आज जब इंग्लैंड और दक्षिण अफ़्रीका की टीमें लंदन के ऐतिहासिक ओवल मैदान पर उतरेंगी तो वहां से कोई 600 किलोमीटर दूर स्कॉटलैंड के शहर एडिनबरा में 21 साल के स्कॉटिश क्रिकेटर सफ़यान शरीफ़ का ध्यान 21 मार्च 2018 की घटना पर लगा होगा.
ये वो दिन था जब स्कॉटलैंड की टीम के तमाम ख़्वाब ख़राब अम्पायरिंग और बारिश ने चकनाचूर कर दिए और वो वर्ल्ड कप में क्वालिफाई करने के लिए खेला गया मुक़ाबला वेस्टइंडीज़ से 5 रन से हार गए और वर्ल्ड कप में खेलने से वंचित रह गई.
बीबीसी सें बात करते हुए सफ़यान शरीफ़ ने कहा, “वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग टूर्नामेंट बहुत अच्छी तरह आयोजित किया गया था लेकिन इसमें डीआरएस और दूसरे इंतज़ामों की कमी थी. इस क़िस्म की छोटी छोटी चीज़ें मायने रखती हैं जिनसे क़िस्मत और नतीजे बदल सकते हैं.”
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क्वालीफ़ाइंग टूर्नामेंट में बेहतरीन गेंदबाज़ी करने वाले सफ़यान शरीफ़ का इशारा आईसीसी के 2015 के उस फ़ैसले की ओर है जिसमें क्रिकेट की इस सर्वोच्च संस्था ने वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने वाली टीमों की संख्या घटा दी. जिसका सबसे ज़्यादा नुकसान स्कॉटलैंड, नीदरलैंड और केन्या जैसे असोसिएट देशों को हुआ.
क्या बड़े देशों का लालच है वजह?
आईसीसी जिन क्रिकेट स्पर्धाओं का आयोजन करता है, उनमें चैम्पियंस ट्रॉफ़ी, टी-20 वर्ल्ड कप और वर्ल्ड कप के प्रसारण अधिकार उसकी आमदनी के बड़े ज़रिये हैं.
यह आमदनी आईसीसी के सदस्य देशों को बांटी जाती है.
2007 से 2015 के बीच यह रकम एक अरब डॉलर से ज़्यादा थी. आईसीसी ने अपने स्थायी सदस्यों को 5-5 करो़ड़ डॉलर और बाक़ी देशों को सब मिलाकर कुल 12 करोड़ डॉलर बांटे.
लेकिन अहम बात यह थी कि इस दौरान आईसीसी को होने वाली आमदनी का 80 फ़ीसदी हिस्सा भारत के मुक़ाबलों से आया.
साल 2015 से 2023 के प्रसारण अधिकार से मिलने वाली रकम करीब ढाई अरब डॉलर के करीब थी और बीसीसीआई ने अपने दबदबे का इस्तेमाल करते हुए ज़्यादा रकम मांगी और जून 2017 में उन्हें आईसीसी से 40 करोड़ डॉलर की रकम आवंटित कर दी गई.
बीसीसीआई को 40 करोड़ डॉलर देने के लिए स्थायी सदस्यों के कोटे से तीन करोड़ डॉलर से ज़्यादा और एसोसिएट देशों के कोटे से चार करोड़ डॉलर की रकम कम की गई थी.
भारतीय अख़बार ‘द मिंट’ ने अपने अप्रैल 2018 के एक लेख में लिखा कि यह समझना मुश्किल नहीं है कि दस टीमों के वर्ल्ड कप का आयोजन करने का दबाव किन क्रिकेट बोर्ड्स ने बनाया होगा और इसकी वजह क्या होगी.
याद रहे कि 2019 के वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने वाली प्रत्येक टीम, प्रत्येक टीम से मुक़ाबला करेगी. यानी यह तय है कि भारत अपने मज़बूत विपक्षी जैसे ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मैच ज़रूर खेलेगा ताकि आमदनी ज़्यादा हो.
1975 से लेकर 2015 तक टेस्ट टीमों के अलावा असोसिएट देशों की टीमों को भी वर्ल्ड कप में खेलने का मौक़ा मिलता था.
पहले चार विश्वकप में आठ-आठ टीमों ने विभिन्न फॉरमैट्स में शिरकत की. उसके बाद पहली बार 1992 में 9 टीमों ने वर्ल्डकप खेला.
1996 और 1999 में यह तादाद नौ से बढ़कर 12 हो गई.
बीस साल पहले बांग्लादेश को स्थायी सदस्य का दर्जा मिल गया और फिर 2003 के वर्ल्ड कप में दस स्थायी सदस्यों के अलावा चार एसोसिएट देशों को खेलने का मौक़ा मिला. यानी कुल टीमें हुईं 14.
2007 में वेस्टइंडीज़ में 16 टीमों ने हिस्सा लिया था.
2011 और 2015 में 14 टीमों ने हिस्सा लिया, जबकि 2019 में सिर्फ़ 10 टीमों को वर्ल्डकप में खेलने का मौक़ा मिला है.
आईसीसी के फ़ैसले पर प्रतिक्रियाएं
आईसीसी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि उसका उद्देश्य भविष्य में क्रिकेट को दुनिया का पसंदीदा खेल बनाना है और इसकी शुरुआत 2019 से हो गई है.
वहीं चार साल पहले टीमों की संख्या कम करने पर आईसीसी प्रमुख डेव रिचर्डसन ने कहा था कि वर्ल्ड कप क्रिकेट का सबसे बड़ा मुक़ाबला है और उसमें शामिल होने वाली टीमों का स्तर एक-सा होना चाहिए.
जिम्बाब्वे के खिलाड़ी और विश्व कप क्वालीफाइंग टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार पाने वाले सिकंदर रज़ा ने बीबीसी से कहा कि उन्हें समझ नहीं आया कि आईसीसी ने टीमें कम करने का फ़ैसला क्यों लिया. इससे छोटे देशों की टीमें काफी आहत होंगी.
वह कहते हैं, “दुनिया के हर बड़े खेल को देखें तो इसके प्रशासक इसे फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, क्रिकेट में ऐसा क्यों नहीं किया गया? और जब कई सक्षम खिलाड़ी ये पाएंगे कि उन्हें सबसे बड़े क्रिकेट मुक़ाबले में खेलने को नहीं मिलेगा तो वे ये खेल छोड़ भी सकते हैं.”
सफ़यान शरीफ़ आईसीसी के फ़ैसले को दुखद बताते हैं. वह कहते हैं, “हमें और मौक़े मिलने चाहिए और टीमों की संख्या बढ़ानी चाहिए.”
संयुक्त अरब अमीरात के अहमद रज़ा कहते हैं कि उनकी टीम आने वाले वर्षों में कई वनडे मैच खेलने वाली है लेकिन ज़रूरत बड़े मुक़ाबलों में मौक़ा देने की है.
उन्होंने कहा, “हम ओलंपिक में क्रिकेट क्यों नहीं जोड़ पा रहे? अगर क्रिकेट का प्रसार करना है तो इसे फुटबॉल की शैली पर लोकप्रिय बनाना होगा.”
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