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Chandrayaan-2: चंद्रयान-2 की लैंडिंग के समय लैंडर विक्रम से संपर्क टूटा,

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आजकलराजस्थान नई दिल्ली

Chandrayaan 2: भारत के मून लैंडर विक्रम से उस समय संपर्क टूट गया, जब वह शनिवार तड़के चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ रहा था. इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि संपर्क उस समय टूटा, जब विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाले स्थान से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया था. इसरो चीफ के सिवन ने कहा कि अभी आंकड़ों का इंतजार किया जा रहा है. इस खबर से जहां इसरो के वैज्ञानिकों में निराशा देखने को मिली, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि आपने बहुत अच्छा काम किया है. उन्होंने कहा कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और यह यात्रा जारी रहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “जब मिशन बड़ा होता है तो निराशा से पार पाने का हिम्मत होना चाहिए. मेरी तरफ से आप सभी को बहुत बधाई है. आपने देश की मानव जाति की बड़ी सेवा की है.”

इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि संपर्क उस समय टूटा, जब विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाले स्थान से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया था. विक्रम का चांद पर उतरने से ठीक पहले संपर्क टूट गया है. इसरो आंकड़ों का इंतजार कर रहा है. चांद से ठीक पहले चंद्रयान का संपर्क टूटने से वैज्ञानिकों में निराशा है. इससे पहले रात एक बजकर 52 मिनट 54 सेकेंड पर चांद की सतह पर चंद्रयान-2 को लैंड करना था. इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसरो सेंटर पहुंचे थे.

लैंडर को रात लगभग एक बजकर 38 मिनट पर चांद की सतह पर लाने की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन चांद पर नीचे की तरफ आते समय 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया. ‘विक्रम’ ने ‘रफ ब्रेकिंग’ और ‘फाइन ब्रेकिंग’ चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया, लेकिन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ से पहले इसका संपर्क धरती पर मौजूद स्टेशन से टूट गया. इसके साथ ही वैज्ञानिकों और देश के लोगों के चेहरे पर निराशा की लकीरें छा गईं.

7 सितंबर को चंद्रयान 2 चंद्रमा की सतह छुना था। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान चांद पर उतरते समय सम्पर्क टूट गया। उस दौरान चंद्रयान 2 के अंतिम 15 मिनट काफी अहम थे।…

चन्द्रयान 2(chandra yan2)क्या है?

चंद्रयान 2 भारतीय चंद्र मिशन है जो पूरी हिम्‍मत से चाँद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है – यानी कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र। इसका मकसद, चंद्रमा के प्रति जानकारी जुटाना और ऐसी खोज करना जिनसे भारत के साथ ही पूरी मानवता को फायदा होगा। इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही भावी चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव लाना है, ताकि आने वाले दौर के चंद्र अभियानों में अपनाई जाने वाली नई टेक्‍नॉलोजी तय करने में मदद मिले।

हम चाँद पर क्यों जा रहे हैं?

चंद्रमा पृथ्‍वी का नज़दीकी उपग्रह है जिसके माध्यम से अंतरिक्ष में खोज के प्रयास किए जा सकते हैं और इससे संबंध आंकड़े भी एकत्र किए जा सकते हैं। यह गहन अंतरिक्ष मिशन के लिए जरूरी टेक्‍नोलॉजी आज़माने का परीक्षण केन्‍द्र भी होगा। चंद्रयान 2, खोज के एक नए युग को बढ़ावा देने, अंतरिक्ष के प्रति हमारी समझ बढ़ाने, प्रौद्योगिकी की प्रगति को बढ़ावा देने, वैश्विक तालमेल को आगे बढ़ाने और खोजकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करने में भी सहायक होगा।

चंद्रयान 2 के वैज्ञानिक उद्देश्य क्या हैं? चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव तक पहुंचना क्‍यों जरूरी ?

