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गंगा साफ करने की बात करने वाली मोदी सरकार जनता का धंधा साफ कर रही है

नोटबंदी और जीएसटी से चरमराई हुई देश की अर्थव्यवस्था और तंग हाल जनता को दूर-दूर तक राहत दिखाई नहीं दे रही है. जनता के ऊपर मोदी सरकार आने के बाद एक के बाद एक टैक्स लगाए गए हैं, बैंकों द्वारा भी तरह-तरह के सरचार्ज लगाकर जनता की जेब काटी जा रही है.

अभी हाल ही में मोटर व्हीकल एक्ट के तहत जनता पर जुर्माना बढ़ाया गया है, इसको लेकर कल यानी गुरुवार को दिल्ली एनसीआर में ट्रांसपोर्टर ने हड़ताल भी रखी थी,जिसमें ऑटो टैक्सी और निजी ट्रांसपोर्टर शामिल थे.

इस हड़ताल के कारण दिन भर आम जनता परेशान दिखी,निजी स्कूल बंद रखे गए थे.

वाहन चालकों का काम पहले से ही मंदा चल रहा था, जैसे तैसे अपना घर खर्च चला रहे थे, लेकिन अब चालान इतना महंगा कर दिया है सरकार ने, कि ड्राइवर और वाहन मालिकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है,कई लोग और कई ड्राइवर तो कह रहे हैं कि चालान चुकाने के लिए जेवर तक गिरवी रखने पड़ रहे हैं.

कई लोगों का कहना है कि चालान की राशि कमाई के आधार पर होनी चाहिए.कई ड्राइवरों का कहना है कि दिन भर में ₹500 या अधिक से अधिक 1000 रुपए कमाते हैं जिसमें डीजल, गैस भी डलवाना रहता है उसके बाद ₹5000 तक का चालान हम कहां से चुकाएंगे?

मोटर व्हीकल एक्ट के तहत जो चालान की राशि बढ़ाई गई है उसको लेकर सरकार अजीबोगरीब तर्क दे रही है, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों कहा था कि सड़क हादसे में मारे जा रहे लोगों की जान बचाने के लिए सख्त नियम बहुत जरूरी है.

कई राज्यों में इस नियम को अभी तक लागू नहीं किया गया है,ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकार है.चुनावी फायदे को ध्यान में रखकर अभी इन राज्यों ने बढे हुए चालन को लागू नहीं किया है.

समस्या सिर्फ चालान तक सीमित नहीं है, इस चालन के तहत जो जुर्माना निर्धारित किया गया है,वह आम जनता की कमाई से कहीं ज्यादा है. रोजगार के अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं ,सरकार खुद कर्ज में डूबी हुई है, वर्ल्ड बैंक का कर्जा सरकार के ऊपर बहुत ज्यादा है, उसके बाद सरकार ने आरबीआई से भी पैसा लिया है. सरकार लगातार प्रचार के दम पर खुद को कामयाब दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है.

सरकार जनता को रोजगार के अवसर नहीं दे पा रही है,जनता को सरकारी नौकरी नहीं दे पा रही है. प्राइवेट सेक्टर की हालत सरकार की गलत नीतियों के कारण खस्ताहाल है. प्राइवेट सेक्टर अपने कर्मचारियों की छटनी कर रहा है या फिर अपने कर्मचारियों को कम सैलरी पर काम करने पर मजबूर कर रहा है. प्राइवेट सेक्टर में काम कर रहे युवाओं के पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है, क्योंकि रोजगार के अवसर सीमित है.

मोदी सरकार ब्रांडिंग के दम पर चल रही है, देश में रोजगार नहीं है. किसानों को उनकी लागत का उचित मूल्य तक नहीं मिल रहा है. कई राज्यों में गन्ना किसानों को उनका भुगतान तक नहीं किया गया है. सरकार में आने से पहले भाजपा ने और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने जनता से बड़े-बड़े वादे किए थे जो पूरे होते हुए नहीं देख रहे हैं.

अलग-अलग राज्यों की सरकारों को बनाने से पहले भाजपा ने उन राज्यों के विधानसभा चुनाव में जनता से अथाह वादे किए थे,लेकिन उन वादों को पूरे करने से भाजपा की राज्यों की सरकारें मुकर रही है.

देश की बदहाल होती अर्थव्यवस्था का असर लगभग हर क्षेत्र पर पड़ता हुआ दिख रहा है.

सरकार की आमदनी का जरिया भी सीमित होता जा रहा है,इसके बावजूद खुद के प्रचार में और मीडिया मैनेज करने में जो पैसा खर्च होना है,उसमें कोई कमी होती हुई दिखाई नहीं दे रही है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ दिन पहले कहा था कि देश मंदी के दौर में नहीं है,लेकिन सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि आर्थिक स्थिति सुधर नहीं रही है,बल्कि और ज्यादा बिगड़ती ही जा रही है, पिछले 6 महीने में राजस्व कर वसूली का लक्ष जो रखा गया था वह पूरा नहीं हुआ है,लक्ष्य से कम कर उगाही ही मंदी का साफ संकेत दे रहा है.

मौजूदा सरकार ने चालू वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष कर वसूली राजस्व में 17. 30% की बढ़ोतरी और कुल 13. 35 लाख करोड रुपए कर वसूली का लक्ष्य रखा था,लेकिन पहले 6 महीने में सिर्फ 4. 40 लाख करोड रुपए की कर वसूली हुई है.

सरकार ने जनता की कमर तोड़ कर रख दी है.खस्ताहाल अर्थव्यवस्था का असर मौजूदा सरकार यानी भाजपा पर बिल्कुल भी पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था का असर देश पर पड़ता हुआ दिख रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी देश की बदहाल हो रही अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की बजाए, इसमें सुधार पर ध्यान देने की बजाए, चुनावी रैलियां कर रहे हैं. जनता से मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर बात कर रहे हैं,भाषण दे रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी को भी पता है कि जब जनता मंदिर-मस्जिद,हिंदू-मुसलमान,पाकिस्तान के नाम पर लगातार उनका साथ दे ही रही है,तो फिर गिरती हुई अर्थव्यवस्था के बारे में बात करने से क्या फायदा? उसको सुधारने से क्या फायदा जनता? को रोजगार देने से क्या फायदा?

यह भी पढ़े : देश के वह मुद्दे जिसके सहारे जनता की भावनाओं से खेल रहे हैं कुछ लोग

राष्ट्र के विचार
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