- Advertisement -
HomeNewsएअर इंडिया ‘महाराजा’ को क्यों खरीदना चाहता है टाटा समूह

एअर इंडिया ‘महाराजा’ को क्यों खरीदना चाहता है टाटा समूह

- Advertisement -

करीब 60,000 करोड़ के कर्ज में डूबी सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया (Air India) की कमान टाटा ग्रुप (TATA Group) के हाथों में आने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. कहा गया कि टाटा ग्रुप ने सबसे ऊंची बोली लगाकर एयर इंडिया (AI) को खरीद लिया है.
हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से साफ किया गया कि ऐसी सभी खबरें गलत हैं. सरकार जब भी इस पर निर्णय लेगी, मीडिया को जानकारी दे दी जाएगी. कुल मिलाकर केंद्र सरकार की ओर से एयर इंडिया विनिवेश मामले में उन सभी खबरों पर विराम लगा दिया गया, जिसमें वित्तीय बोलियों को मंजूरी देने की बात कही गई थी. वैसे, एयर इंडिया को खरीदने के लिए टाटा ग्रुप और स्पाइसजेट (Spicejet) ने बोली लगाई हैं.
तो, फिलहाल सवाल जस का तस बना हुआ है कि Who is buying Air India? केंद्र सरकार 2018 से कर्ज में डूबी इस एयरलाइन (Airline) को बेचने की कोशिश कर रही है. हालांकि, अपने पहले प्रयास में यह सफल नहीं हो पाई थी. लेकिन, इस बार माना जा रहा है कि केंद्र सरकार के एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 फीसदी हिस्सेदारी और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AISATS की 50 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के फैसले की वजह से इसकी विनिवेश प्रक्रिया (Disinvestment) दिसंबर 2021 तक पूरी हो सकती है.
वैसे, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि टाटा ग्रुप इस एयरलाइन को खरीदने (Air India bid) की हर संभव कोशिश करेगा. क्योंकि, एयर इंडिया के साथ टाटा ग्रुप का जुड़ाव बहुत गहरा और पुराना है. लंबे समय तक मुनाफा कमाने वाली एयर इंडिया कैसे कर्ज (Air India Debt) में डूबी और टाटा ग्रुप से इसका क्या रिश्ता है?
आइए जानते हैं ऐसे ही कई सवालों के जवाब
जेआरडी टाटा की ‘माशूका’ एयर इंडिया
दुनियाभर में एयर इंडिया के नाम को एविएशन इंडस्ट्री में बड़ी पहचान दिलाने वाले भारत के जाने-माने उद्योगपति जेआरडी टाटा (JRD Tata) ने इस एयरलाइंस की शुरूआत 1932 में की थी. हालांकि, एयर इंडिया को इसकी स्थापना के समय टाटा एयरलाइंस (Tata Airlines) के नाम से जाना जाता था. 1929 में जेआरडी टाटा देश के पहले कमर्शियल पायलट बने थे और उन्हें इसी वजह से भारत में सिविल एविएशन का पितामह ( Father of Indian aviation) माना जाता है.
आप इसे जेआरडी टाटा का जुनून ही कह सकते हैं कि टाटा एयरलाइंस के शुरुआती दौर में इसका संचालन मुंबई के जुहू के पास स्थित एक मिट्टी मकान से किया जाता था. ये जेआरडी टाटा की बेहतरीन उद्यमी सोच और दूरदर्शिता की वजह से टाटा एयरलाइंस ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे Air India का नाम दिया गया. वहीं, देश के आजाद होने के बाद भारत सरकार ने एयर इंडिया की 49 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया. एयर इंडिया की पहचान माना जाने वाला मशहूर शुभंकर ‘महाराजा’ 1946 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बनने के दौरान सामने आया था.
