सीकर. सिस्टम की लापरवाही का यह बड़ा उदाहरण है। निराश्रित बेटियों का सहारा बनने वाली सामाजिक संस्था ने भी तीन साल से राज्य सरकार से कोई सहयोग नहीं मिलने पर निराश्रित गृह को बंद करने का ऐलान कर दिया है। संस्थान संचालकों ने मंगलवार को बालिका गृह को बंद करने के लिए सरकार को नोटिस भी जिम्मेदार अधिकारियों को भेज दिया है। हैरानी की बात हैं कि तीन महीने पहले भी सीकर का एक संस्थान अनुदान नहीं मिलने के कारण बंद हो चुका है। संस्थान के बंद होने पर सरकार और प्रशासन ने कोई गंभीरता नहीं बरती। अब एक मात्र बचा संस्थान भी बंद हो रहा है। बालिका गृह के बंद होने पर सीकर, झुंझुनूं की लापता व निराश्रित बालिकाओं को जयपुर भेजा जाएगा। बालिका गृह में पढ़ रही बच्चियों को स्कूल छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ेगा। एकमात्र बालिका गृह परमार्थ सेवा समिति ने तीन सालों से अनुदान नहीं मिलने से बालकल्याण समिति को बंद करने का नोटिस भेज दिया है। इतना ही नहीं बालिका गृह में मौजूद 5 बालिकाओं को कहीं अन्य जगह पर शिफ्ट करने का पत्र लिखा है। तीन सालों में बालिका गृह को राज्य सरकार की ओर कोई अनुदान नहीं मिला।
हर महीने से 30से अधिक बच्चियां
बालिका गृह में हर महीने करीब 30 से अधिक बच्चियों को भेजा जाता है। संस्थान ही खाने-पीने, सुरक्षा से लेकर समस्त व्यवस्था करता है। बालिका गृह में भिक्षावृति, लापता व घर से भाग कर निकली बच्चियों को रखा जाता है। ऐसे में अब बालिका गृह के बंद होने पर बच्चियों को जयपुर में भेजा जाएगा। भिक्षावृति में पकड़े जाने वाली बच्चियों को स्कूल में भेजने के लिए व्यवस्था कराई जाती है। यहां तक बच्चों के बीमार होने पर अस्पताल में उपचार कराने व सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी दी जाती है। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि रात के समय में मिलने वाली बच्चियों को तत्काल कहां पर रखा जाएगा और उनके लिए प्रशासन कैसे व्यवस्था करेगा।
घर से निकली बच्चियों को लेकर होगी समस्याजिले में घर से निकली बच्चियों को लेकर सबसे बड़ी समस्या होगी। अपहरण व घर से निकली बच्चियों को पुलिस तलाश कर समिति के समक्ष पेश करती है। ऐसे में कोर्ट में 164 के बयान होने तक बच्चियों को बालिका गृह में ही रखा जाता है। अब ऐसी बच्चियों को जयपुर में ही भेजा जाएगा। जयपुर से ही उन्हें कोर्ट में 164 के बयान दिलाने के लिए लाना होगा। बच्चियों को जयपुर से लाने व ले जाने में जांच अधिकारियों को भी अतिरिक्त समय लगेगा। दुष्कर्म पीडि़ताओं को भी बयान होने तक बालिका गृह में ही रखा जाता है।
बड़ी वजह : हर महीने लाखों का खर्च
2018 में कस्तूरबा सेवा संस्थान व परमार्थ सेवा समिति को अनुमति मिली थी। हर महीने औसतन 30 से अधिक बालिकाओं को बालिका गृह में भेजा जाता है। राज्य सरकार की ओर से हर बालिका को दो हजार रुपए महीने का अनुदान दिया जाता है। बालिका की सुरक्षा, खान-पान व समस्त व्यवस्थाएं बालिका गृह की ओर से दी जाती है। बालिका गृह में मैनेजर से लेकर गाडऱ् तक करीब लाख रुपए वेतन पर खर्च होता है। साथ ही खाने-पीने पर भी खर्च किया जाता है। पिछले साल अस्पताल से एक बालिका के भाग जाने पर बालिका गृह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था।
इनका कहना है : तीन साल से नहीं मिला अनुदानराज्य सरकार की ओर से तीन साल में एक रुपए का भी अनुदान नहीं मिला। जनवरी 2021 में बालिका गृह को बंद करना पड़ा। एक बच्ची के लिए महीने के दो हजार रुपए का अनुदान तय होता है। उसके लिए भी चक्कर लगाने पड़ते है।
हरीनारायण सिंह, मैनेजर, कस्तूरबा सेवा संस्थान
बालिकाओं को भेजना होगा जयपुरबालिका गृह बंद होने पर प्रशासन व आमजन को काफी समस्या होगी। जयपुर में ही बालिकाओं को रैफर कर भेजा जाएगा। बयानों के लिए भी जयपुर से लेकर आना होगा। अभी झुंझुनूं की बालिकाओं को भी सीकर में ही लाया जाता है।
गिरवर सिंह, सदस्य बाल कल्याण समिति
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