यह एक सत्य घटना पर आधारित आलेख है। बात 12 सितंबर 2020 की है। गुरूजी अपने स्कूल से लौटकर खाना खाने के बाद, आराम करने के बहाने लेटे ही थे, कि उनकी आंख लग गई। थोड़ी देर बाद फोन की घंटी बजी तो गुरूजी संभलकर उठे। फोन में से आवाज आई- सर,नमस्ते! मैं एचडीएफसी बैंक से सुनिता…..क्या लोन की रिक्वायरमेंट है।
गुरूजी ने ‘नहीं’ कहते हुए फोन काट दिया,क्योंकि ऐसे फोन दिन में कई बार आते थे और फिर गुरुजी को लोन की जरूरत भी नहीं थी। गुरूजी लोन लेने के पक्ष में कभी नहीं रहे, क्योंकि उन्होंने अपने सुशिक्षित अध्यापक पिता और अशिक्षित, लेकिन व्यवहार कुशला,धर्मपरागणा माताजी से परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई के साथ-2 यह भी सीखा था, कि व्यक्ति को तीन रुपैया का काम तभी करना चाहिए,जब अंटी (बैलेंस) में पाँच रुपैया हो। वरना तो किया गया काम… नींद बेचकर,उनींद खरीदने के बराबर है।
महिला एजेंट का फोन काट देने के बाद गुरुजी ने सोचा… “अब क्या सोना है। चलो वाट्सएप देखते हैं..विभाग का कोई नया ‘आदेश’ या नया ‘कोर्स’ आ गया हो।”इन दिनों शिक्षा विभाग में अध्यापकों को ऑनलाइन शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स करवाए जा रहे हैं। नया कोर्स आते ही सबसे पहले,उसे पूर्ण कर ‘सर्टिफिकेट’ प्राप्त करना, गुरुजी की आदत सी बन गई थी। विद्यालय और विभाग से जुड़ा कोई काम बकाया पड़ा रहे तो उनके मन में ‘अपराध बोध’ होता था।
व्हाट्सएप देखते समय सबसे पहले जो मैसेज गुरुजी के सामने आया, उसमें लिखा था-
“सर, मैं मोहित सेन की छोटी सिस्टर खुशी सेन…मेरे को 9th क्लास के गणित के प्रश्न के उत्तर समझादोगे क्या??””मैं भी ब्यावर से हूँ।”मैसेज पढ़ते ही गुरुजी का मन अति प्रसन्न हुआ, मन में खुशी का गुब्बार सा फूटा। जब भी कोई विद्यार्थी गुरुजी से सवाल का हल पूछा करता था, तो गुरुजी के ज्ञान का स्रोत यूँ उमड़ने लगता जैसे अपने भूखे बच्चे को गोद में लेने के बाद मां के स्तनों से दूध उमड़ने लगता है।गुरुजी को बहुत खुशी हुई…क्यों नहीं होती? एक शिक्षक के लिए इससे बढ़कर खुशी क्या हो सकती है,कि कोई दूर बैठा ज्ञानपिपासु शिष्य, उनके शिक्षण कौशल पर अटूट विश्वास कर, अपनी ज्ञानपिपासा शांत करने हेतु विनम्र निवेदन करें। खुशी इस बात की भी हुई कि कोरोनाकाल में विभाग के अधिकारी, कर्मचारी और शिक्षकों द्वारा शिक्षा का ढांचा सुधारने व बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने हेतु किए जा रहे ऑनलाइन प्रयास सफल हो रहे हैं। बच्चे पढ़ाई के प्रति जागरूक हो रहे हैं। बच्चे कोरोना के साथ जीना सीख रहे हैं। शिक्षक का पेशा एक पवित्र पेशा है और शिक्षक समाज व शिष्य को कुछ देकर ही खुश होता है.. लेकर नहीं। फिर… चाहे वह ज्ञान की सीख हो। चाहे आचरण की सीख हो। चाहे संस्कार की सीख हो।
गुरुजी ने विद्यार्थी के मैसेज के उत्तर में लिखा– जरुर समझाएंगे, बेटा! क्यों नहीं? बताओ, क्या समस्या है।थोड़ी देर बाद कक्षा-10 की गणित प्रश्नावली 1.1 के चार प्रश्नों का फोटो मैसेज आया। जिसके साथ लिखा था। इन प्रश्नों का आंसर भेजिए,सर
गुरुजी ने चारों प्रश्नों को खूब अच्छी तरह समझाते हुए एक कोरे कागज पर हल किया और फोटो खींचकर खुशी को भेज दिया। शायद वह भी इस इंतजार में बैठी थी कि सर का मैसेज आएगा। उसने प्रश्नों का हल समझने के बाद खुशी-खुशी लिखा-थैंक यू सर”आप बहुत अच्छा पढ़ाते हैं। मेरा भाई मोहित लोकडाउन में आपसे ऑनलाइन पढ़कर 10 वीं बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हो गया है। वह आपका एहसानमंद है। उसी ने मुझे आप से पढ़ने का सुझाव दिया है,सर।” यह बात सच है कि,लोकडाउन के दौरान गुरुजी ने अपने घर से ही डिजिटल लर्निग के माध्यम से बहुत सारे बच्चों की डूबती नाव को किनारे लगाया था।