चंद्रमा हमें पृथ्वी के क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण की अविश्वसनीय जानकारियां दे सकता है। वैसे तो कुछ परिपक्व मॉडल मौजूद हैं, लेकिन चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में और अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। चंद्रमा की सतह को व्यापक बनाकर इसकी संरचना में बदलाव का अध्ययन करने में मदद मिलेगी। चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में भी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं जुटाई जा सकेंगी। वहां पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे और यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है।

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में अधिक छाया में रहता है। इसके चारों ओर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी होने की संभावना है। चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्‍त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है।

चंद्रयान-2 विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का उपयोग करेगा जो दो गड्ढों- मंज़िनस सी और सिमपेलियस एन के बीच वाले मैदान में लगभग 70° दक्षिणी अक्षांश पर सफलतापूर्वक लैंडिंग का प्रयास करेगा।

करीब डेढ़ महीने पहले चांद के सफर पर निकले चंद्रयान-2 का लैंडर ‘विक्रम’ इतिहास रचने से कुछ ही घंटे की दूरी पर है। शुक्रवार-शनिवार की दरम्यानी रात डेढ़ से ढाई बजे के बीच लैंडर चांद पर उतरेगा। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया की निगाहें इस उपलब्धि का गवाह बनने का इंतजार कर रही हैं।

इसरो के वैज्ञानिक बता रहे हैं कि 7 सितंबर को चंद्रयान 2 चंद्रमा की सतह छुएगा। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान चांद पर उतरेंगे। उस दौरान चंद्रयान 2 के अंतिम 15 मिनट काफी अहम होंगे। उसी 15 मिनट में इस मिशन की कामयाबी तय होगी। अगर उन 15 मिनट में सबकुछ ठीक ठाक रहा तो भारत अपने अंतरिक्ष मिशन में इतिहास लिखेगा और अगर थोड़ी भी असावधानी हुई तो सारे मेहनत पर पानी फिर सकता है।

7 सितंबर की आधी रात के बाद रचेगा इतिहास

इसरो के चेयरमैन डॉ के सिवन ने चंद्रयान 2 मिशन के लॉन्च होते ही बता चुके हैं कि इस मिशन का सबसे अहम पार्ट होगा, जब चंद्रयान चांद की सतह पर उतरेगा। उन्होंने कहा है कि जब चंद्रयान चंद्रमा की सतह से 30 किलोमीटर दूर होगा, तब विक्रम की लैंडिंग के लिए उसकी स्पीड कम की जाएगी।

लैंडर विक्रम को चांद पर उतारने का काम काफी मुश्किल भरा होगा। इस दौरान 15 मिनट काफी चुनौतीपूर्ण होंगे। के सिवन ने कहा है कि पहली बार वो सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश करेंगे। 7 सितंबर की मध्य रात्रि के बाद भारत इतिहास रचेगा। रात के 1.55 बजे विक्रम चंद्रमा पर सॉफ्ट लॉन्च करेगा। चंद्रयान 2 के चांद की सतह के करीब जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। चंद्रयान लगातार अपनी ऑर्बिट कम कर रहा है।

इस तरह होगी लैंडिग, 15 मिनट होगा महत्वपूर्ण

7 सितंबर की रात के 1.40 बजे विक्रम का पावर सिस्टम एक्टिवेट हो जाएगा। विक्रम चांद की सतह के बिल्कुल सीध में होगा। विक्रम अपने ऑनबोर्ड कैमरा से चांद के सतह की तस्वीरें लेना शुरू करेगा। विक्रम अपनी खींची तस्वीरों को धरती से लेकर आई चांद के सतह की दूसरी तस्वीरों से मिलान करके ये पता करने की कोशिश करेगा की लैंडिंग की सही जगह कौन सी होगी।

इसरो के इंजीनियर ने लैंडिंग वाली जगह की पहचान कर ली है। पूरी कोशिश चंद्रयान को उस जगह पर उतारने की होगी। लैंडिंग की सतह 12 डिग्री से ज्यादा उबड़-खाबड़ नहीं होनी चाहिए। ताकि यान में किसी तरह की गड़बड़ी न हो। एक बार विक्रम लैंडिंग की जगह की पहचान कर लेगा, उसके बाद सॉफ्ट लॉन्च की तैयारी होगी। इसमें करीब 15 मिनट लगेंगे। यही 15 मिनट मिशन की कामयाबी का इतिहास लिखेंगे। 

