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क्या कृषि विधेयकों के विरोध से डर गई सरकार?

क्या सरकार कृषि विधेयकों पर किसानों के गुस्से से डर गई है? या उसे अपने ही मंत्रिमंडल के एक सहयोगी के इस्तीफ़े ने हिला दिया है? या सरकार इन विधेयकों का हो रहे ज़बरदस्त विरोध की हवा निकालने की रणनीति पर चल रही है?
वजह जो भी हो, पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रबी के फसल की कई उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की घोषणा की है. शायद सरकार इसके ज़रिए यह साबित करना चाहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था ख़त्म नहीं की जाएगी. राज्यसभा में रविवार को विधेयक पर बहस के दौरान विपक्षी सदस्यों ने यह आरोप लगाया था कि नए कृषि विधेयकों के पारित होने के बाद एमएसपी की व्यवस्था हटा दी जाएगी.
नरेद्र सिंह तोमर ने गेहूं पर 50 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी का एलान किया. इसी तरह सरकार ने चना पर 225 रुपए, मसूर दाल पर 300 रुपए, सरसों पर 225 रुपए, जौ पर 75 रुपए और कुसुम्भ पर 112 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि कर दी है. कृषि मंत्री ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.
उन्होंने ट्वीट कर यह भी बताया कि 2013-2014 में इन कृषि उत्पादों पर एमएसपी क्या था और अब कितना हो गया. नरेंद्र मोदी की सरकार 2014 में सत्ता में आई. सरकार ने एक बयान में कहा है कि आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की सोमवार को हुई बैठक में एमएसपी बढ़ाने का फ़ैसला लिया गया. इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की.

#MSP#MSPhaiAurRahega pic.twitter.com/DB9prPtAfv
— Agriculture INDIA (@AgriGoI) September 21, 2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोेदी ने ट्वीट कर दावा किया कि इससे करोड़ों किसानों को फ़ायदा होगा और उनकी आमदनी दूनी होने में सहूलियत होगी. पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह सरकार का मास्टर स्ट्रोक है. वह एमएसपी बढ़ोतरी का एलान कर विपक्ष के हाथ से बड़ा हथियार छीन लेना चाहती है, क्योंकि विपक्ष का सबसे अधिक ज़ोर एमएसपी ख़त्म करने की आशंका पर ही था.
राजनाथ सिंह ने रविवार को विधेयक पारित होने के बाद शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि एमएसपी के ख़त्म किए जाने का कोई सवाल ही नहीं है, विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है और ग़लत प्रचार कर रहा है. याद दिला दें कि इसके पहले अक्टूबर 2018 में किसानों ने आन्दोलन किया था और दिल्ली में आकर जम गए थे तो सरकार ने एमएसपी बढ़ाने का एलान किया था.
लेकिन उस समय किसानों को इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ था. इसकी वजह यह है कि सरकार समर्थन मूल्य का ऐलान भले ही समय से पहले कर दे, पर उसकी ख़रीद प्रक्रिया निराशाजनक होती है. उसकी एजेंसी किसानों के पास देर से पहुँचती है, तब तक बिचौलिए औने-पौने में फ़सल ख़रीद चुके होते हैं. इसके अलावा ये एजेंसियां पूरा उत्पाद नहीं ख़रीदती हैं.
स्वामीनाथन आयोग
सरकार ने मशहूर कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई में 2004 में एक आयोग का गठन किया था. उनकी रिपोर्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने का आधार सुझाया गया था. लेकिन उसे न उस समय की सरकार ने लागू किया न मौजूदा सरकार ने. किसानों का कहना है कि अधिकतर मामलों में वे लागत ही नहीं निकाल पाते हैं. बीज, खाद, सिंचाई, मजदूरी में कितना खर्च हुआ, यह तय करने का कोई तरीका सरकार के पास नहीं है. ज़मीन की कीमत की तो बात ही नहीं की जाती है.
ग़लत फ़ॉर्मूला?
लेकिन सरकार जिस फ़ॉर्मूले पर काम करती है, उसके तहत किसान परिवार के लोगों की अनुमानित मज़दूरी और दूसरे उसकी जेब से होने वाले ख़र्च शामिल हैं. यह पूरी तरह अनुमान के आधार पर है, इसकी कई प्रक्रिया नहीं है. इसे ‘ए टू’ फ़ॉर्मूला कहते हैं. स्वामीनाथ आयोग ने इसके लिए ‘सी टू’ फ़ार्मूला’ सुझाया था. इसके तहत बीज, सिंचाई, खाद की कीमत भी एमएसपी में शामिल की जानी चाहिए.
उसके साथ ही किसानों के भरण-पोषण पर होने वाला ख़र्च, कर्ज़ पर चुकाए जाने वाला ब्याज़ और दूसरे पूंजीगत ख़र्च शामिल हों. भले ही यह कीमत वास्तविक न हो, पर सारे ख़र्च जोड़े जाएं. सरकार इससे इनकार करती है. नतीजा यह होता है कि एमएसपी हमेशा वास्तविक लागत से कम होता है. इसलिए एमएसपी बढ़ाए जाने के बावजूद किसान परेशान हैं.
विपक्ष अपनी बात पर अड़ा हुआ है. जिन 8 सदस्यों को हफ़्ते भर के लिए निलंबित कर दिया गया है, उन्होंने संसद परिसर में ही महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना दिया. इसके अलावा कुछ सासंदों ने राष्ट्रपति से मिलकर गुहार लगाई है. शिरोमणि अकाली दल के सांसदों ने सोमवार की शाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर गुजारिश की कि वह इस विधेयक पर दस्तख़त न करें.
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