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यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ घिरते जा रहे हैं?

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उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) को तो हवा में ही लेकर चल रही है और मायावती से मुकाबले के लिए बेबी रानी मौर्य को उतारने की तैयारी है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की घोषणा के बाद सियासी समीकरण थोड़े बदले बदले से लगते हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा के महिला कार्ड पर समाजवादी पार्टी ने तो नहीं, लेकिन बीजेपी और मायावती ने तो जोरदार हमला बोला है.
महिलाओं को लेकर अखिलेश यादव अपनी रथयात्रा के दौरान कह रहे हैं कि यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर किसानों, नौजवानों और महिलाओं का पूरा ख्याल रखा जाएगा. वैसे समाजवादी पार्टी में रहते हुए भी ज्यादातर मुद्दों पर अपनी अलग राय रखने वाली मुलायम सिंह यादव की दूसरी बहू अपर्णा यादव ने महिलाओं को राजनीति में ज्यादा हिस्सेदारी दिलाने के प्रियंका गांधी के कदम का स्वागत किया है.
2017 के विधानसभा चुनाव में 40 महिलाएं विधायक बनी थीं जिनमें कांग्रेस से दो और समाजवादी पार्टी से एक ही महिला विधायक रहीं. 2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी तब समाजवादी पार्टी के टिकट पर सबसे ज्यादा 19 महिला विधायक चुनी गयी थीं. तब बीजेपी से तो छह लेकिन कांग्रेस और बीएसपी से एक ही महिला विधानसभा पहुंचने में सफल हो पायी थी.
2017 में सबसे ज्यादा महिला विधायक बीजेपी के हिस्से में रहीं कुल 34. बीजेपी के मुख्यमंत्री फेस योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का मुकाबला अब मायावती और प्रियंका गांधी के साथ साथ कांग्रेस की महिला ब्रिगेड से होने वाला है. लेकिन अभी तक समाजवादी पार्टी की तरफ से कोई सही तस्वीर सामने नहीं आयी है. जबकि मुलायम सिंह की बड़ी बहू डिंपल यादव (Dimple Yadav) यूपी के चुनावों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते देखी गयी हैं. 2019 में मायावती और अखिलेश यादव के सपा-बसपा गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ीं डिंपल यादव को हार का मुंह देखना पड़ा था.
प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के यूपी चुनाव लड़ने की बनारस में रणनीतिक सार्वजनिक घोषणा के बावजूद उनके यूपी चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने की संभावना अभी काफी कम लगती है. अब सवाल ये है कि सत्ता में वापसी के लिए सतत प्रयासरत समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के पास डिंपल यादव को लेकर भी कोई खास योजना है क्या?
प्रियंका पर कोई हां, कोई ना क्यों बोल रहा है?
बनारस की रैली में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ये बताने के बाद कि कांग्रेस यूपी में चुनाव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ेगी, कांग्रेस महासचिव ने अपने महिला कार्ड को महिला सशक्तीकरण से जोड़ते हुए बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में महिला उत्पीड़न के मामले गिना कर जोड़ दिया.
प्रियंका गांधी ने अपनी स्कीम के बारे में बताते हुए कहा, ये निर्णय उन्नाव की उस लड़की के लिए है जिसको जलाया गया, मारा गया… हाथरस की उस मां के लिए है, जिन्होंने उनसे गले लगाकर कहा था कि उनको न्याय चाहिये… लखीमपुर में एक लड़की मिली… मैंने उससे पूछा क्या बनाना चाहती हो बड़ी होकर, उसने कहा, प्रधानमंत्री बनाना चाहती हूं.
जैसे ही प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ से ये घोषणा हुई, बीजेपी की तरफ से रीता बहुगुणा जोशी और दूसरे नेताओं ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिये- 2019 में क्यों नहीं किया, 2021 में हुए बीते पांच राज्यों के चुनाव में क्यों नहीं किया और यहां तक कि पूछे जाने लगे कि ये चुनावी पैंतरा सिर्फ यूपी के लिए ही है या फिर पंजाब और उत्तराखंड या गोवा जैसे राज्यों के लिए भी है? सारे सवालों को बढ़े धैर्य के साथ और थोड़ा रुक कर सुनने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय बयान भी जारी कर दिया है ये तो महज शुरुआत है.
पंजाब में कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री बना कर बड़ी चाल चली है और राहुल गांधी के नये ट्वीट से तो ये भी लगने लगा है कि उत्तराखंड और गोवा में भी कांग्रेस ऐसे ही किसी धांसू स्कीम पर काम कर रही हो. हालांकि, प्रियंका गांधी वाड्रा के यूपी में मुख्यमंत्री पद का चेहरा होने या चुनाव लड़ने को लेकर अब भी सस्पेंस बना हुआ है. 2019 के आम चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव लड़ने को लेकर तो हद से ज्यादा ही चर्चा हुई थी और उसमें सबसे ज्यादा बनारस से उम्मीदवारी को लेकर रही.
असल में प्रियंका गांधी वाड्रा को आम चुनाव से कुछ ही पहले कांग्रेस में महासचिव बनाकर औपचारिक एंट्री दी गयी थी और जब भी प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछे गये, राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने उसे प्रियंका गांधी वाड्रा के खुद फैसला लेने की बात कह कर टाल दी, जबकि प्रियंका गांधी वाड्री ने कांग्रेस पार्टी के फैसले पर छोड़ दिया – पार्टी चाहेगी तो लड़ेंगे. कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ एक मीटिंग में तो खुद प्रियंका गांधी वाड्रा ने ही शिगूफा छोड़ दिया बनारस से कैसा रहेगा?
