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अमित शाह का कहना है,370 के कारण J&K में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ, लेकिन सच तो कुछ और ही है.

370 तो पंडित नेहरू के समय लगाई गई थी लेकिन उस समय आतंकवाद नही था. अमेरिका में आतंकवादी घटना हुई तो क्या वह 370 था?

अमित शाह जी आप गृह मंत्री हैं देश के, कब तक राजनीतिक लाभ लेने के लिए राष्ट्र निर्माताओं को बदनाम करते रहेंगे?

कश्मीर पूरी तरीके से शांत था कश्मीर में आतंकवाद की जड़ 370 नहीं है, हकीकत दूसरी है जिससे जनता को जानना चाहिए.

आज प्रधानमंत्री मोदी, भारत की मीडिया यानी भाजपा की प्रचार एजेंसी और पूरी भाजपा मिलकर जिस अमेरिका का गुणगान कर रहे हैं, उसी अमेरिका ने अफगानिस्तान से रूस यानी उस समय के सोवियत संघ की सेना को बाहर करने के लिए पाकिस्तान को मोहरा बनाया था. पाकिस्तान जो कि सीधे-सीधे सोवियत संघ किस सेना से टक्कर नहीं ले सकता था और लेना चाहता भी नहीं था, इसलिए पाकिस्तान ने तालिबान नामक आतंकवादी संगठन का गठन किया था और उनको प्रशिक्षित किया था.

पाकिस्तान ने तो इन को ट्रेनिंग दी ही थी, इसके अलावा अमेरिका ने इन्हें आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ हथियार भी मुहैया कराए थे और चीन ने भी इन्हें ट्रेनिंग दी थी. तालिबान की मदद करने के लिए अरब के कई अमीर देश जैसे इराक सऊदी अरब आदि ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ लड़के भी मुहैया कराए थे. सोवियत संघ यानी रूस, चुकी शुरू से ही भारत का दोस्त रहा है. जितने भी इस्लामिक देश हैं, उसमें पाकिस्तान और अमेरिका द्वारा यह प्रचार कराया गया कि, सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर नहीं बल्कि इस्लाम पर हमला किया है.

अमेरिका और पाकिस्तान की मदद हासिल करके तालिबान ने अफगानिस्तान में विकराल रूप हासिल कर लिया था, तमाम इस्लामिक देशों की मदद हासिल करने के बाद तालिबान ने सोवियत संघ की सेना को करारी हार दी थी. इसको देखते हुए सोवियत संघ ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था. सोवियत संघ का यह फैसला काफी घातक साबित हुआ था. सोवियत संघ के इस फैसले का असर अफगानिस्तान समेत पूरे क्षेत्र पर पड़ा था. कश्मीर पर भी पड़ा था.

सोवियत संघ की सेना की तगड़ी हार के कारण अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के आतंकवादियों का गर्मजोशी से स्वागत और सम्मान हुआ और यह स्वागत सम्मान अफगानिस्तान पाकिस्तान और अमेरिका द्वारा किया गया. युद्ध चल रहा था इस कारण अफगानिस्तान में सरकार गिर चुकी थी और तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता अपने हाथ में ले ली थी. तालिबान ने सत्ता अपने हाथों में लेने के बाद, इस्लामिक धार्मिक कानून शरीयत लागू कर दिया जिसे सऊदी सरकार का भी समर्थन हासिल हुआ.

अफगानिस्तान में सोवियत संघ की करारी हार के बाद तालिबान के मंसूबे आसमान छू रहे थे. बाकी के आतंकवादी गुटों के मंसूबे भी अपने आतंक के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए हिलोरे मार रहे थे और इन आतंकवादी संगठनों की नजर आ टिकी की हिंदुस्तान के मुकुट यानी कश्मीर पर. अगर अफगानिस्तान पाकिस्तान की मदद से तालिबान द्वारा सोवियत संघ अफगानिस्तान में हारता नहीं तो कश्मीर कभी आतंक की चपेट में नहीं आता. घाटी में लगभग चार दशक की शांति अफगानिस्तान में सोवियत संघ के हारते ही टूटने लगी थी.

