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महंगाई की मार से पतंगों पर वार

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करौली. आसमां में इठलाती बल खाती पतंगों की भी इस बार महंगाई ने डोर टाइट कर डाली है। गत वर्षों के मुकाबले इस बार पतंग-मांझे पर महंगाई की मार ऐसी पड़ी है कि पतंग विक्रेता मायूस हैं।
पतंग विक्रेताओं का कहना है कि गत वर्षों के मुकाबले इस बार आधी बिक्री भी नहीं हुई है। करौली में दशकों से रक्षाबंधन और जन्माष्टमी के मौके पर पतंगबाजी की परम्परा रही है। पूरे सावन-भादो माह की फुहारों के बीच यहां आसमां में पतंगें झूमती हैं।
रक्षाबंधन और जन्माष्टमी के दिन तो घरों की छते तड़कें से रात तक आबाद रहती और आसमां में झूमती पतंगों के बीच वो काटा वो मारा का खूब शोर गूंजता, लेकिन पतंगबाजी भी महंगाई से अछूती नहीं रही है।
पतंग विक्रेताओं के अनुसार गत वर्षों तक जो पतंग 3 रुपए की आती थी वह इस बार पांच रुपए और 10 रुपए वाली पतंग 15 रुपए तक की हो गई है। वहीं मांझे की प्रत्येक चरखी पर 100 रुपए तक की बढ़ोतरी हुई है। यानि 750 रुपए की मांझे की चरखी अब 850 रुपए तक पहुंच गई है।
कमोबेश यही स्थिति डोर की है, जिस पर भी महंगाई की मार पड़ी है। हालांकि पतंग विक्रेता यह भी मानते हैं कि भाग-दौड़ भरी जिंदगी और शिक्षा के बढ़ते स्तर में प्रतिस्र्पधा के दौर के कारण बड़े और युवा वर्ग पतंगबाजी के प्रति अधिक लगाव नहीं रखते हैं। हालांकि बच्चों में पतंगबाजी के प्रति उत्साह बरकरार है। पतंग विक्रेता पप्पू, धारा सिंह, विष्णु, मुन्ना, वसीर आदि का कहना है कि गत वर्षों के मुकाबले इस बार बिक्री कम है।
विभिन्न नामों के मांझे-पतंगहालांकि बाजार में विभिन्न प्रकार के मांझे और पतंग आई हैंं। पतंग विक्रेताओं के अनुसार बाजार में जाहिद वाहिद, जाकिर वारसी, काला बिच्छू, नईम कुरैशी, आसमान का तूफान आदि नाम के मांझे आए हैं, जिनमें जाहिद-वाहिद मांझे को अधिक पसंद किया जा रहा है। इसी प्रकार बच्चों में पन्नी की कैटरीना और मोदी पतंग पहली पसंद बनी हुई है। जबकि युवा करौली की लोकल पतंगों को पसंद कर रहे हैं।

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