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बेवा मां तो कहीं बुजुर्ग पिता से कोरोना ने छीन लिया इकलौता चिराग, अब मदद पर टिके परिवार

सीकर/ लक्ष्मणगढ़. कोरोना ने कई परिवारों को जीवनभर नहीं भरने वाले जख्म दिए हैं। किसी बेवा मां से इकलौता बेटा छिन गया तो कहीं मासूम बच्चों के सिर से मां- बाप का साया उठ गया। कोई इलाज के खर्च में लाइलाज कर्ज ले बैठा, तो किसी की बाकी जिंदगी अब संघर्षों के मझधार में आ फंसी है। दर्द की ऐसी ही दुखभरी दो दास्तां लक्ष्मणगढ़ व अजीतगढ़ से सामने आई है। जहां एक बेवा व एक बुजुर्ग मां-बाप मोटा कर्ज लेकर भी घर के चिराग को नहीं बचा पाए।
पिता के बाद खोया बेटा, अब सहमी रहती है मांलक्ष्मणगढ़ के वार्ड 18 निवासी कुमावत परिवार से भी सामने आई है। जहां एक बेवा मां के इकलौते चिराग के लिए भी कोरोना कू्रर काल बनकर आया और पूरे परिवार को ही बिखेर गया। यहां पांच साल पहले पति को खो चुकी सावित्री देवी का इकलौता 25 वर्षीय बेटा राहुल 6 मई को कोरोना की चपेट में आया था। जिसे फतेहपुर के निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। सुधार नहीं हुआ तो सीकर लेकर गए। सिलाई कर परिवार पाल रही सावित्री ने 50 हजार रुपए कर्ज लेकर उसका हर संभव उपचार करवाया। लेकिन, 15 मई को राहुल मां को हमेशा के लिए अकेली छोड़कर चला गया। तब से मां सावित्री बेटे के सदमे में सहमी सी रहती है। एक बेटी के पालन पोषण की जिम्मेदारी व कर्ज के बोझ तले दबी सावित्री को अब सरकारी व भामाशाहों की मदद ही जिंदगी के मझधार से कुछ उबार सकती है।
चार लाख का कर्ज लेकर भी बेटे को नहीं बचा पाया बूढ़ा पिताअजीतगढ़. ढाणी भजना वाली के मालीराम के लिए कोरोना दूसरी लहर बड़ा दर्द लेकर आई। जवाब बेटे दिनेश सैनी के कोरोना होने पर परिवार ने चार लाख रुपए का कर्ज लिया, लेकिन बेटा नहीं बच पाया। इस इस बूढ़े बाप की आंखों में बेटे को खोने के दर्द के साथ झुके हुए कंधों पर कर्ज उतारने का भी बोझ है। 62 वर्षीय बुजुर्ग मालीराम सैनी अजीतगढ़ के बस स्टैंड पर फलों का ठेला लगाकर जीवन यापन करने के साथ बच्चों की परवरिश कर रहा था। तीस वर्षीय बेटे दिनेश की छह माह पहले ही उसने शादी की थी। मालीराम बताता है..दिनेश केा अचानक बुखार आया। सांस में तकलीफ होने पर उसे सरकारी चिकित्सालय में लेकर गए, जहां से रैफर कर दिया। दिनेश को पहले चौमंू के दो निजी अस्पतालों में लेकर गए, लेकिन ऑक्सीजन बैड नहीं होने के कारण उसे भर्ती करने से मना कर दिया गया। किसी बड़े आदमी की सिफारिश करवा कर अस्पताल में भर्ती करवाया। पुत्र के उपचार े लिए चार लाख रुपए का कर्ज किया। सात दिन में ही चार लाख रुपए भी खर्च हो गए और पुत्र को भी बचा नहीं पाया। मालीराम कहता है उसके पास ना कोई जमीन है और ना ही कारोबार। उसके पास तो महज एक ठेला है, जिस पर फल बेचकर वह कब तक कर्ज उतार पाएगा। बेटा जिंदा रहता तो काम में हाथ बंटाता अब तो भगवान ही रखवाला है।

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