वहीं, 1953 में भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास कर इस कंपनी का पूरी तरह से अधिग्रहण कर लिया. जिसके बाद टाटा ग्रुप की ये एयरलाइंस सरकारी कंपनी बन गई. जेआरडी टाटा को नेहरू सरकार के इस फैसले से धक्का लगा था. लेकिन, जेआरडी के अनुभव का इस्तेमाल करने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें एयर इंडिया का चेयरपर्सन बना दिया. जेआरडी टाटा पर लिखी गई किताब ‘द टाटा ग्रुप- फ्रॉम टॉर्चबियरर टु ट्रेलब्लेजर्स’ में बताया गया है कि वह एयर इंडिया को अपनी ‘माशूका’ की तरह बेहद प्यार करते थे.
इस किताब के अनुसार, उनकी दीवानगी का आलम कुछ ऐसा था कि एयर इंडिया के विमानों के टॉयलेट से लेकर एयरलाइंस के काउंटर पर गंदगी दिखने पर जेआरडी टाटा खुद सफाई में जुट जाते थे. एयरलाइन के स्टाफ के ड्रेस से लेकर हेयरस्टाइल तक में जेआरडी टाटा की दिलचस्पी रहती थी. जवाहर लाल नेहरू के बाद पीएम बनीं इंदिरा गांधी के साथ भी जेआरडी टाटा के कई मतभेद रहे. लेकिन, इस दौरान भी वह एयर इंडिया के अध्यक्ष बने रहे. लेकिन, 1977 में जनता पार्टी की सरकार के पीएम मोरारजी देसाई ने जेआरडी टाटा को अपमानित कर एयर इंडिया से बर्खास्त कर दिया.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोरारजी देसाई उन्हें कुछ खास पसंद नहीं करते थे. आसान शब्दों में कहें, तो नैतिक मूल्यों पर जोर देने वाला व्यक्ति किसी भी नेता को पसंद नहीं आ सकता है. और, मोरारजी देसाई के साथ तो जेआरडी टाटा के संबंध 50 के दशक से ही बिगड़ गए थे. वैसे, जेआरडी की जगह पीसी लाल को एयर इंडिया का अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध अधिकारियों से लेकर मजदूर यूनियन तक ने किया था.
कर्ज में कैसे डूबा ‘महाराजा’?
कई दशकों तक फायदे में चलने वाली एयर इंडिया को पहली बार घाटे का सामना 2001 में करना पड़ा. वहीं, 2007 में एयर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया था. इस विलय के वक्त दोनों एयरलाइंस का संयुक्त घाटा 770 करोड़ रुपये था. विलय के बाद अगले साल ही एयर इंडिया का घाटा 2,226 करोड़ रुपये पहुंच गया. धीरे-धीरे ये बढ़ता चला गया.
2009 में घाटे की भरपाई करने के लिए एयर इंडिया ने अपनी फ्लीट में शामिल तीन एयरबस 300 और एक बोइंग 747 को बेच दिया था. इसी दौरान सभी एयरलाइन कंपनियों के लिए अंतरराष्ट्रीय और घरेलू उड़ानों की अनुमति मिल गई. जिसके बाद साल दर साल एयर इंडिया की हालत बद से बदतर होती चली गई. इसमें राजनीतिक दखलंदाजी और कुप्रबंधन ने ‘कोढ़ में खाज’ का काम किया. और, अब एयर इंडिया पर करीब 60,000 करोड़ का कर्ज लद चुका है.
आसान शब्दों में कहें, सरकारी एयरलाइन होने की वजह से इसका जमकर राजनीतिक दोहन हुआ. राजनीतिक हित साधने के लिए सस्ते पैकेज से लेकर ऐसी जगहों पर घरेलू उड़ानों को बढ़ावा दिया गया जहां यात्री संख्या न के बराबर रही. वहीं, एक आम सरकारी सेवा की तरह ही एयर इंडिया के स्टाफ के व्यवहार और मनमानियां भी इसके खराब प्रदर्शन का एक बड़ा हिस्सा रहीं.
