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क्या डिजिटल मीडिया कि आलोचनाओं से घबरा गई सरकार?

क्या सरकार सोशल मीडिया पर होने वाली अपनी आलोचनाओं से बौखलाई हुई है और उनका मुंह बंद करना चाहती है?
क्या सरकार चाहती है कि ऐसे दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट से जारी हो जाएं जिनके बल पर वह डिजिटल मीडिया की वेबसाइटों पर एक झटके में शिकंजा कस दे और आलोचना का बचा खुचा रास्ता भी बंद हो जाए? केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट मे जो हलफनामा दायर किया है, उससे ऐसा ही लगता है.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफ़नामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए दिशा निर्देश की ज़रूरत नहीं है, यदि ऐसा करना ही हुआ तो यह काम संसद पर छोड़ दिया जाए. लेकिन यदि मीडिया के लिए दिशा निर्देश की ज़रूरत है तो सुप्रीम कोर्ट डिजिटल मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी करे.
केंद्र सरकार ने डिजिटल मीडिया पर शिकंजा कसने की ज़रूरत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ‘डिजिटल मीडिया नफ़रत का ज़हर फैलाता है’ और ‘हिंसा व आतंकवाद को जानबूझ कर उकसावा देता है. इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का यह दूसरा हलफ़नामा है. पहले में सरकार ने कहा था कि यदि उसे मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी करना ही है तो टेलीविज़न नहीं, पहले डिजिटल मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी करे.
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ में ‘यूपीएससी जिहाद’ एपिसोड पर सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने इस कार्यक्रम पर यह कह कर रोक लगा दी है कि इसमें मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है. इसके पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मीडिया में किसी तरह का स्व-नियमन होना चाहिए. कोर्ट ने कहा था, जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थान परिचर्चा का आयोजन कर रहे हैं, यह चिंता का मामला है.
लेकिन सरकार ने जो एफिडेविट दिया है, उसमें इसके उलट टेलीविज़न चैनलों को बचाने की कोशिश की गई है, लेकिन डिजिटल मीडिया को निशाना बनाया गया है। इसे इससे समझा जा सकता है कि हलफनामे में सरकार ने कहा है- वेब-आधारित डिजिटल मीडिया पर कोई अंकुश नहीं है. ज़हरीले नफ़रत फैलाने के अलावा यह हिंसा यहां तक कि आतंकवाद के लिए लोगों को उकसाता है, लोगों और संस्थानों की छवि खराब करने की क्षमता रखता है. दरअसल, यह सबकुछ धड़ल्ले से हो रहा है.
सरकार की मंशा?
सरकार ने कहा है, यदि अदालत दिशा निर्देश जारी करना ही चाहती है तो उसे डिजिटल मीडिया जिसमें वेब मैगज़िन, वेब आधारित न्यूज़ चैनल और वेब आधारित अख़बार हैं, उसके प्रति करना चाहिए क्योंकि उनकी पहुँच ज़्यादा है और वे पूरी तरह अनियंत्रित हैं. ये वेब पत्रिकाएं और चैनल यू ट्यूब पर भी हैं और उसके देखने वाले लाखों-करोड़ों हैं. सरकार की मंशा साफ है. वह टेलीविज़न चैनलों को बचाना चाहती है क्योंकि ज़्यादातर चैनल उसकी चापलूसी में लगे रहते हैं और बढ़ चढ़ कर उसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं.
लेकिन कुछ ऐसी वेबसाइट हैं जो अपनी सीमित संसाधनों के बावजूद सरकार की आलोचना करती रहती है और उसकी खामियों पर लिखती रहती है. सरकार को यह नापसंद है. सरकार की मंशा पर गहरे सवाल है. सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन न्यूज़ चैनल पर ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम के प्रसारण पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा है- आप एक धर्म विशेष को टारगेट नहीं कर सकते किसी एक विशेष तरीक़े से.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी बीच केंद्र सरकार से जानना चाहा है कि मीडिया ख़ासकर टीवी मीडिया में चल रहे कार्यक्रमों के दौरान धर्म और किसी ख़ास संप्रदाय को लेकर होने वाली बातचीत का एक दायरा क्यों नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मीडिया को किसी भी तरह का कार्यक्रम चलाने के लिए बेलगाम नहीं छोड़ा जा सकता.
कोर्ट ने सुर्दशन टीवी के कार्यक्रम को विषैला और समाज को बाँटने वाला क़रार दिया था. जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा था, मीडिया की आज़ादी बेलगाम नहीं हो सकती, मीडिया को भी उतनी ही आज़ादी हासिल है जितनी देश के किसी दूसरे नागरिक को. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा, यह कहना पूरी तरह से ग़लत है कि यूपीएससी में बैठने वाले मुसलिम छात्रों के लिए आयु और विषय चुनने का अलग से पैमाना है, यह बात तथ्यों के आधार पर बिल्कुल ग़लत है. सरकार सुदर्शन चैनल पर कुछ नहीं कह रही है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बचाने की कोशिश कर रही है, लेकिन डिजिटल को निशाने पर ले रही है.
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