उस समय एक बोधकथा के माध्यम से गुरुजी ने सबको समझाते हुए कहा था- “संकट ही नहीं.. सेवा का सुअवसर भी है…कोरोना।किसी जरूरतमंद की सहायता करके इसका लाभ उठाओ।”प्रतिदिन जब गुरुजी सोशल मीडिया पर डालने के लिए शिक्षण का वीडियो तैयार करते थे तो मुझे भी कैमरामैन बनकर उनका सहयोग करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।वो भी क्या दिन थे? सब कुछ अचानक सा हुआ था। तेजी से फैली कोरोना बीमारी के आतंक से सभी व्यवस्थाएं ठप हो गई थी। मानव हतप्रभ और स्तब्ध रह गया था। सरकार को लोक डाउन के कारण माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं बीच में ही रोकनी पड़ी थी।
जब शिक्षा की श्रृंखला टूटने लगी, ढांचा चरमराने लगा तो माननीय शिक्षामंत्री महोदय श्री गोविंद सिंह जी डोटासरा तथा माननीय शिक्षा निदेशक महोदय श्री सौरभ स्वामी ने शिक्षकों को वर्क फ्रॉम होम का निर्देशन दिया। इसी निर्देश की पालना में गुरुजी ने 25 अप्रैल 2020 को अपना पहला ऑनलाइन शिक्षण वीडियो जारी किया। जिसमें गणित को रुचिकर बनाने तथा परीक्षा उपयोगी तैयारी की बारीकियां समझाने के साथ-साथ बच्चों को दिया गया संबलन इतना दमदार था कि इस वीडियो को विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं अधिकारियों ने अत्यधिक पसंद किया। अपनी प्रतिक्रियाएं दी और उसे अधिक से अधिक शेयर भी किया। इससे गुरुजी का मनोबल बढ़ा। फिर क्या था,एक-एक करके गुरुजी ने 28 परीक्षापयोगी वीडियो जारी किए।इनको सोशल मीडिया पर यूट्यूब,फेसबुक, व्हाट्सएप और टि्वटर के माध्यम से अधिक से अधिक शेयर किया। इन वीडियोस को स्माइल कार्यक्रम में शामिल करने के लिए भी गुरुजी ने आरएससीईआरटी उदयपुर के लिंक पर भी अपलोड किया। विभाग द्वारा संचालित कार्यक्रम स्माईल,शिक्षादर्शन और शिक्षावाणी से भी बच्चों को जोड़ा। शिक्षक होने के नाते उन्होंने अपना फर्ज समझकर सभी विभागीय कार्यक्रमों का अधिक से अधिक प्रचार प्रसार किया। विभाग के प्रत्येक कार्यक्रम को अभिभावकों तक पहुंचाने के लिए गुरुजी जी-जान लगा देते है,चाहे पॉच बच्चों को स्माईल कालिंग करना हो,चाहे नौ बैग डे के लिए जिंगल तैयार करना हो,चाहे विद्यालय में नामांकन वृद्धि और नव प्रवेश प्रवेश के प्रचार प्रसार हेतु ऑनलाइन आवेदन पत्र तैयार करना हो, चाहे कोरोना से बचाव हेतु लोगों को जागरूक करना हो।
कोरोनाकाल में गुरुजी के ऑनलाइन शिक्षण वीडियो से पढ़कर बच्चे गृह कार्य भेजने लगे,समस्या का हल ढूंढने लगे, ब्यावर से मोहित ही नहीं,रुल्याणा माली से दिलीप और प्रमोद,सीमारला जागीर से सचिन कुड़ी,सोनागर चित्तौड़गढ़ से बबलू और मुरली धाकर, बांसवाड़ा से गर्वित पुरोहित, राजसमंद से तुलसीदास, गोरधनपुरा से सुरेंद्र कुमार तथा जयपुर, पाली ,जालौर ,हनुमानगढ़ भीलवाड़ा आदि स्थानों से हजारों विद्यार्थी उनके व्हाट्सएप से जुड़े। अपने सवालों का समाधान पूछते रहे। धीरे धीरे उनके मन से परीक्षा का हौवा निकल गया। गणित का डर जाता रहा। मेरा अनुमान है कि लगभग 50000 बच्चों ने उनसे ऑनलाइन शिक्षण प्राप्त किया है। दसवीं बोर्ड परीक्षा में अच्छी सफलता अर्जित करने के बाद अनेक शिष्यों ने जब गुरुजी का शुक्रिया अदा किया और कहा- थैंक यू सर
तो गुरुजी का सीना गर्व से फूल गया। औरों के लिए यह महज 3 शब्द रहे होंगे।
लेकिन गुरु जी के लिए यह सबसे बड़ा शिक्षक सम्मान था। अब गुरुजी को शिक्षक सम्मान न मिलने का कोई मलाल नहीं है।
जय हिन्द,जय भारत।
लेखक-भगवान सहाय शर्मा खाटूश्यामजीवरिष्ठ अध्यापक सेठ मांगीलाल चंपालाल राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय आभावाससीकर राजस्थान
- Advertisement -
- Advertisement -
- Advertisement -