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आजकल भारत /
ताइवान ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थाई सदस्यता का समर्थन करते हुए कहा कि इसके पुनर्गठन की जरूरत है क्योंकि वीटो शक्ति कुछ ही देशों के पास है जो कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के अनुपात में बहुत ही कम है।ताइवान आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र (टीईसीसी) के प्रतिनिधि, राजदूत चुंग-क्वांग टेन ने कहा कि भारत को यूएनएससी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए और यह ‘अनुचित’ है कि भारत शक्तिशाली विश्व निकाय का स्थाई सदस्य नहीं है। उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र के सदस्य 200 देश हैं लेकिन केवल पांच के पास वीटो का अधिकार है। यह सभी देशों के प्रतिनिधित्व के लिए काफी कम संख्या है।’ वीटो के अधिकार वाले पांच देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन शामिल हैं।
चुंग-क्वांग ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को फिर से गठित करने की आवश्यकता है और भारत को इसमें एक महत्वपूर्ण किरदार अदा करना ही होगा। यह अनुचित है कि भारत वहां नहीं है।’ ताइवान पर दावा करने वाले चीन के बारे में ताइवान के प्रतिनिधि ने कहा कि चीन की विस्तारवादी मानसिकता पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘चीन बहुत आगे जा रहा है..उसके भारत के साथ भी विवाद हैं..सीमा विवाद, व्यापार में असंतुलन और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) को लेकर विवाद।’
जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव पर चीन को राजी करने के लिए भारत के बार-बार किए गए प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘आप कितने वर्षों से लड़ रहे हैं?’ भारत के चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने के प्रयासों के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘आपको अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध रखने की आवश्यकता है, लेकिन कृपया, दूसरों के साथ समानांतर संबंध रखें।
आप अन्य दोस्तों की कीमत पर दोस्त नहीं बना सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताइवान का दौरा किया था जब वह भाजपा महासचिव थे। उन्होंने कहा कि मोदी स्थिति से परिचत हैं। उन्होंने कहा कि भारत और ताइवान ने द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा, ‘ताइवान देशों के साथ संबंध बनाने के लिए सॉफ्ट पावर का उपयोग कर रहा है.. राजनयिक संबंधों के साथ आर्थिक संबंध महत्वपूर्ण हैं।’ एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘क्या हम चीन के सामने झुकेंगे? नहीं, ऐसा होने वाला नहीं है।’
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