चूंकि वाराणसी संसदीय क्षेत्र से पिछले दो बार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए प्रियंका गांधी की उम्मीदावारी के साथ साथ दावेदारी पर भी खासी चर्चा हुई. बाद में मालूम हुआ कि प्रियंका तो नहीं, लेकिन राहुल गांधी ने दो जगह से चुनाव लड़ने की तैयारी की और नतीजा ये हुआ कि अमेठी भी गंवानी पड़ी. प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर भूपेश बघेल के बयान के उलट कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव इमरान मसूद ने राय जाहिर की है.
नवभारत टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में इमरान मसूद का कहना है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर कोई हड़बड़ी अच्छी बात नहीं है. जब इमरान मसूद से यूपी में प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री चेहरा बनाये जाने को लेकर पूछा जाता है तो कहते हैं, मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होने जा रहा है या इससे कोई बड़ा फायदा होने वाला है… प्रियंका गांधी कांग्रेस का राष्ट्रीय चेहरा हैं… यूपी का चेहरा बनाना तो सीमित करना हो गया… अभी बात कांग्रेस के सर्वाइवल की है. पहले कांग्रेस को सर्वाइव तो करने दीजिये फिर मुख्यमंत्री का चेहरा तय होता रहेगा.
प्रियंका की महिला स्कीम में समाजवादी सहमति भी है क्या?
हो सकता है राहुल गांधी के मन में यूपी को लेकर पंजाब के पैटर्न पर कुछ खास रणनीति चल रही हो. मसलन, महिला मुख्यमंत्री फेस या दलित महिला मुख्यमंत्री चेहरा लाने पर विचार कर रहे हों लेकिन कांग्रेस नेता इमरान मसूद के बयान के बाद इस मामले में भी तस्वीर काफी हद तक साफ होती लग रही है. प्रियंका गांधी की क्रांतिकारी घोषणा और राहुल गांधी के उसे महज शुरुआत बताने के बावजूद इमरान मसूद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व बचा लेना भर ही बहुत मानते हैं और कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार लाये जाने के तो कतई पक्षधर नहीं लगते.
याद रहे हिंसा के दौर से पहले जब ब्लॉक प्रमुख चुनाव हुए थे उसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा एक बार लखीमपुर खीरी के दौरे पर गयी हुई थीं और उसी दौरान कांग्रेस नेता ने यूपी में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के बीच चुनावी गठबंधन की वकालत की थी और उसके साथ ही ये भी साफ हो गया था कि कांग्रेस यूपी चुनाव में वैसी ही संभावनाओं पर विचार करने लगी है जैसे बीजेपी पंजाब विधानसभा के लिए तैयारी कर रही है.
2017 की ही तरह एक बार फिर से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के चुनावी गठबंधन के सवाल पर इमरान मसूद कहते हैं कि कांग्रेस में सामूहिक तौर पर जो राय बनी हो उसे तो वो नहीं जानते लेकिन निजी तौर पर वो राजनीति में नंबर के खेल को ही बड़ा मानते हैं. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने की स्थिति में कांग्रेस के रुख को लेकर भी इमरान मसूद की अपनी दलील है जो हकीकत के काफी करीब भी लगती है, आज की तारीख में यूपी में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी ही है तो स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा भी उसी का होगा… कांग्रेस ही नहीं, विपक्ष की बाकी पार्टियों को भी उसी चेहरे को स्वीकार करना होगा.
अगर कांग्रेस में बाकी नेता भी इमरान मसूद की ही तरह अपनी सोच को हकीकत के इर्द गिर्द रख कर चल रहे हैं तो समझदारी की बात है. क्योंकि दो साल पहले आम चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व के आसमान में उड़ने का नतीजा सबके सामने है. तभी एक बार सोनिया गांधी ने 2004 के आम चुनाव की याद दिलाते हुए कहा था कि तब अटल बिहारी वाजपेयी भी अजेय माने जाते रहे. मिसाल तो सोनिया ने ठीक दी थी, लेकिन 15 साल में कितना कुछ बदल चुका था, शायद उनको अंदाजा नहीं रहा. हाल फिलहाल जो हालात हैं, लगता तो ऐसा ही है कि बीजेपी भले ही प्रियंका गांधी वाड्रा को खुला मैदान देकर वोटर को गुमराह करने की कोशिश करे, लेकिन लड़ाई में तो अखिलेश यादव ही आगे आगे नजर आ रहे हैं और इमरान मसूद के नजरिये से देखें तो कांग्रेस गठबंधन की सूरत में समाजवादी पार्टी से हाथ भी मिला सकती है.
हां, इस बार भी अखिलेश यादव की हां का इंतजार है क्योंकि पांच साल पहले तो कांग्रेस के हाथ से साइकिल चलाने को ज्यादा आतुर तो वही लग रहे थे. खास बात ये भी तब बतायी गयी थी कि ये प्रियंका गांधी ही रहीं जो दोनों दलों के बीच फाइनल समझौता करा पायी थीं. तब तो प्रियंका गांधी वाड्रा भी ‘यूपी के लड़कों’ के पक्ष में खड़ी नजर आ रही थीं, लेकिन इस बार तो मामला लड़कियों का हो गया है क्योंकि नया स्लोगन गढ़ा गया है ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं.’
अब सवाल ये उठता है कि अखिलेश यादव भी कांग्रेस के नये मिजाज की राजनीति से इत्तेफाक रखते हैं क्या? फिर तो सवाल ये भी उठता है कि समाजवादी महिला चेहरा डिंपल यादव को लेकर भी कोई खास प्लान है क्या? कहीं अंदर ही अंदर डिंपल यादव को ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये की तैयारी तो नहीं चल रही है? अगर वास्तव में ऐसा हुआ तब तो वास्तव में अकेले योगी को एक साथ यूपी की ढेर सारी महिलाओं से जूझना पड़ेगा!
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