आतंकवादियों के हौसले अब कश्मीर पर कब्जा करने तक के हो चुके थे. आजादी के नाम पर दहशतगर्दी कश्मीर में शुरू हो चुकी थी, इससे पहले पाकिस्तान हिंदुस्तान से तीन युद्ध हार चुका था. पाकिस्तान के हौसले पस्त थे.समस्या कश्मीर में धारा 370 नहीं थी, समस्या शुरू से ही पाकिस्तान रहा है. अफगानिस्तान में तालिबान की जीत के बाद पाकिस्तान के भी हौसले बुलंद थे. पाकिस्तान समझ चुका था कि,हिंदुस्तान से प्रत्यक्ष युद्ध नहीं जीत सकता इसलिए. उसने धीरे-धीरे पीओके में आतंकी कैंप बनाने शुरू कर दिए थे और अफगानिस्तान में सोवियत संघ की हार तालिबान के हाथों देख चुके पाकिस्तान ने कश्मीर में लड़ने के लिए आतंकी तैयार करने शुरू कर दिए थे.

90 के दशक में शुरू हुआ खूनी खेल जिसमें हिंदुओं, सिखों और कुछ मुसलमानों पर हमले शुरू हुए. तीन लाख से ज्यादा लोगों को घाटी छोड़ने पर मजबूर किया गया. कश्मीर की आजादी के नारे लगने लगे. आतंकी गैर मुसलमानों की हत्या करने लगे, इसके अलावा जो मुसलमान उनका विरोध कर रहे थे उनकी भी हत्या करने लगे. कश्मीरी पंडितों को मारा गया. उस समय केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार थी. जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू था, आरएसएस की विचारधारा से आने वाले जगमोहन जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे. इन सब चीजों को हमारे देश के मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह को याद रखना चाहिए. देश की मौजूदा पीढ़ी को गलत इतिहास बताकर राजनीतिक लाभ तो ले सकते हैं, लेकिन इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा.

धारा 370 के कारण कभी जम्मू कश्मीर में आतंकवाद नहीं पनप पाया. आतंकवाद की शुरुआत जब हुई वह बातें ऊपर बताई जा चुकी है. इसके अलावा आतंकवादियों के हौसले बढ़े उनके कुछ और भी कारण है.

विश्वनाथ प्रताप सिंह, यानी वीपी सिंह उस समय देश के प्रधानमंत्री थे, उस समय हिंदुस्तान के गृह मंत्री बनाए गए थे मुफ्ती मोहम्मद सईद. उसी समय मुफ्ती मोहम्मद सईद की बड़ी लड़की रूबिया सईद का अपहरण कर लिया था आतंकवादियों ने. इसके बदले उस सरकार को पांच आतंकवादियों के छोड़ने की मांग की थी जेकेएलएफ ने और उस सरकार ने 5 खतरनाक आतंकवादी छोड़े थे और इस घटना के बाद पाकिस्तान के और जम्मू कश्मीर में उथल-पुथल मचाने की कोशिश करने वाले आतंकवादियों के हौसले बढ़े थे. इन्हीं घटनाओं से शुरू हुआ था कश्मीर में आतंकवाद.

सन 2000-2001 के लगभग अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने अलगाववादियों को सुरक्षा भी मुहैया कराई थी. अलगाववादियों की सुरक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाने लगे.

देश के मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह को देश की जनता को यह चीजे बतानी चाहिए. राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे राजनीतिक लाभ लेने के लिए नहीं होते हैं, यह बात भाजपा को समझनी होगी.

आतंकवाद जैसी घटनाएं किसी 370 जैसी धारा के लगने से शुरू नहीं होती. सीरिया इराक जैसे देशों में लगातार युद्ध चल रहे हैं. लोग मारे जा रहे हैं, इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठन वहां पर सक्रिय हैं, तो क्या वहां किसी 370 जैसी धारा के कारण यह सब घटनाएं हो रही हैं ,लोग मारे जा रहे हैं?

आखिर कब तक देश के मौजूदा प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अपनी नाकामियां छुपाने के लिए देश के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देश के महान नेताओं का अपमान करते रहेंगे, उनको देश की जनता के सामने विलेन साबित करने की कोशिश करते रहेंगे? आतंकवादी घटनाएं या आतंकवादी किसी भी पार्टी को या देश की जनता को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं है, इनका खात्मा होना ही चाहिए, लेकिन इन सबके लिए किसी नेता को जिम्मेदार बताकर अपने आपको उससे बड़ा साबित करने की कोशिश करना यह कहां तक उचित है?

बड़ा बनने के लिए लकीर मिटानी नहीं चाहिए, बड़ा बनने के लिए लकीर बड़ी करनी पड़ती है.अमित शाह जी को यह बात सोचना चाहिए

यह भी पढ़े : गांधी और गोड्से

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