नरेंद्र शर्मा. आइए! बारिशों का मौसम है! बारिश…प्रकृति की सबसे सुंदर रचना! जो तन और मन को झंकृत कर दे!सब को इसका इंतजार! जब इठलाकर बरसती है, तो इसके संग बच्चे जहां ठिठोली करते हैं, वहीं कोई झमाझम में नहाता है, कोई रिमझिम में भीगता है। धरा तृप्त…और प्रकृति में निखार! संभवत: बारिश के यहीं मायने हैं, लेकिन सीकर के लिए बारिश इन सबसे अलग मुसीबतों की वायस है। यहां न बारिश के अहसासों को जीया जाता है और न ही बारिश की सुंदरता को महसूस किया जाता, बल्कि इसके उलट बारिश के बाद उपजे हालातों के लिए बारिश को ही दोषी ठहराया जाता है। सीकर में बारिश के मायने हैं शहर का गर्के दरियां होना यानि पूरा शहर पानी से लबालब भर जाता है, जैसे कोई बर्तन हो। ऐसा नहीं है कि बारिश की हमें चाह नहीं…लेकिन जिम्मेदारान महकमों की नाकामी के कारण बारिश सुकून के बजाय बेचैनी पैदा करती है। शहर के बजाज रोड क्षेत्र तो अलहदा है ही, अन्य क्षेत्रों में भी पानी घुटनों तक भर जाता है। बजाज रोड क्षेत्र के नाले पर पिछले २०-३० सालों में करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन पानी भराव की समस्या आज भी वैसी ही है, जैसी तीस साल पहले थी। अब नवलगढ़ रोड पर ऐसे ही हालात बनने लगे हैं। पूरी नवलगढ़ रोड बारिश के बाद झील सरीखी बन जाती है। शहर के अन्य हिस्सों में भी कमोबेश बारिश के बाद ऐसे ही हालात बन जाते हैं। पूरे शहर में पानी का भराव हो जाता है। शहर में लगातार दो दिन मंगल और बुध बारिश हो रही है। इसी अनुपात में शहर जलमग्न है। कोई इलाका ऐसा नहीं है जिनमें पानी न भरा हो। अब चर्चा यह कि शहर के ऐसे हालात क्यों हैं? शहर में बजाज रोड सरीखे पानी निकासी के बड़े नाले दर्जनभर हैं। इसके अलावा छोटे नाले सैकड़ों की संख्या में है। बारिश से पहले नगर परिषद करोड़ों के बजट से इनकी सफाई और मरम्मत का काम करवाती है। लेकिन आम चर्चा है कि पूरा पैसा इन नाले नालियों की मरम्मत में खर्च नहीं होता, बल्कि अधिकारियों की जेब में चला जाता है। लिहाजा नाले अवरूद्ध ही पड़े रहते हैं। उनमें पानी की निकासी नहीं होती और पानी शहर में भर जाता है। दोष फिर बारिश के सिर मढ़ दिया जाता है। जबकि निकाय अधिकारी, जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन ईमानदारी से यदि काम करवाए, तो यह बहुत बड़ी समस्या नहीं जिसका निदान न हो सके।
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