Deprecated: The PSR-0 `Requests_...` class names in the Requests library are deprecated. Switch to the PSR-4 `WpOrg\Requests\...` class names at your earliest convenience. in /home/wpexgrjf/aajkalrajasthan.com/wp-includes/class-requests.php on line 24
कितना सफल होगी BJP ‘सेमीफाइनल’ में? | Aajkal Rajasthan ga('create', "UA-121947415-2", { 'cookieDomain': 'aajkalrajasthan.com','allowLinker': true } ); ga('linker:autoLink', ['aajkalrajasthan.com/amp']);

कितना सफल होगी BJP ‘सेमीफाइनल’ में?

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में होने जा रहे एक लोकसभा (Lok Sabha) सीट और तीन विधानसभा (Assembly) सीटों पर उपचुनाव (by-election) के नतीजों से शिवराज सरकार की सेहत पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन ये चुनाव सरकार के कामकाज को लेकर जनता के मूड का आईना जरूर होंगे. इस चुनावी दंगल में दिलचस्पी का विषय यही है कि राज्य के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस अपनी सीटें बचाने और दूसरे की सीट छीनने में कितने कामयाब हो पाते हैं. ये उपचुनाव खंडवा लोकसभा सीट तथा रैगांव, पृथ्वीपुर एवं जोबट विधानसभा सीट पर हो रहे हैं. ये सभी सीटें यहां के जनप्रतिनिधियों के निधन से खाली हुई हैं.
इनमें से रैगांव (अजा) तथा जोबट (जजा) के लिए आरक्षित सीटें हैं, जबकि खंडवा लोकसभा व पृथ्वीपुर विधानसभा सीट सामान्य है. इस बार भाजपा ने सामान्य सीटों पर ओबीसी कार्ड खेला है, जो पार्टी की पिछड़ा वर्ग केंद्रित रणनीति का प्री-टेस्ट भी होगा. पार्टी के लिहाज से पिछले लोकसभा चुनाव में खंडवा सीट भाजपा के नंदकुमार सिंह ने जीती थी तो जोबट तथा पृथ्वीपुर विधानसभा पर कांग्रेस का कब्जा था, जबकि रैगांव विधानसभा सीट भाजपा ने जीती थी. जहां तक चुनावी मुद्दों की बात है तो स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण ही इन चुनावों में निर्णायक होंगे. हालांकि आसन्न बिजली संकट और प्रदेश में उर्वरक वितरण में व्यवस्था जल्द न सुधरी तो किसानों की नाराजी सत्तारूढ़ भाजपा को महंगी पड़ सकती है.
इसके अलावा जोबट और पृथ्वीपुर में दलबदलू को टिकट देना भाजपा के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है. कांग्रेस इन उपचुनावों को राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान रही है, जबकि भाजपा उपचुनाव के नतीजों को शिवराज सरकार के कामकाज पर जनता की मोहर के रूप में देखेगी. लिहाजा दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है. जहां तक इन सीटों के राजनीतिक चरित्र की बात है तो खंडवा सीट पर बीते 25 सालों में (2009 के लोकसभा चुनाव का अपवाद छोड़कर) यहां से भाजपा ही जीतती रही है. खंडवा लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल हैं.
ये सीटें भी चार जिलों खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन और देवास जिलों में बंटी हैं. इस लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर बीजेपी, 4 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी का कब्जा है. 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले कांग्रेस के अरूण यादव इस बार भी अपनी उम्मीदवारी पक्की मान रहे थे. उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू भी कर दिया था. लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के चलते उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली. वैसे तो इस सीट पर कुल 16 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही है. कांग्रेस ने यहां से अपने पुराने नेता राजनारायण सिंह पुरनी को टिकट दिया है.
राजनारायण पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं और उनकी छवि निर्विवाद है. वो जाति से ठाकुर हैं. भाजपा ने जवाबी चाल चलते हुए ज्ञानेश्वर पाटिल पर दांव खेला है. पाटिल ओबीसी हैं. इस सीट पर दिवंगत सांसद नंदकुमार सिंह के बेटे हर्ष सिंह चौहान की भी दावेदारी थी. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान उनके पक्ष में थे, लेकिन स्थानीय राजनीति में नंदकुमार सिंह की धुर विरोधी रही भाजपा की अर्चना चिटनिस के विरोध तथा हर्ष को मजबूत प्रत्याशी न मानने के संगठन के आकलन के चलते ज्ञानेश्वर को टिकट मिला. ज्ञानेश्वर नंदकुमारसिंह के करीबी भी रहे हैं. कांग्रेस के पुरनी अच्छे उम्मीदवार हैं, लेकिन कांग्रेस में अंतर्कलह काफी है. उसकी सारी उम्मीदें इस समीकरण पर टिकी हैं कि खंडवा लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 4 आदिवासी सीटों पर उसे अच्छा समर्थन मिलेगा.
लेकिन भाजपा ने भी आदिवासियों में पैठ बनाई है साथ ही उसके पास मजबूत संगठन भी है. इस सीट पर एससी/एसटी तथा ओबीसी वोटर निर्णायक होंगे. वैसे भी खंडवा लोकसभा सीट पर ज्यादातर बुरहानपुर क्षेत्र का उम्मीदवार ही जीतता रहा है. यह बात भी ज्ञानेश्वर के पक्ष में जाती है. लिहाजा कांग्रेस के लिए भाजपा से यह सीट छीनना आसान नहीं है.
इस सीट पर कांग्रेस की मजबूत पकड़
बाकी तीन विधानसभा सीटों पर गौर करें तो जोबट सुरक्षित (आदिवासी) सीट पर कांग्रेस की मजबूत पकड़ रही है. यह पूर्व केंद्रीय मंत्री व वर्तमान विधायक कांतिलाल भूरिया का प्रभाव क्षेत्र है. केवल 2013 व 2018 में यह सीट भाजपा ने जीती थी. 2018 में भाजपा से विधायक रहीं कलावती भूरिया के निधन से ही यह सीट खाली हुई है, जबकि 2008 में कांग्रेस के टिकट पर जीती सुलोचना रावत इस बार कांग्रेस छोड़ भाजपा के बैनर पर चुनाव में उतरी हैं. दलबदलू को टिकट देने का भाजपा में भीतर काफी विरोध है.
यदि कार्यकर्ताओं की नाराजी दूर न हुई तो कांग्रेस, भाजपा से यह सीट छीन सकती है. कांग्रेस ने इस सीट पर महेश पटेल को टिकट दिया है. यहां से कांग्रेस के कुछ बागी प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में उतरे थे, जिन्हें अब मना लिया गया है. ऐसे में मुकाबला सीधा है. यहां रोजगार के लिए पलायन करने वाले आदिवासियों के वोट भी काफी महत्वपूर्ण होंगे. इसी तरह पृथ्वीपुर सामान्य विधानसभा सीट पर ज्यादातर कांग्रेस ही जीतती रही है. केवल 2013 में इस सीट पर भाजपा ने कब्जा किया था. उसके बाद 2018 में फिर कांग्रेस के ब्रजेन्द्र सिंह राठौर यहां से जीते थे. ब्रजेन्द्र सिंह राठौर की छवि काफी अच्छी थी. कांग्रेस ने उनके बेटे नितेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है.
नितेन्द्र को सहानुभूति का लाभ मिल सकता है, जबकि भाजपा ने इस सीट से शिशुपाल सिंह यादव को टिकट देकर पिछड़ा वर्ग का कार्ड खेला है. शिशुपाल भी आयातित प्रत्याशी हैं. वो पहले समाजवादी पार्टी में थे. शिशुपाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के एक बागी नेता अखंड प्रताप सिंह द्वारा चुनाव मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरना है. अखंड का यादव समाज में काफी असर है. अगर वो चुनाव मैदान में डटे रहे तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है. साथ ही आयातित प्रत्याशी का पार्टी के भीतर विरोध है ही. वैसे अखंड ‘पॉलिटिकल टूरिस्ट’ श्रेणी के नेता हैं. वो सभी पार्टियों में रह चुके हैं.
उधर कांग्रेस की सारी उम्मीदें इस साल दमोह में हुए उपचुनाव में अपनी जीत के भरोसे टिकी हैं. सतना जिले की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रैगांव विधानसभा सीट भाजपा के विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन से खाली हुई है. यहां भाजपा के टिकट के लिए बागरी परिवार में अंतर्कलह मची थी. अंतत: भाजपा ने प्रतिमा  बागरी को टिकट दिया. इस सीट पर अनुसूचित जाति के वोट काफी हैं. प्रतिमा बागरी के मुकाबिल कांग्रेस की कल्पना वर्मा हैं. दोनो ही सुशिक्षित उम्मीदवार हैं.
कल्पना पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से लड़ी थीं और दूसरे नंबर पर रही थीं. इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभाव रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा यहां से भाजपा ही जीती है. सुरक्षित सीट होने से यहां अनुसूचित जाति के वोट निर्णायक हैं. इसमें भी बागरी समुदाय की बहुतायत है. ऐसे में अमूमन बागरी प्रत्याशी ही जीतता आया है. इसीलिए भाजपा ने प्रतिमा बागरी पर दांव खेला है. अगर सवर्ण वोट ज्यादा नहीं बंटा तो प्रतिमा सीट निकाल सकती हैं. मुख्यमंत्री शिवराज भी इस सीट को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैं.
The post कितना सफल होगी BJP ‘सेमीफाइनल’ में? appeared first on THOUGHT OF NATION.

