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अयोध्या फैसले के बाद सीकर से खास रिपोर्ट…र्ये शहर है अमन का, यहां पर सब शांति-शांति है

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सीकर. अयोध्या में राम जन्मभूमि पर शनिवार को आए फैसले के बाद शेखावाटी में भी भाईचारा जीत गया। आशंकाओं के बीच अमन बुलंद रहा। हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई, सभी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए संविधान और देश की न्याय व्यवस्था में विश्वास जताया। फैसले पर हिंदू- मुस्लिम तो एक दूसरे को मुबारकबाद देते नजर आए। हर जुबां पर एक ही बात थी कि ना तुम हारे ना हम जीते… जीत गया अमन पसंद वतन…। इसी के साथ शेखावाटी एक बार फिर सौहार्द की नजीर बन गया। लेकिन, यह पहला मामला नहीं है। शेखावाटी में ऐसे कई वाकये और शख्सियतें हैं जो अतीत से लेकर आज तक गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बने हुए हैं। सौहार्द की ऐसी ही कहानियों को समेटे पेश है खास रिपोर्ट। गांव में एक भी मुस्लिम नहीं, हिंदू करते हैं दरगाह में इबादतचूरू. जिला मुख्यालय से छह किमी दूर स्थित गांव घंटेल एक ऐसी इबारत लिख रहा है, जिसका हर कोई कायल है। करीब छह हजार की आबादी वाले इस गांव में एक भी मुस्लिम नहीं है, लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब को हिन्दू पूरी शिद्दत के साथ सहेजे हुए हैं। इस गांव के लोगों में पीर के प्रति मुस्लिम परिवारों के समान ही आस्था है। इस गांव की पीर दरगाह पर हर शुक्रवार को छोटा मेला लगता है जहां पर हिंदू व दूसरे गांव के मुस्लिम आकर मन्नतें मांगते हैं। दरगाह को संभालने वाले गांव के संतलाल महाब्राह्मण ने बताया कि 70 फीट से अधिक ऊंचे टीले पर दरगाह है। लोगों की मान्यता है कि आज भी किसी घर में आग लगती है तो पीर की कृपा दृष्टि से आग कभी दूसरे घर में नहीं फैलती है। गांव में जिस साल बारिश नहीं होती है तो गांव के लोग दरगाह के पास हाथ से मिट्टी खोदते हैं। तो कुछ ही दिनों में बारिश हो जाती है।जोधपुर से आए…गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि एक हजार से अधिक वर्ष पहले हुए किसी युद्ध के दौरान पांच योद्धा लडाई के लिए जोधपुर से रवाना हुए। यहां आकर एक योद्धा युद्ध में काम आ गए। जिनकी ये मजार दरगाह के रूप में आज यहां स्थापित है। दूसरे योद्धा की मजार झुंझुनूं के नरहड़ में है। घंटेल के पीर नरहड़ के पीर के बड़े भाई थे।घटने का नाम है घंटेलगांव के नामकरण के बारे में लोगों की मान्यता है कि करीब 1700 वर्ष पहले यहां मोयल चौहान आकर बसे थे। उस समय यहां सात बास (मोहल्ले) होते थे। किसी प्राकृतिक आपदा के कारण तीन मोहल्ले खत्म हो गए और चार बास रह गए। जो आज भी हैं। बास घटने पर गांव का नाम घंटेल पड़ा।दरगाह में जलते हैं दीप मंदिर की छत से देखा जाता है ईद का चांद झुंझुनूं. हाथों में गीता रखेंगे, सीनों में कुरआन रखेंगे, मेल बढ़ाए जो आपस में, वही धर्म ईमान रखेंगे, शंख बजे भाईचारे का, अमन की एक अज़ान रखेंगे, काबा और काशी भी होगा, पहले हिन्दुस्तान रखेंगे……कुछ ऐसी ही संस्कृति में रचा बसा है हमारा झुंझुनूं। पूरे देश में अगर किसी को सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल देखनी है तो झुंझुनूं किसी से कम नहीं है। इस पर सभी को नाज है। भाई चारे की विशेषता इतनी कि हर कोई गर्व करे। यहां जन्माष्टमी पर नरहड़ दरगाह में कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है और शोभायात्रा निकलती है। झुंझुनूं शहर में स्थित कमरुद्दीन शाह की दरगाह में दिवाली पर घी के दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। चंचलनाथ टीले पर स्थित मंदिर की छत से एक साथ चांद का दीदार किया जाता है तो हर धर्म के कार्यक्रम में एक दूसरे का सम्मान व स्वागत किया जाता है।मंदिर के चबूतरे पर होती है नमाजसीकर. जाट बाजार में कलंदरी मस्जिद बरसों से हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है। बकौल इतिहासकार पुरोहित राजा माधोसिंह के समय इस क्षेत्र में तोपखाना था। जिसके मुस्लिम तोपचियों ने राव राजा से नमाज की जगह मांगी। राजा ने मुकुंद सिंह छतरी के नीचे राधा गोविंद मंदिर के चबूतरे पर नमाज की इजाजत दे दी। हिंदू आयोजित करते हैं पीर बाबा का मेलासीकर का थोरासी गांव हिंदू गांव है। लेकिन, यहां पीर बाबा की मजार पर 32 साल से हिंदूओं द्वारा विशाल मेले का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें थोरासी और खरसाड़ू गांव के हर घर से लोग स्वयंसेवक के रूप में भूमिका निभाते हैं। प्रवासी हिंदू एक लाख से ज्यादा लोगों की आवक वाले इस मेले के लिए खास छुट्टी लेकर पहुंचते हैं। मेले में कई आयोजन आकर्षण का केंद्र होते हैं।सीकर के राव चांद सिंह के लिए जान देने वाले बहलोल खां की दरगाह पर हिंदू चढ़ाते हैं चादर सुभाष चौक गढ़ के राजमहल में सिल्वर जुबली हाल के पास बहलोल खां पठान की मजार की देख रेख आज भी हिंदू कर रहे हैं। संवत 1811 में सीकर के राव चांद सिंह को बचाने के लिए बहलोल खां ने दुश्मन दीप चंद से लोहा लिया था। जिसमें दोनों मारे गए थे। बहलोल खां की वफादारीपर राव चांद सिंह ने गढ़ में ही बहलोल खां को सुपुर्दे खाक किया। सूफी संत के नाम पर पड़ा शेखाजी और शेखावाटी का नामअंचल का शेखावाटी नाम ही सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है। इतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि शेखावाटी का नाम राव शेखाजी के नाम पर पड़ा है। लेकिन, यह नाम उन्हें सुफी संत शेख बुरहान से मिला था। जो शेखाजी के पिता राव मुकुल के गुरू थे। गुरु में अगाध आस्था और उनके आशीर्वाद से ही पुत्र प्राप्ति की मान्यता की वजह से राव मुकुल ने पुत्र का नाम शेखाजी रखा था। राव शेखाजी ने अपनी सेना में पठानों को भी प्राथमिकता दी थी। जिनसे गाय और मोर नहीं मारने का समझौता करने के साथ शेखावत और पठानों के बीच खानपान का भेदभाव भी खत्म किया गया था।[MORE_ADVERTISE1]

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