केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने श्रीनगर राजभवन में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा रखे गए उस प्लान पर चर्चा की है, जिसकी मदद से जम्मू-कश्मीर में ‘टारगेट किलिंग’ रोकी जाएगी. जब शाह बैठक ले रहे थे, तब पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) ने उनकी यात्रा को लेकर चुनौती भरा बयान दे दिया. उन्होंने कहा, मैं चैलेंज देता हूं कि कश्मीर में तब तक अमन चैन नहीं आएगा, जब तक यहां के लोगों को पूर्ण राज्य का दर्जा और पहले वाले कायदे-कानून नहीं मिल जाते.
उनका इशारा ‘अनुच्छेद 370’ की तरफ था. राजभवन में सुरक्षा समीक्षा बैठक के दौरान शाह को बताया गया कि अब कश्मीर में पांच परतों वाले ‘सुरक्षा’ घेरे के जरिए आतंकियों द्वारा की जा रही टारगेट किलिंग रोकी जाएगी. केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 50 कंपनियों की तैनाती का प्लान भी केंद्रीय गृह मंत्री के साथ साझा किया गया है.
टारगेट किलिंग पर विस्तृत रिपोर्ट पेश
श्रीनगर स्थित राजभवन में केंद्रीय गृह मंत्री की बैठक में मौजूद सीएपीएफ अधिकारी बताते हैं, घाटी में पिछले दिनों हुई टारगेट किलिंग को लेकर विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई थी. इसमें सभी घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा शामिल था. कौन सी घटना कब हुई है, वहां की परिस्थितियां, हमले में इस्तेमाल किए गए हथियार और हमलावर आतंकी कौन सी तंजीम से जुड़ा था, ये सब बातें रिपोर्ट का हिस्सा थीं.
आर्मी, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंटेलिजेंस सिस्टम को और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए उसमें कुछ विशेष बिंदु जोड़े गए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री को बताया गया कि सुरक्षा के मोर्चे पर तैनात सभी सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतरीन तालमेल है. पुंछ में आतंकियों के साथ चले लंबे ऑपरेशन को लेकर भी सेना की 15वीं कोर के अधिकारियों ने शाह को जानकारी दी है. अभी तक सेना के दस जवान शहीद हो चुके हैं.
ओवरग्राउंड वर्कर्स आतंकवाद की फैक्ट्री
घाटी में ‘ओवरग्राउंड वर्कर’ और ‘व्हाइट कॉलर टेरेरिस्ट्स’ को पकड़ने के लिए जो नया प्लान बनाया गया है, अमित शाह को उसके बारे में बताया गया. घाटी में तैनात सेना की 15वीं कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे ने अपने एक बयान में कहा था, घाटी में ‘व्हाइट कॉलर टेरेरिस्ट्स’ का नेटवर्क तोड़ना सबसे जरूरी है. इस नेटवर्क में ऐसे लोग शामिल हैं, जिनके अपने बच्चे देश के विभिन्न हिस्सों और दूसरे मुल्कों में पढ़ते हैं.
वे लोग, आतंकी संगठनों को सहयोग और संसाधन मुहैया करा रहे हैं. इनमें ठेकेदार, सरकारी ओहदेदार, बड़े व्यवसायी और दूसरे वर्गों से जुड़े लोग शामिल हैं. ये लोग पर्दे के पीछे रहकर आतंकियों के लिए ओवरग्राउंड वर्कर का काम करते हैं. आतंकियों को हर तरह की मदद प्रदान करते हैं. ये नेटवर्क आतंकवाद की फैक्ट्री हैं. यही सबसे खतरनाक बिंदु है. अगर इस पर नकेल कसी जाती है तो आतंकवाद को पूरी तरह खत्म करने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.
‘सफेदपोश’ लोगों का होगा खुलासा
तीसरे पॉइंट के तौर पर, एनकाउंटर के तरीके में बड़ा बदलाव किया गया है. उक्त अधिकारी ने इसका खुलासा नहीं किया. हालांकि उन्होंने कहा, आर्मी, सीआरपीएएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस, पहले की भांति आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन करती रहेगी. चौथे पॉइंट के लिए ‘व्हाइट कॉलर टेरेरिस्ट’ का जिक्र किया गया है. चूंकि इसका पता इंटेलिजेंस एवं जांच एजेंसियों के माध्यम से लगता है, इसलिए केंद्रीय एजेंसियों और जेकेपी को मिलाकर एक विशेष टीम गठित की जाएगी.
