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महाशिवरात्रि विशेष:  देश के किसी भी कोने में हैं… सारे तीर्थ जाने से पहले चले आइए…यहां शिवलिंग के दूसरे छोर का ना मिलना आज भी रहस्य

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Mahashivratri special: There are any corner of the country …-महाशिवरात्रि पर बालेश्वर के दर्शन मात्र से ही होती मनोकामना पूरी-हजारों की संख्या में पहुंचते है श्रद्धालुसीकर. राजस्थाान के टोडा गांव से 10 किमी दूर स्थित अरावली की उपत्यकाओं में पुरातात्विक महत्व के साथ आध्यामिक अद्भुत तीर्थ स्थल जो स्वयंभू बालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। बालेश्वर शिवलिंग के बारे में जनश्रुति है कि प्राचीन काल में आदिवासी चरवाहों के बिना ही गायें स्वयं बालरूप शिव का दुग्धाभिषेक करती थी। बालेश्वर धाम शिवलिंग का भी विशेष स्थान है।
इस शिवलिंग की पूजा करने का भी विशेष महत्व है। वहीं इस शिवलिंग की कहानी पुराणों के साथ अचरज से जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि विश्व का यह शिवलिंग सबसे बड़ा है, जिसके दूसरे छोर का अभी तक पता नहीं चल पाया। धाम के पुजारी लीलाराम योगी ने अनुसार यह शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है।
बालेश्वर शिवलिंग के बारे में राज्य संस्कृत महाविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष पंडित कौशलदत्त शर्मा ने बताया कि प्राचीनकाल से ही आदिदेव स्वयंभू भगवान शिव के बालस्वरूप की विशाल शिवलिंग के रूप में मान्यता रही है।
लोकमान्यता है कि बालेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग है अर्थात् स्वयं धरती का सीना चीरकर प्रकट हुए हैं। मन्दिर परिसर की उत्तरी भित्ति पर गणेश प्रतिमा के नीचे प्राकृत भाषा में लिखा एक शिलालेख प्राप्त होता है जो इस स्थान की प्राचीनता और भव्यता का गुणगान करता है।
सूर्यवंशी राजाओं ने हजारों साल पहले इस स्वयंभू शिवलिंग की सुरक्षा के लिए बहुत ही विशाल शिव मन्दिर बनवाया था जिसकी मान्यता एक तीर्थक्षेत्र के रूप पूरे भारतवर्ष में थी। पाटन राज परिवार के साथ कई आदिवासी जातियों के तो ये कुलदेवता रहे हैं। अभी तक भी पाटन राज दरबार के साथ क्षेत्र के सभी वर्गों की इस स्थान के प्रति लौकिक आस्था की अलौकिक छवी देखने को मिलती है।
आयुष्यवृद्धि और सौभाग्य की कामनाओं के लिए यहां पूजा का विशेष महत्व है। राजकीय संकट से शीघ्र मुक्ति और पुत्र प्राप्ति तो भगवान बालेश्वर नाथ की पूजा का विशेष पुण्य है। शिवरात्रि पर दर्शन मात्र से ही आबाल वृद्ध नर-नारियों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
बालेश्वर धाम में अमृत कुंड भी रहस्य बना हुआ है। मंदिर के पीछे की ओर गुलर के पेड़ की जड़ से श्रद्धालु पानी निकालकर स्नान करते है। गुलर की जड़ में पानी कहां व कब से आ रहा है यह कोई नहीं जानता है। इसे भी चमत्कार ही माना जाता है। वहीं इस गुलर की जड़ में बना हुआ कुंड का पानी भी कभी खत्म नहीं होता।

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