Aajkal Rajasthan

Share
Published by
Aajkal Rajasthan

Recent Posts

शादी से एक दिन पहले पानी के टैंकर को लेकर हुई चाकूबाजी में दुल्हा गंभीर घायल

श्रीमाधोपुर/सीकर. राजस्थान के सीकर जिला के श्रीमाधोपुर इलाके के नांगल भीम गांव में पानी के…

2 years ago

अब बेरोजगारों को हर महीने भत्ते के मिलेंगे चार हजार

  सीकर.प्रदेश के बेरोजगारों के लिए राहतभरी खबर है। अगले साल से बेरोजगारों को अब…

2 years ago

रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह का यूपी सरकार पर तंज

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार (Yogi Sarkar) एक के बाद एक कई सवालों के घेरे…

2 years ago

कोरोना: तीसरी लहर संभावित, तैयारियां अधरझूल !

सीकर. कोरोना का नया वेरिएंट ओमीक्रोन आने के बाद केन्द्र के साथ ही प्रदेश सरकार…

2 years ago

रीट आंसर की में बदलाव: बदलेगा मेरिट का गणित, किसी के धकधक, कई दौड़ में शामिल

सीकर. 36 दिन में रीट का परिणाम जारी कर अपनी पीठ थपथपाने वाले राजस्थान माध्यमिक…

2 years ago

बैंक में दूसरे का पट्टा रखकर उठाया 40 लाख का लोन, चीफ मैनेजर सहित दो को पांच वर्ष की सजा

सीकर. फर्जीवाड़े के लिए लोग कुछ भी कर सकते हैं। सहयोग के नाम पर कर्ज…

2 years ago