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अधिकारियों ने खेला ऋण माफी का खेल

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सीकर. मनमर्जी कहें या किसान का दुर्भाग्य। फसली ऋण की पासबुक में ऋण की कोई बकाया राशि भी नहीं और किसान के नाम से सरकारी ऋणमाफी का लाभ उठा लिया गया। यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह हकीकत दांतारामगढ़ के डूकिया ग्राम सेवा सहकारी समिति में देखने को मिली है। कर्ज के बोझ तले डूबे किसानों को उबारने के लिए प्रदेश सरकार ने ५० हजार रुपए तक के फसली ऋण माफी योजना को सरकार के कारिंदे ही चूना लगा है। आश्चर्य की बात है कि सरकार को चूना लगाने वाले इस वाकये की जानकारी उच्चाधिकारियों को होने के बाद भी इस संबंध में कोई कार्रवाई तक नहीं की जा रही है। इस प्रमाण पत्र में ऋणमाफी की राशि को कहां भेजा इसकी जानकारी तक किसान को नहंी दी जा रही है। अब किसान इस ऋणमाफी की राशि को लेने के लिए जीएसएस और सहकारी बैंक के चककर लगा रहा लेकिन किसी प्रकार की कोई कार्रवाई तक नहीं हुई है। किसान का आरोप है कि जीएसएस पर लम्बे समय से मनमर्जी का खेल चल रहा है मामले की निष्पक्ष जांच तो कई भोले-भाले किसान इस ठगी से बच सकते हैं। इस जिम्मेदार किसान को फौरी आश्वासन देते रहे बाद में जब किसान ने लिखित शिकायत दी तो अधिकारी मामले की जानकारी से बचते रहे। यह है मामलाप्रदेश की सरकार ने ३० नवम्बर २०१८ को बकाया राशि वाले किसानों के दो लाख हजार रुपए तक के फसली ऋण माफ करने की घोषणा की। डूकिया ग्राम सेवा सहकारी समिति में यहीं से खेल शुरू हुआ। जीएसएस के कर्मचारियों ने ऋणमाफी की सूची में किसान का नामतो शामिल कर लिया लेकिन किसान पर दवाब बनाया कि वो ऋण की बकाया राशि जमा करवा देगा तो उसे ऋणमाफी का पैसा मिल जाएगा। इस पर किसान भागीरथमल ने पांच नवम्बर २०१८ को अपने फसली ऋण ५०१३३ रुपए और ब्याज के १५१९० रुपए रसीद संख्या ४८१८०७ के जरिए जमा करवा दिए और व्यवस्थापक ने पासबुक में यह राशि प्रार्थी के खाते में जमा कर ली और फसली ऋण की राशि को शून्य दर्शा दिया। जबकि ऋणमाफी की पात्रता की प्रमुख शर्त थी कि संबंधित किसान का ३० नवम्बर २०१८ को बकाया होगा तो ही वह किसान पात्रता के दायरे में आएगा। ऋणमाफी का प्रमाण पत्र मिलने के बाद भी किसान को न तो बकाया राशि का भुगतान हो सका ओर न ही किसान की पासबुक की इस राशि की एंट्री की गई। इस प्रकार किसान और सरकार को इस राशि का चूना लगा दिया गया।

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