सीकर. शहर में स्थित श्रीकल्याणजी का मंदिर अगाध आस्था के साथ अनूठे इतिहास व अनोखी परंपरा का संगम है। इस मंदिर की महिमा जितनी निराली है, उतना ही रोचक इसका इतिहास व रवायत है। जिसका संबंध डिग्गी के कल्याणजी और राजा कल्याण सिंह के सपने से है।
मनोकामना पूरी होने पर बना मंदिरमंदिर की स्थापना का संबंध सीकर के अंतिम राव राजा कल्याण सिंह से है। इतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि सीकर के राजा माधव सिंह का डिग्गी के कल्याणजी का इष्ट था। जिनसे उन्होंने पुत्र प्राप्ति की मनोकामना की थी। कामना पूरी हुई तो उन्होंने बेटे का नाम भी कल्याण ही रख दिया। इसके बाद कल्याण के राजा बनने की कामना भी उन्होंने डिग्गी कल्याणजी से की। जो 1922 में पूरी होने पर खुद राव राजा कल्याण सिंह ने श्री कल्याणजी का मंदिर ही सीकर में बनवा दिया। इसके बाद राजा कल्याण सिंह यहां रोजाना सुबह शाम मंदिर की आरती में आने लगे। इसी परंपरा में मंदिर की सुबह की आरती आज भी राजा आरती के नाम से की जाती है। जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
मां लक्ष्मी ने सपने में मांगा अलग मंदिरश्रीकल्याण मंदिर में मां लक्ष्मी के श्रीकल्याणजी से अलग रहने की मान्यता भी है। महंत विष्णु प्रसाद शर्मा का कहना है कि मंदिर निर्माण के बाद मां लक्ष्मी राव राजा कल्याण जी के सपने में आई थी और मंदिर में अपनी अलग मूर्ति स्थापना की बात कही। इसके बाद राव राजा ने मां लक्ष्मी का अलग से मंदिर बनवाया। मान्यता है कि मंदिर में मां लक्ष्मी केवल शयन के समय ही भगवान विष्णु के साथ होती है। सुबह होते ही वह अपने अलग स्थान पर चली जाती है। इस मान्यता के चलते मंदिर में आज भी सुबह 4.30 बजे सबसे पहले मां लक्ष्मी को जगाने की आरती परंपरा है।
दिवाली पर ओढ़ी 108 फीट लंबी चुनरीश्रीकल्याणजी के मंदिर में दिवाली पर मां लक्ष्मी को नोटों की पोशाक व 108 फीट लंबी चुनरी पहनाई गई। महंत शर्मा ने बताया कि 16 दिवसीय महोत्सव में दिवाली पर मां लक्ष्मी को नोटों की पोशाक पहनाकर शाम को छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाया गया तथा श्रीयंत्र का वितरण भी किया गया।
इस मंदिर में भगवान विष्णु से अलग रहती है मां लक्ष्मी, दिवाली पर ओढ़ाई 108 फीट लंबी चुनरी
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