सरकारी विभागों में जो अधिकारी और कर्मचारी, आतंकियों के हमदर्द बने बैठे हैं, उनके चेहरे से नकाब उतारने का प्लान तैयार किया गया है. इसके लिए कानून में भी कुछ बदलावों की तैयारी की जा रही है. जिस तरह से पिछले दिनों सैयद अली गिलानी के पोते अनीस-उल-इस्लाम को आतंकी गतिविधियों के चलते सरकारी सेवा से बर्खास्त किया गया है, उसी तरह दूसरे ‘सफेदपोश’ लोगों को भी सामने लाया जाएगा. ट्रांसपोर्ट विभाग, वन, कृषि राजस्व, सिंचाई और बिजली जैसे महकमों में संदिग्ध कर्मियों की सूची तैयार की जाएगी. इससे ‘व्हाइट कॉलर टेरेरिस्ट’ का नेटवर्क तोड़ने में मदद मिलेगी.
युवाओं को भर्ती में खास तवज्जो
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्री को बताया कि स्थानीय युवाओं की आतंकी संगठनों में भर्ती का ग्राफ काफी नीचे आ चुका है. इसके लिए आर्मी, सीएपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा युवाओं को विभिन्न योजनाओं से जोड़ने के लिए कई तरह की गतिविधियां शुरू की गई हैं. उन्हें विभिन्न बलों में भर्ती के लिए विशेष तवज्जो दी जा रही है. घाटी में पथराव की घटनाओं पर अब लगभग अंकुश लग चुका है. ऐसे मामलों में शामिल युवाओं पर नजर रखी जा रही है.
युवा वर्ग, सुरक्षा एजेंसियों के लिए सर्विलांस का काम भी कर सकता है. इस बात को लेकर जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अलग से केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष एक प्रस्तुतिकरण दिया गया. इसमें बताया गया है कि किस तरह से युवाओं को रचनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जा सकता है. इसके लिए पंचायतों की मदद कैसे ली जाए, इस पर भी विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है. ऐसे युवाओं के साथ सेना, अर्धसैनिक बल और लोकल पुलिस साप्ताहिक एवं मासिक स्तर पर परस्पर वार्तालाप करेंगी. इससे यूथ का जुड़ाव सुरक्षा बलों की तरफ बढ़ेगा और वे अपनी दिक्कतें भी उनके साथ साझा कर सकेंगे.
अल्पसंख्यक समुदाय वाले इलाके चिन्हित
अमित शाह को दिए गए सुरक्षा प्रस्तुतिकरण में जीओसी पांडे की इस बात को प्रमुखता से शामिल किया गया था. पांच परतों वाले सुरक्षा प्लान में इस पॉइंट को जगह दी गई है. पांच पॉइंट प्लान में कश्मीर घाटी के ऐसे इलाके चिन्हित किए गए हैं, जहां पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं. इनकी सुरक्षा के लिए विशेष सर्विलांस सिस्टम रहेगा.
अधिकारी के मुताबिक, उसका खुलासा करना ठीक नहीं है. केवल इतना जान लें कि ऐसे इलाकों में बीएसएफ और सीआरपीएफ की ट्रेंड कंपनियां को लगाया जाएगा. केंद्र से घाटी के लिए 50 बटालियन स्वीकृत हुई हैं. दर्जनभर कंपनी पहुंच चुकी हैं, बाकी रास्ते में हैं. जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर ये केंद्रीय सुरक्षा बल, तलाशी अभियान में तेजी लाएंगे. दूसरा पॉइंट, संदिग्ध गतिविधियों वाले इलाकों की निगरानी ड्रोन के जरिए की जाएगी.
The post क्या अब्दुल्ला का ‘चैलेंज’ स्वीकार करेंगे अमित शाह? रोकेगी ‘टारगेट किलिंग’ appeared first on THOUGHT OF NATION.
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