- Advertisement -
HomeNewsआप गलत सोचते है, राजा चौपट नहीं राजा चौकस है.

आप गलत सोचते है, राजा चौपट नहीं राजा चौकस है.

- Advertisement -

इधर हम फिल्म एक्टरों के नशे की कहानियों में डूबे रहे, उधर चौकस राजा ने किसानों पर बिल पास करा लिए. अब देखो सरकार किसानों के भले के लिये एक नहीं, दो नहीं, तीन तीन विधेयक एक साथ लाई है.
ये विधेयक राज्यसभा में ध्वनि मत से ही पास करवा लिये. मांग होने के बावजूद मत विभाजन तक नहीं करवाया. मानो उच्च सदन में विद्वानों की नहीं, बल्कि जोर जोर से चीखने चिल्लाने वालों की ही जरूरत है. पर ये तीन-तीन ‘किसान कल्याण बिल’ सरकार ने अपने भले के लिए नहीं, सिर्फ और सिर्फ किसानों के भले के लिए ही पास करवाये.
और ये किसान हैं कि इन कानूनों के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, भारत बंद कर रहे हैं. ये जो किसान हैं न, बहुत ही अजीब हैं, बहुत ही सीधे साधे, भोले भाले हैं. ये किसान कभी भी अपना भला बुरा बिल्कुल नहीं समझेंगे. बस किसी के भी बहकावे में आ जायेंगे, जैसे अपना दिमाग तो है ही नहीं.
कितनी बुरी बात है कि ये किसान मोदी जी के बहकावे में न आ कर विपक्ष के बहकावे में आ रहे हैं.
किसान भाइयों, अपने दिमाग से नहीं, मोदी जी के दिमाग से काम लो, मोदी जी के बहकावे में आओ. इससे तुम्हारा और देश का, दोनों का भविष्य तो बनेगा ही, साथ ही अंबानी अडानी का भविष्य भी बन जायेगा. बेचारे ये अंबानी, अडानी और उनके जैसे अन्य अमीर, इस कोरोना काल में बड़ी ही गरीबी झेल रहे हैं. बेचारा अंबानी तो विश्व के अमीरों की सूची में न जाने कितने ही सप्ताह से चौथे पाँचवें स्थान पर ही अटका पड़ा है.
किसान भाइयों, मोदी जी इतना मना रहे हैं, बार बार इतना कह रहे हैं, तो मान भी जाओ और मोदी जी के बहकावे में भी आ जाओ. किसान भाइयों अब जब आपको अपनी फसल बेचने मंडी के बाहर जाना ही पड़ेगा तो कहीं भी चले जाओ. बिहार का किसान अपना धान अपनी बैलगाड़ी, ठेलागाडी़ या फिर ट्रेक्टर पे रखे और फिर, चाहे तो केरल में बेच आये या फिर कश्मीर में. और चाहे तो बिना स्मार्ट फोन, बिना इंटेरनेट ई-नाम पर बेच ले.
लेकिन किसानों की जिद है कि मंडी में ही बेचेंगे. लेकिन जब सरकार न तो मंडियों को ही रहने देगी और न ही मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी को. तब, तब क्या करोगे? अब जब मंडी रहेगी ही नहीं तो बाहर तो जाना ही पड़ेगा. बाहर उसे व्यापारी मिलेगा. व्यापारी तो पहले भी मिलता था पर अब धोती कुर्ते की बजाय सूट बूट वाला कार्पोरेट व्यापारी मिलेगा. वही जो अंग्रेजी मिली टूटी-फूटी हिन्दी बोलेगा.
वही कार्पोरेट व्यापारी, जिस पर हमारे सरकार जी, जी जान से मेहरबान हैं. उसी पर पहले कॉर्पोरेट टैक्स कम किया था. अब उसी कार्पोरेट व्यापारी के लिए मंडी टैक्स भी समाप्त किया जा रहा है. सरकारी आमदनी भले ही घट जाये, रिजर्व बैंक से भले ही रिजर्व फंड लेना पड़े, आम जनता पर भले ही टैक्स का बोझ बढ़ता जाये, पर कॉर्पोरेट पर मेहरबानी तो जारी रहनी ही चाहिए. सरकार जी का यही सारा फंडा है और इसी के लिए सारा फंड है.
यही कॉर्पोरेट न सिर्फ किसान से फसल खरीदेगा अपितु कांट्रैक्ट फार्मिंग यानी करार खेती भी करायेगा. अब वह करार खेती कब बे-करार में बदल जाये, पता नहीं. लेकिन अगर ऐसा हो जाये तो किसान भाइयों, घबराइएगा मत. सरकार ने इस ऐतिहासिक कानून में पूरी एहतियात बरती हुई है कि आपको न्याय न मिल पाये, आप कोर्ट में न जा पायें. सरकारी अफसर ही सारा न्याय निपटा देंगे. अब अधिक खरीदने के बाद व्यापारी को जमाखोरी भी करनी ही पड़ेगी.
आखिर कानून का पालन जो करना है. अब जमाखोरी कानूनी हो गई है. तो कानून के अनुसार काम करना ही होगा. व्यापारी अगर कानून अनुसार जमाखोरी नहीं करेगा तो सरकार उससे जबरदस्ती करवायेगी. जब सरकार जमाखोरी करवायेगी तो कालाबाजारी भी करवायेगी. आखिर बिना कालाबाजारी के जमाखोरी का क्या लाभ. वैसे भी लाभ तो कमाना ही पड़ेगा, यह तो बिजनेस का पहला उसूल है. पहले फसल खरीदने में पैसा लगाओ, फिर जमाखोरी में पैसा लगाओ.
इतना पैसा लगा कर भी अगर लाभ नहीं कमाया तो बन गये भई बिजनेसमैन. अब अगर एमआरपी मतलब मैक्सिमम रिटेल प्राइस बढ़ा कर नहीं बेचा तो काहे के बिजनेसमैन. वहाँ एमएसपी में एम मिनिमम था तो यहाँ एमआरपी में एम मैक्सिमम है. मिनिमम से कम में खरीद की है तो मैक्सिमम से अधिक में बेचना भी पड़ेगा ही. आखिर मिनिमम और मैक्सिमम में संतुलन भी तो बनाए रखना है. फिर अर्थशास्त्र के सिद्धांत का भी तो ध्यान रखना है. जब सारे के सारे खेतों से फसल कट कर बाजार में आयेगी तो कितनी सारी होगी.
उस समय कम से कम में ही तो खरीद करनी पड़ेगी और फिर जब जमाखोरों के पास गोदामों में जमा स्टॉक धीरे धीरे, रुक रुक कर बाजार में आयेगा तो अधिक से अधिक मूल्य में ही तो बिकेगा. बाजार का सिद्धांत भी यही सिखाता है और कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी हमें यही बताता है. इसमें न तो मोदी जी की कोई गलती है और न ही व्यापारी का कोई स्वार्थ. यहाँ नगरी भले ही अंधेर है पर राजा चौपट नहीं है. वह तो पूरा चौकस है चौकस. उसे सब पता है कि वह क्या कर रहा है कैसे कर रहा है और किसके लिए कर रहा है.
The post आप गलत सोचते है, राजा चौपट नहीं राजा चौकस है. appeared first on THOUGHT OF NATION.

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -