सीकर. जिले में जीणमाता और हर्षनाथ मंदिर से इतर एक मंदिर ऐसा भी है जहां मां जीण हर्षभैरुं के साथ विराजती है। इस मंदिर में भैरव भी दो रूप में है। जिनमें एक काले और दूसरे गोरे भैरव है। खास बात यह है कि मंदिर की स्थापना के समय इन दोनों भैरव की कृष्ण और शुक्ल पक्ष के हिसाब से पूजा होती थी। 15 दिन के कृष्ण पक्ष में काले भैरव और शुक्ल पक्ष के 15 दिनों में गोरे भैरव को पूजा जाता था। यह मंदिर हर्ष पर्वत पर गुफा में मौजूद है। जहां हर्ष द्वारा तपस्या कर भैरूत्व प्राप्त किये जाने की मान्यता है। मंदिर 1046 साल पुराना है।
यूं बना मंदिरइतिहास व कथाओं के मुताबिक पहले भाभी के सिर से पानी का पात्र उतारने से नाराज बहन जीण तपस्या में बैठ गई थी। इस पर हर्ष ने उन्हें मनाने की कोशिश की। नहीं मानने पर हर्ष खुद भी हर्ष पर्वत पर गुफा में तप करने लगे। तपस्या से जीण मां जयंती में विलीन हो गई तो हर्ष ने भी भैरुंत्व पा लिया। उन्हीं हर्ष की याद में उसी तपस्या वाली गुफा में इस मंदिर की नींव रखी गई।
राजा सिंधराज ने रखी नींव, सुवास्तु पहले पुजारीइतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि मंदिर की नींव सांभर के राजा सिंधराज ने संवत 1018 में रखी थी। इसके बाद मंदिर का निर्माण चौहान राजा विग्रहराज द्वितीय ने कराया। मंदिर निर्माण की बात चूंकि सांवली निवासी पंडित सुवास्तु ने राजा सिंधराज के सामने रखी थी, ऐसे में सुवास्तु को ही मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया।
उज्जैज काल भैरव के प्रतिरूप काले भैरूंमंदिर में जीणमाता के साथ काले और गौरे भैरूंजी की अलग अलग मूर्ति की भी वजह है। दरअसल यह मंदिर तपस्यालीन हर्ष की याद में बनाया गया था। जिन्हें इस मंदिर में गौरेभैरुं के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। वहीं, उज्जैन के काल भैरव को यहां काले भैरूं के रूप में प्राणप्रतिष्ठित किया गया। बहन जीण के कारण तपस्या करने पर यहां हर्ष के साथ जीण माता की मूर्ति भी स्थापित की गई।
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