परे फिल्माया है। फिल्म में बताया गया है कि उन्होंने आगरा के किले की मांग की, जबकि सत्य तो यह है कि आगरा का किला तो पहले ही जाट रियासत के अधीन था, बल्कि भरतपुर रियासत का शासन अलीगढ़ तक था।

वर्मा बताते हैं कि महाराजा सूरजमल और उनके महामंत्री रूपराम कटारिया मराठा सेना के शिविर में गए थे, जहां मराठा सेना के साथ आई महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित स्थान ग्वालियर अथवा डीग और कुम्हेर के किले में रखने का सुझाव दिया था। लेकिन, उनके परामर्श को नहीं माना गया और उपेक्षा की गई। इस पर वे अभियान से अलग हो गए। इसलिए फिल्म में महाराजा सूरजमल का चरित्र ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है।

कौन थे महाराजा सूरजमल

महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 को हुआ था। वह राजा बदनसिंह ‘महेन्द्र’ के दत्तक पुत्र थे। उन्हें पिता से बैर की जागीर मिली थी। उन्होंने 1743 में भरतपुर नगर की नींव रखी और 1753 में वहां आकर रहने लगे।

उनके क्षेत्र में भरतपुर सहित आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुडग़ांव और मथुरा सम्मिलित थे। वर्ष 1761 की 14 जनवरी को अहमदशाह अब्दाली के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई में कुछ ही घंटे में मराठों के एक लाख में से आधे से ज्यादा सैनिक मारे गए। इस त्रासदी से बचने के लिए महाराज सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को यह सलाह दी थी कि युद्ध से महिलाओं व बच्चों को युद्ध मैदान से दूर किसी सुरक्षित किले में रखें ताकि बैखोफ होकर लड़ सके, जिसे नहीं माना गया। जिससे नाराज होकर महाराजा सूरजमल ने युद्ध में भाग लेने से मना कर दिया। युद्ध में मराठा ठहर ही नहीं सके।जिसे सेना सहित6 माह तक सेवा की।

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