रावतभाटा. मरे हुए पशुओं को खाकर वातावरण को दूषित करने से बचाने में सहायक गिद्द प्रजाति अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। हालात यह है कि अकेले भैंसरोडगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य में मात्र 80 गिद्द ही रह गए हैं, जबकि पांच साल पहले तक इनकी संख्या काफी ज्यादा थी। अधिकारियों का कहना है कि यदि उक्त प्रजाति पूरी तरह से लुप्त हुई तो प्रकृति का पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह बिगड़ जाएगा। यहां मरे हुए पशु, सांप, चूहे सहित अन्य जानवर पड़े रहेंगे। वन्य क्षेत्रों व ग्रामीण इलाकों में महामारी सहित अन्य रोग फैलने का अंदेशा बना रहेगा। हालांकि मरे हुए पशु अन्य पक्षी व जानवर भी खाते हैं, लेकिन गिद्द इन्हें पूरा खाकर खत्म कर देेते हैं, जिससे बीमारियां नहीं फैलती है। भैंसरोडगढ़ वन्य जीव अभ्यारण के वनरक्षक राजेन्द्र चौधरी ने बताया कि अभ्यारण्य में चार प्रकार की गिद्द प्रजाति (वल्चर) पाई जाती थी। इसमें लोंग बिल्ड वल्चर, इजीपशियन वल्चर, वाइट बेग्ड वल्चर व किंग वल्चर प्रमुख है। वर्तमान में किंग वल्चर का एक भी गिद्द नजर नहीं आता है। करीब पांच साल पहले तक उक्त प्रजाति का कुंभा सांकल खो, रीचा खो पर भी पाया जाता था, लेकिन अब यहां पर एक भी गिद्द नहीं है। वर्तमान में ये मात्र रेवाजर झरने व ब्रिज साइड में ही दिखाई दे रहे हैं। रेवाझर झरने के पास इनकी संख्या करीब 50 है, जबकि ब्रिज साइड में मात्र 30 ही रह गए हैं।
प्रजाति लुप्त होने का प्रमुख कारणवनरक्षक राजेन्द्र चौधरी ने बताया कि गाय, भैंस, बकरी सहित अन्य पशुओं के बीमार होने या चोट लगने पर पशुपालक जानवरों को एक विशेष प्रकार की दवाई देते थे। यह दवाई पशुओं को ठीक तो कर देती थी, लेकिन उनके ह्रदय में जमा हो जाती थी। कुछ समय बाद उक्त पशु की भी मौत हो जाती थी। फिर मरे पशुओं को गिद्द खाते थे। उक्त दवाई पशुओं के जरिए गिद्द के अन्दर चली जाती थी। गिद्दों के भी ह्रदय में जमा हो जाती थी। इससे उनकी भी मौत होने लगी। बाद में सरकार ने उक्त दवाई के क्रय व विक्रय पर पाबंदी लगा दी। दूसरा प्रमुख कारण पॉलोथिन हैं। पशु पॉलीथिन खाते हैं, उनके मरने के बाद गिद्द पशु खाते थे तो उन तक भी पहुंचती है और मौत हो जाती है।
बचाने के लिए कर रहे हैं भरसक प्रयासचौधरी ने बताया कि गिद्द की प्रजाति को बचाना आवश्यक है। ऐसे में लोगों को प्रकृति में इनका महत्व समझाया जा रहा है। साथ ही इनके पास जाने, मरे जानवरों पर विषाक्त पदार्थ डालने से लोगों को रोका जा रहा है। भैंसरोडगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य ब्रिज साइड में एक वल्चर प्वाइंट है। थोड़ी ही दूरी पर करीब 40 लाख रुपए की लागत से एक वॉच टावर विकसित किया जा रहा है। गिद्द प्रजाति धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। इन्हें बचाने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। उन्हें प्रकृति पर गिद्दों का महत्व समझाया जा रहा है।दिनेश नाथ, रेंजर, वन्य जीव अभ्यारण, भैंसरोडगढ़
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