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नोटबन्दी से RBI की बैलेंस सीट में गिरावट, रिजर्व बैंक कमेटी की रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे

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नोटबंदी से RBI की बैलेंसशीट भी हुई प्रभावित
-पांच साल की उसकी औसत विकास दर 9.5% से घटकर रह गई 8.6 प्रतिशत
-इसी रिपोर्ट से सरकार को मिली 1.76 लाख करोड़ की अधिशेष राशि
-‘इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क’ की समीक्षा के लिए गठित
-वित्त वर्ष बदलकर अप्रेल-मार्च करने की भी सिफारिश
आजकलराजस्थान / नई दिल्ली

नोटबन्दी अर्थव्यवस्था के लिये घातक साबित हुई।यह बात अब सरकार के अलग अलग विभाग, मंत्री, RBI व समितियां स्वीकार करने लगी हैं। रिजर्व बैंक (RBI Report) की ओर से गठित एक समिति ने कहा है कि नवबंर 2016 में एक हजार रुपए और 500 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर किए जाने का असर केंद्रीय बैंक की बैलेंसशीट(Balance Sheet) पर भी पड़ा था, जिससे पिछले पाँच साल की उसकी औसत विकास दर(Average Growth Rate) घटकर 8.6 प्रतिशत रह गई। आरबीआई के ‘इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क’ की समीक्षा के लिए डॉ. विमल जालान की अध्यक्षता में बनी समिति ने इसी महीने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है। यह वही रिपोर्ट है जिसकी अनुशंसा के आधार पर केंद्रीय बैंक ने 1.76 लाख करोड़ रुपए(1.76 Lac Crores Rupees) की अधिशेष राशि(Reserve Fund) सरकार को हस्तांतरित(Transfer) करने का फैसला किया है।
-बैलेंसशीट की विकास दर में गिरावट का कारण नोटबंदी
समिति ने अन्य बातों के साथ रिजर्व बैंक के वित्त वर्ष को बदलकर अप्रेल-मार्च करने की भी सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 10 साल में रिजर्व बैंक के बैलेंसशीट की औसत वार्षिक विकास दर 9.5 प्रतिशत रही है, जबकि 2013-14 से 2017-18 के पांच साल के दौरान इसकी औसत विकास दर 8.6 प्रतिशत रही। समिति ने कहा है कि बैलेंसशीट की विकास दर में गिरावट का कारण 2016-17 में की गई नोटबंदी थी। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के कारण प्रचलन में मौजूद सभी नोटों के कुल मूल्य का 86 प्रतिशत प्रतिबंधित हो गया।
रिजर्व बैंक का वित्तीय वर्ष में बदलाव
समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष और सरकार का वित्त वर्ष एक होना चाहिए। इससे रिजर्व बैंक की ओर से सरकार को दिए जाने वाले अंतरिम लाभांश को लेकर पैदा होने वाली विसंगतियां दूर की जा सकेंगी। समिति की राय है कि पारंपरिक रूप से रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष जुलाई-जून देश के कृषि मौसम को देखते हुए तय किया गया था, लेकिन, आधुनिक युग में अब इसकी आवश्यकता नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष एक होने से रिजर्व बैंक सरकार को दी जाने वाली अधिशेष राशि का बेहतर पूर्वानुमान लगा सकेगा।

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