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क्या मोदी को राजनितिक छवि बचाने में ‘मदद’ करेगा चीन, और किस कीमत पर?

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ना तो कोई हमारी सीमा में घुसा है, और ना ही कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहकर अपनी उस छवि को खतरे में डाल दिया है, जिसे बनाने और दिखाने में उन्होंने डेढ़ दशक से ज्यादा समय तक जीतोड़ मेहनत की है.

इस बयान का उनके राजनीतिक भविष्य पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. ये बयान तब आया जब प्रधानमंत्री देश को 20 जवानों की शहादत बेकार नहीं जाने देने का भरोसा दे चुके थे. 19 जून को सर्वदलीय बैठक में मोदी ने अपने चौंकाने वाले बयान से – जिसके ठीक बाद चीन की सरकार ने अप्रत्याशित और औपचारिक तरीके से ये दावा ठोक दिया गया कि गलवान घाटी उसकी सीमा में आती है – देश को, खास तौर पर अपने समर्थकों को, निराश कर दिया है. इस बयान से मोदी की शख्सियत और छवि को होने वाले नुकसान का अंदाजा लगते ही, पीएमओ क्षति नियंत्रण की कवायद में जुट गया और 20 जून को स्पष्टीकरण जारी कर दावा किया कि उनकी टिप्पणी को ‘तोड़मरोड़ कर पेश’ किया जा रहा है.

हालांकि चिंता इस बात की है प्रधानमंत्री की बातों का मतलब जनता ठीक वैसे ही लगाती है जैसे वो कही गई होती है, उन्हें कूटनीति में शब्दों के विज्ञान से कोई लेना देना नहीं होता. कूटनीति, सुरक्षा और देश के भू-भाग से जुड़े जटिल मसलों पर बयान देते समय प्रधानमंत्री को अपनी बात सीधे-सपाट तरीक से ठीक वैसे ही रखनी चाहिए जैसे वो सार्वजनिक भाषणों में करते हैं, नहीं तो लोगों पर उसका उल्टा असर पड़ सकता है.

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि मई 2019 में दोबारा जीतकर आने के पीछे उस छवि का बड़ा हाथ था जिसमें दावा किया गया था कि मोदी जो कहते हैं वो कर दिखाते हैं और जरूरत पड़ी तो घर में घुसकर मारेंगे. याद करें तो पुलवामा में आतंकी हमले का बदला लेते हुए जब बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए गए तो बड़े नाटकीय तौर पर 2019 के चुनावी कैंपेन का पूरा रुख ही बदल गया. अब 15-16 जून की रात को भारतीय सुरक्षाबलों पर बर्बर हमले का बदला लेने के बदले, प्रधानमंत्री ने लद्दाख में सैन्य कार्रवाई नहीं करने का फैसला लिया है. उनका बयान भारतीय सुरक्षा जानकारों की उस राय के खिलाफ है जिसके मुताबिक LAC पर गलवान घाटी हमेशा से भारत का हिस्सा रही है. 20 जून को राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में जो दो सवाल उठाए वो आने वाले दिनों में हर कोई पूछेगा, पीएम के समर्थक भी पूछेंगे- हमारे जवानों की शहादत क्यों हुई? और, उनकी हत्या कहां हुई?

PM has surrendered Indian territory to Chinese aggression. If the land was Chinese:1. Why were our soldiers killed?2. Where were they killed? pic.twitter.com/vZFVqtu3fD— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 20, 2020इस बात की संभावना कम है लेकिन चीन की इस हरकत के खिलाफ जब तक प्रधानमंत्री मोदी अपनी कूटनीतिक और सामरिक चाल नहीं बदलते, वो अपने समर्थकों में छाई निराशा को खत्म नहीं कर सकते, जो कि उनकी असाधारण शक्ति और भारतीयों और भारतीय पासपोर्ट को बड़ा सम्मान दिलाने की उनकी काबिलियत पर यकीन करने लगे थे.

बदला नहीं लेने के फैसले से मोदी की छवि को झटका

एक कुशल नेता होने के नाते, मोदी हमेशा से यह जानते हैं कि जंग में आधी जीत तो लोगों के बीच अच्छी छवि से ही जीत ली जाती है. इसलिए उन्होंने बड़ी सूझबूझ से 56 इंच की छाती वाले बलशाली नेता की अपनी छवि तैयार की. मोदी जब से सार्वजनिक जीवन में आए, बिलकुल फिडेल कास्त्रो की तरह कभी नहीं झुकने वाले नेता का रुख अख्तियार कर लिया, और लोगों के सामने ‘चौड़ी छाती वाले इंसान’ की छवि बनाई. 2014 के चुनावी कैंपेन के दौरान, उन्होंने कभी उत्तर प्रदेश के ताकतवर नेता रहे मुलायम सिंह यादव की ये कहते हुए खिल्ली उड़ाई कि ‘उत्तर प्रदेश को गुजरात बनाने के लिए “56 इंच की छाती” होनी चाहिए. वो, किंग-कॉन्ग की स्टाइल में, बस अपनी छाती ठोकने से रह गए थे. उस वाकये की याद दिलाने की वजह सिर्फ ये बताना है कि लोग, खासकर उनके समर्थकों को, मोदी की उस ‘बलशाली छवि’ की आदत पड़ गई है.