टिकी हैं दुनियाभर की निगाहें

चांद पर ‘विक्रम’ की लैंडिंग पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं। इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने सॉफ्ट लैंडिंग की इस प्रक्रिया को सबसे जटिल बताया है, क्योंकि इसरो ने पहले ऐसा नहीं किया है। चंद्रयान-2 चांद की सतह पर खनिजों की उपस्थिति का पता लगाएगा।

लैंडिंग का तरीका भी अनूठा

सिवन ने बताया कि साइंस फिक्शन फिल्मों में जिस तरह उड़नतश्तरियों को उतरते हुए दिखाया जाता है, ‘विक्रम’ भी चांद की सतह पर कुछ उसी तरह उतरेगा। उन्होंने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान लैंडर पर लगे कैमरा, लेजर आधारित सिस्टम, कंप्यूटर और सभी सॉफ्टवेयर को बिलकुल सही समय पर व एक-दूसरे से साम्य मिलाकर काम करना होगा।

अब तक ऐसा किसी देश ने नहीं किया

लैंडिंग की प्रक्रिया के बारे में सिवन ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि किसी देश ने इस प्रक्रिया के जरिये लैंडिंग की है, जिसमें लैंडर पर लगे कैमरा की मदद से वहां की तस्वीरें ली जाएंगी और इसी आधार उस पर लगा कंप्यूटर लैंडिंग की सही जगह तय करेगा। यह ऐतिहासिक क्षण होगा और हमें 100 फीसद सफलता का भरोसा है।’

चक्कर लगाता रहेगा ऑर्बिटर

यान का ऑर्बिटर 96 किलोमीटर पेरिजी और 125 किलोमीटर अपोजी वाली कक्षा में परिक्रमा कर रहा है। यह करीब सालभर परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम देगा। चांद की सतह पर उतरने वाले लैंडर-रोवर 14 दिन तक प्रयोग करेंगे। चांद के हिसाब से यह अवधि एक दिन के बराबर है।

भारत का दूसरा चंद्र अभियान

22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुआ चंद्रयान-2 भारत का दूसरा चंद्र अभियान है। 2008 में चंद्रयान-1 को लांच किया गया था। यह ऑर्बिटर मिशन था, जिसने करीब आठ महीने चांद की परिक्रमा कर प्रयोगों को अंजाम दिया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है।

ऐसा करना वाला दुनिया का चौथा देश होगा भारत

भारत जैसे ही चांद की सतह पर लैंडिंग करेगा, वो ऐसा करना वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अभी तक अमेरिका, रूस और चीन के पास ही इस तरह की विशेषज्ञता हासिल है। चंद्रयान-2 चांद के साउथ पोल पर लैंड करेगा। अभी तक इस जगह पर कोई भी देश नहीं पहुंचा है। चांद के साउथ पोल पर स्पेसक्राफ्ट उतारने के बाद भारत ऐसा करने वाला पहला देश बन जाएगा।

चन्द्रयान2 के प्रमुख अंग

लॉन्चर और स्पेसक्राफ्ट

लांचर

GSLV Mk-III भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है, और इसे पूरी तरह से देश में ही निर्मित किया गया है।

ऑर्बिटर

ऑर्बिटर, चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेगा और पृथ्वी तथा चंद्रयान 2 के लैंडर – विक्रम के बीच संकेत रिले करेगा।

विक्रम लैंडर

लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर भारत की पहली सफल लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है।

प्रज्ञान रोवर

रोवर ए आई-संचालित 6-पहिया वाहन है, इसका नाम ”प्रज्ञान” है, जो संस्कृत के ज्ञान शब्द से लिया गया है।


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