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गांधी जयंती विशेष: सीकर के जमनालाल बजाज से मिला था महात्मा गांधी को ‘बापू’ नाम

सीकर. आज गांधी गांधी जयंती है। महात्मा गांधी का जन्म दिन। जिन्हें देश राष्ट्रपिता व बापू के नाम से भी संबोधित करता है। गांधीजी को महात्मा की संज्ञा रविन्द्रनाथ टैगोर व राष्ट्रपिता की संज्ञा सुभाष चंद्र बोस ने दी थी। लेकिन, शायद ही कोई जानता है कि उन्हें बापू की संज्ञा सीकर के लाल व प्रसिद्ध उद्योगपति जमनालाल बजाज की वजह से मिली। जिन्होंने गांधीजी को पिता के रूप में गोद लिया था। जिसके बाद से वे गांधीजी के पांचवे पुत्र भी कहलाए। इतिहासकारों के अनुसार उन्हीं के सार्वजनिक रूप से बापू कहने पर ही गांधीजी को अन्य लोग भी बापू कहने लगे। यही नाम धीरे- धीरे प्रचलन में बढ़ते हुए गांधीजी का संबोधन बन गया।
1920 के नागपुर अधिवेशन में रखा था गोद का प्रस्तावमहात्मा गांधी को गोद लेने का प्रस्ताव जमनालाल बजाज ने 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में उनके सामने रखा था। जिसका जिक्र जमनालाल बजाज की जीवनी पर मुंबई से प्रकाशित शोभालाल गुप्त की ‘जन्मभूमि से बंधा मन (जमनालाल बजाज व राजस्थान)’ में है। जिसमें लिखा है कि 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन से जमनालाल बजाज ने खुद को गांधीजी के पांचवे पुत्र के रूप में समर्पित कर दिया था। इतिहासकार महावीर पुरोहित भी लिखते हैं कि जमनालाल बजाज ने प्रस्ताव रखा कि जिसके बेटा नहीं होता वह बेटा गोद लेता है। पर मेरे तो जन्मदाता पिता कनीराम व दत्तक पिता बच्छराजजी दोनों ही नहीं रहे। अब मैं किसको पिता या बापू कहूं? लिहाजा मैं आपको पिता के रूप में गोद लेना चाहता हूं। यह प्रस्ताव सुन गांधीजी एकबारगी तो अचरज में पड़़ गए। उन्होंने मौजूद लोगों से पूछा कि जमन क्या कह रहे हैं? इस पर सभी ने कहा कि वे ठीक कहते हैं। उसी दिन से गांधी जी को वे बापू कहने लगे और इस नाम से वे विख्यात होने लगे। जमनालाल बजाज गांधीजी के स्वदेशी, खादी व सत्याग्रह सहित सभी आंदोलनों में उनके सहयोगी रहे।
काशी का बास में जन्मे थे जमनालाल जमनालाल बजाज का जन्म सीकर के काशी का बास गांव में कनीराम व बिरदीबाई के घर हुआ था। जिन्हें वर्धा के सेठ बच्छराज ने गोद ले लिया था। बाद में वे बाल गंगाधर तिलक, रविन्द्र नाथ टैगोर, मदनमोहन मालवीय व गांधीजी के संपर्क में आए। प्रदेश के प्रजामंडल आंदोलन सहित देश के कई आंदोलनों में शामिल रहे जमनालाल कांग्रेस व रियासती आंदोलन के बीच मजबूत कड़ी थे।
गांधीजी ने कस्तूरबा गांधी को भेजा सीकरगांधीजी की पत्नी कस्तूरबा गांधी का भी सीकर से संबंध रहा है। 1938 में जब जयपुर व सीकर सियासत के बीच सशस्त्र संघर्ष की स्थिति पैदा हो गइ तो गांधीजी ने कस्तुरबा गांधी को सीकर भेजा था। जो बजाज रोड स्थित बजाज भवन में रुकी थी। यहां से वह फतेहपुरी गेट के रास्ते पैदल चलकर सुभाष चौक गढ़ में पहुंची। जहां उन्होंने रावरानी स्वपूर कंवर से भेंट करने सहित सीकर में शांति स्थापित करने के कई प्रयास किए थे।
अपने पत्र हरिजन में किया पलथाना के कुएं का उल्लेखगांधीजी अपने पत्र हरिजन में सीकर के पलथाना गांव के एक कुएं का जिक्र भी कर चुके हैं। इतिहासकार पुरोहित के अनुसार गांव में कुए से हरिजनों को पानी नहीं भरने देने पर पचार गांव निवासी कांग्रेस कार्यकर्ता गोविंदनरारायण हिन्दुस्तानी ने गांव में सत्याग्रह किया था। जिसका जिक्र गांधीजी ने अपने पत्र हरिजन में किया था। लेख के असर से ब्रिटिश सरकार ने गांव में दूसरा कुआं बनाने के लिए सीकर रियासत को तार भी भेजा था।

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