ऐसे में पूरे देश की उम्मीदें जगाने के बाद चीन के साथ टकराव से बचने के फैसले से उनकी छवि को बड़ा झटका लग सकता है. ये फैसला मोदी की उस भाव-भंगिमा से बिलकुल उलट है जो उन्होंने 2013-14 में बीजेपी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनाए जाने के बाद अख्तियार की थी. एक भाषण में तब उन्होंने चीन को चेतावनी देते हुए कहा था कि वो जमीन कब्जा करने की अपनी मानसिकता छोड़ दे… मैं इस मिट्टी की सौगंध खाता हूं कि मैं इस देश की रक्षा करूंगा. अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में एक रैली के दौरान, मोदी ने आगे हुंकार भरते हुए कहा था धरती पर ऐसी कोई ताकत नहीं है जो भारत से एक इंच जमीन छीन ले.

भूतपूर्व-सैनिकों के भरोसे को झटका

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में बिना नाम बताते हुए बीजेपी के एक रणनीतिकार का बयान छापा गया था- अब चीन को समझ में आ जाएगा कि नए प्रधानमंत्री कोई डरपोक नहीं हैं और वो कोई भी ऐसी-वैसी हरकतें करने से बाज आएगा. अब उन्हीं तारीफों के कारण शर्मिंदगी वाली स्थिति ने मोदी की छवि तैयार करने वाले प्रबंधकों और प्रचारकों की परेशानी बढ़ा दी है. अब उनका ध्येय होगा कि मोदी को मजाक और उपहास का पात्र बनने से बचा लिया जाए. इस बीच मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने सोशल मीडिया पर उनके उन बयानों को साझा करना शुरू कर दिया है जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने और अपनी नीतियों को लागू करने से पहले दिए थे.

लेकिन सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि कई भूतपूर्व सैनिकों ने उनके भरोसों के साथ हुए ‘धोखे’ की बात करनी शुरू कर दी है. लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर रॉय, जम्मू-कश्मीर के पूर्व कॉर्प कमांडर और असम राइफल्स के पूर्व डीजी, का ट्वीट सुरक्षा बलों में बने रोष और दुख को जाहिर करता है. जनरल रॉय ने लिखा – आज का दिन बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. मैं अपने तीन सितारों का शुक्रगुजार हूं कि मैं सेवानिवृत हो चुका हूं और मेरा बेटा सेना में नहीं है.

गलवान में सबसे ज्यादा बिहार के जवान शहीद हुए – क्या इससे राज्य चुनाव में मोदी की साख पर असर पड़ेगा?

हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि बीजेपी को अब तक भूतपूर्व सैनिकों का भरपूर समर्थन मिला है और वन रैंक वन पेंशन को लागू करने के फैसले को 2019 के चुनाव में सरकार की बड़ी सफलताओं में गिना जा रहा था और मोदी 2.0 के एक साल पूरा होने के बाद देश के नाम चिट्ठी में भी प्रधानमंत्री ने इसका जिक्र किया था. मौजूदा माहौल में चीन के साथ तनाव को आगे ना बढ़ाने का ये फैसला – ताकि हथियारों से ज्यादा सशक्त माने जा रहे देश के सामने और नुकसान को टाला जा सके – हो सकता है आगे जाकर भारत और खासकर पीएम मोदी के लिए सही साबित हो, लेकिन ताजा राजनीतिक संदर्भ में हालात सियासी नुकसान की तरफ इशारा करते हैं.

गलवान घाटी में चीनी सेना के खिलाफ वीरता दिखाते हुए शहीद होने वाले ये 20 जवान सेना के 6 अलग यूनिट से आते थे, जिसमें तीन इनफैंट्री बटालियन और दो आर्टिलरी रेजिमेंट शामिल हैं, लेकिन ज्यादातर शहीद और घायल होने वाले जवान (16) बिहार से आते थे, जिनमें कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू और 12 शहीद जवान शामिल थे. बिहार में इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के संदर्भ में देखें तो मोदी का ये बदला हुआ रुख बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है, खास कर तब जब लोगों के जेहन में ये बात बैठ जाए कि मोदी के फैसले से बिहार के वीर शहीद जवानों के सम्मान को ठेस पहुंचा है.

क्या चीन मोदी की मदद करेगा?

2014 से लेकर अब तक पीएम मोदी ने विदेश और सुरक्षा नीतियों से जुड़ा हर फैसला घरेलू राजनीति को दिमाग में रखकर ही किया है. लेकिन पिछले सालों में हुई कई चूक के बावजूद, पहली बार प्रधानमंत्री जनता को संतुष्ट करने वाला फैसला नहीं लेकर अलग-थलग हो गए हैं. प्रधानमंत्री के पद पर दावा ठोकने के बाद, पहले अपनी पार्टी में और फिर पार्टी के बाहर, मोदी ने एक ऐसे नेता की छवि तैयार की जो भारत की सुरक्षा और अखंडता को चुनौती देने वाले पड़ोसी देशों की किसी हरकत को बर्दाश्त नहीं करते. बीजेपी ने तो मनमोहन सिंह को भारत का ‘सबसे कमजोर प्रधानमंत्री’ बता दिया था. अब मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है चीन से कुछ रियायत हासिल करना, जिसमें वो किसी विवादित क्षेत्र से खुद को पीछे खींच ले, और प्रधानमंत्री को अपना सम्मान बचाने का कोई बहाना मिल जाए.

लाख टके का सवाल है क्या बीजिंग राजनीतिक नुकसान की भरपाई में मोदी की मदद करेगा? और, अगर वो ऐसा करता है, तो क्या इसकी कोई कीमत भी चुकानी होगी?

यह भी पढ़े : प्रधानमंत्री मोदी को ये बताना चाहिए कि कौन झूठ बोल रहा है, वे या फिर उनके रक्षा मंत्री या विदेश मंत्री?

Thought of Nationराष्ट्र के विचार
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