ऐसे सैकड़ों किस्से हैं, जिसमें स्टाफ ने यात्री सुविधा और सेवा को दरकिनार किया और, इस एयरलाइंस की यात्री संख्या गिरने लगी. हालांकि, इस दौरान सरकारों ने इसे बचाने के प्रयास करते हुए 30000 करोड़ से ज्यादा का बेलआउट पैकेज भी दिया. लेकिन, ये भी एयर इंडिया को कर्ज से बचाने में नाकाम रहा. और, आखिरकार इसे निजी हाथों में सौंपने का फैसला लेने पर सरकार मजबूर हो गई. और, इसे बेचना सरकार की मजबूरी इसलिए भी है कि इस विनिवेश प्रक्रिया में जितनी देरी होगी, एयर इंडिया का कर्ज उतना ही बढ़ता जाएगा.
डूबी हुई एयर इंडिया पर टाटा ग्रुप क्यों लगा रहा है दांव?
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जिस टाटा ग्रुप ने इस एयरलाइंस की नींव रखी थी, उसे वापस पाने का मौका शायद ही हाथ से जाने देगा. रतन टाटा अगर अपने पिता का सपना फिर से हासिल कर लेते हैं, तो ये सफलता के कई पायदान चढ़ चुके टाटा ग्रुप के लिए भावुकता से भरी जीत होगी. खैर, इस भावुकता से इतर एक बात ये भी है कि एयर इंडिया की इस खरीद में टाटा ग्रुप सबसे बड़ा दावेदार बनकर उभरा है.
मनी कंट्रोल की एक खबर के अनुसार, एयर इंडिया को हासिल करने के लिए लगाई गई अपनी बोली में टाटा ग्रुप एयरलाइन के कुल कर्ज का करीब 15 प्रतिशत अपने हिस्से लेने को तैयार हो सकता है. आसान शब्दों में कहें, तो करीब 60000 करोड़ के कर्ज में डूबी एयर इंडिया के लिए बोली लगाने वाले टाटा ग्रुप ने सरकार से करीब 9000 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने की पेशकश भी की है. जबकि, सरकार के नई योजना के हिसाब से बोली लगाने वाली कंपनी को एयर इंडिया के पहले के कर्ज से कोई लेना-देना नहीं होगा.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने एयर इंडिया विनिवेश (Air India News) के लिए 15000 करोड़ का रिजर्व प्राइस तय किया है. इससे नीचे की बोलियों को केंद्र सरकार स्वीकार नहीं करेगी. केंद्र सरकार ने पहले भी एयर इंडिया को बेचने का प्रयास किया था. लेकिन, तब सरकार केवल 75 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाह रही थी. साथ ही बोली लगाने वाले को करीब 23300 करोड़ का कर्ज का भार भी अपने कंधों पर लेना पड़ता. लेकिन, अब केंद्र सरकार लगातार घाटे में जा रही कर्ज से डूबी एयर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने को तैयार है और, सरकार की नई योजना पर नजर डालें, तो टाटा ग्रुप अपनी बोली के हिस्से के तौर पर 9000 करोड़ का कर्ज चुकाने के लिए भी तैयार है.
कहना गलत नहीं होगा कि टाटा ग्रुप इस विनिवेश प्रक्रिया में सबसे बड़ा दावेदार यूं ही नजर नहीं आ रहा है. अगर ऐसा हो जाता है, तो 68 साल बाद एक बार फिर से एअर इंडिया की टाटा ग्रुप में घर वापसी हो सकती है. टाटा ग्रुप एयर इंडिया की खरीद में सफल होगा या नहीं, ये वक्त बताएगा. लेकिन, इतना जरूर कहा जा सकता है कि जेआरडी टाटा के सपने को पूरा करने के लिए टाटा ग्रुप अपना पूरा जोर लगाएगा.
The post एअर इंडिया ‘महाराजा’ को क्यों खरीदना चाहता है टाटा समूह appeared first on THOUGHT OF NATION.

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -