मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा है कि भारत कोई सामान्य आर्थिक संकट की चपेट में नहीं है बल्कि बहुत ही गंभीर संकट में आ गया है.
इससे पहले अरविंद सुब्रमण्यम ने भारत के जीडीपी डेटा को भी कटघरे में खड़ा करते हुए बताया था कि 2011 से 2016 के बीच भारत का जीडीपी डेटा 2.5 फ़ीसदी बढ़ाकर बताया गया था. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि जीडीपी डेटा अर्थव्यवस्था की संपन्नता का कोई मुकम्मल मानदंड नहीं है. अरविंद का कहना है कि जिस जीडीपी नंबर को वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया गया है उस पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है.
अहमदाबाद के आईआईएम और इंग्लैंड के ऑक्सफर्ड से पढ़े अरविंद सुब्रमण्यम नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तीन साल तक मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे थे. अरविंद जाने-माने अर्थशास्त्री हैं.
न्यूज़ चैनल एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा कि भारत का आर्थिक संकट अब गहरा हो चुका है. उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती मामूली’ नहीं है. अरविंद सुब्रमण्यम ने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि 2011 और 2016 के बीच भारत की जीडीपी ग्रोथ 2.5 फीसदी ज्यादा आंकी गई थी और उन्होंने यह भी चेताया था कि जीडीपी के आंकड़े को अर्थव्यवस्था के हूबहू विकास के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि अब वैश्विक तौर पर भी यह माना जाने लगा है कि जीडीपी के आंकड़े को काफी सतर्कता के साथ देखे जाने की जरूरत है.
अरविंद सुब्रमण्यम ने आयात और निर्यात दर (जो कि क्रमश: 6 और -1 फीसदी गिर चुकी है) के संबध में भी आंकड़े (नॉन ऑयल) रखे. साथ ही साथ उन्होंने पूंजीगत वस्तु उद्योग वृद्धि (10 प्रतिशत की गिरावट) के बारे में बताया. उनके मुताबिक उपभोक्ता वस्तुओं की उत्पादन वृद्धि दर (दो साल पहले के 5 प्रतिशत से अब 1 प्रतिशत) बेहतर संकेतक हो सकते हैं.
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उन्होंने कहा, इसके अलावा निर्यात के आंकड़े, उपभोक्ता वस्तुओं के आंकड़े, कर राजस्व के आंकड़े भी हैं. हम इन सभी संकेतकों को लेते हैं और फिर 2000 से 2002 तक मंदी के काल को देखते हैं और पाते हैं कि भले ही उस समय सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि लगभग 4.5 प्रतिशत थी, लेकिन उस दौरान ये सभी संकेतक सकारात्मक थे. उन्होंने आगे कहा कि आज के समय में भी ये सभी संकेतक या तो नकारात्मक स्थिति में हैं या ये सकारात्मक होने के काफी करीब हैं.
उन्होंने कहा कि यह कोई सामान्य मंदी नहीं, बल्कि भारत के लिए ऐतिहासिक मंदी है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की जीडीपी दर लगातार सात तिमाहियों से नीचे गिरती जा रही है, जो 2019/20 की दूसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है. यह 2018/19 की पहली तिमाही में 8 प्रतिशत पर थी.
हाल ही में अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा था कि फिलहाल अर्थव्यवस्था जिस हालात में है उससे यह साफ है कि यह ICU में जा रही है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के भारत कार्यालय के पूर्व प्रमुख जोश फेलमैन के साथ लिखे गए नए शोध पत्र में कहा था कि भारत इस समय बैंक, बुनियादी ढांचा, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और रियल एस्टेट- इन चार क्षेत्रों की कंपनियां के लेखा-जोखा के संकट का सामना कर रहा है. इसके अलावा भारत ब्याज दर और वृद्धि के प्रतिकूल चक्र में फंसी है. उन्होंने आगे लिखा कि निश्चित रूप से यह साधारण सुस्ती नहीं है. भारत में गहन सुस्ती है और अर्थव्यवस्था ऐसा लगता है कि आईसीयू में जा रही है.
अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा,अर्थव्यवस्था के जो मुख्य आँकड़े हैं वो या तो नकारात्मक हैं या उसके क़रीब हैं. ग्रोथ, निवेश, निर्यात और आयात में वृद्धि से नौकरियां पैदा होती हैं लेकिन सब कुछ नीचे जा रहा है. आपको यह भी देखना होगा कि सरकार सोशल प्रोग्राम पर कितना राजस्व खर्च कर रही है. नौकरी और लोगों की आय में लगातार गिरावट आ रही है.
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