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प्रियंका ही क्यों नजर आती हैं ‘आखिरी उम्मीद’?

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मिशन 2024 के लिए ‘दिल्ली’ जिस तरह से साझा विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रही थी, ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने इस प्रयास में पलीता लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो दिल्ली की गद्दी पर अब तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो केवल अपना दावा ही नही ठोंक रही हैं. बल्कि, नरेंद्र मोदी और भाजपा के उभार के लिए कांग्रेस को दोषी ठहरा कर गांधी परिवार (Gandhi family) का भविष्य भी चौपट करने की तैयारी में जुट गई हैं.
इस साल अगस्त के महीने में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के नेतृत्व में 19 विपक्षी दलों के नेताओं की वर्चुअल बैठक हुई थी. सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं और विपक्ष शासित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत में अंतिम लक्ष्य 2024 के लोकसभा चुनाव को बताया था और राष्ट्रहित में विपक्षी दलों की एकजुटता की मांग की थी. सोनिया गांधी ने कहा था कि भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी की चुनौती से निपटने के लिए विपक्ष के सामने एकसाथ काम करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
उन्होंने कहा था, हमारी अपनी मजबूरियां है, लेकिन अब हमें इन विवशताओं से ऊपर उठना होगा और कांग्रेस की ओर से इसमें कोई कमी नहीं रहेगी. सोनिया गांधी ने यूपीए के सहयोगी दलों और भाजपा के खिलाफ साथ आने वालों दलों के सामने एक तरह से ‘आत्मसमर्पण’ करते हुए एकजुट होने की मांग की थी. बस इस आत्मसमर्पण में राहुल गांधी को नेतृत्व की बागडोर देने वाली शर्त सभी के सामने मौन रूप से पेश की गई थी. पंजाब कांग्रेस में उपजे संकट का तात्कालिक हल निकलने के बाद इतना तो तय हो ही गया था कि कांग्रेस में अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जोड़ी ही सर्वेसर्वा हो चुकी है.
कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को के साथ ही यूपीए के सहयोगी दलों को भी सोनिया गांधी ने साधने की कोशिश की थी. लेकिन, उनकी ये कोशिश कामयाब होती नहीं दिख रही है. ममता बनर्जी के अलावा, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जैसे नेता भी अब कांग्रेस को आंखें दिखा रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सोनिया गांधी की सबको साथ लेकर चलने वाली रणनीति के फेल होने की वजह से राज्यों में क्षत्रपों ने अब कांग्रेस को पूरी तरह से खत्म करने के प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है.
पश्चिम बंगाल में वामदलों के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक चुनाव प्रचार नहीं किया था. वैसे, गोवा में विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर भाजपा के खिलाफ लड़ने के बजाय बंगाल में उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के दोषारोपण साथ ही चुनाव में सीटों के बंटवारे का ऑफर भी दे दिया है. एक तरह से जिन राज्यों में कांग्रेस एक स्थापित पार्टी कही जा सकती है, अब उन्ही राज्यों में विपक्षी दल कांग्रेस से सत्ता में हिस्सेदारी मांगने के लिए तैयार खड़े नजर आ रहे हैं.
प्रियंका ही क्यों नजर आती हैं आखिरी उम्मीद?
राजनीतिक लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश से राहुल गांधी का जुड़ाव पिछले लोकसभा चुनाव में ही खत्म हो गया था. अमेठी से हारने के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने उत्तर प्रदेश की ओर निगाह तब ही डाली, जब उन्हें बहन प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने बुलाया. खैर, प्रियंका गांधी ने कांग्रेस महासचिव बनाए जाने के बाद से ही उत्तर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाले सभी मुद्दों और मामलों पर पैनी नजर बनाए रखी. इतना ही नहीं, प्रियंका गांधी ने सोनभद्र, उन्नाव, हाथरस, लखीमपुर खीरी, आगरा, बुंदेलखंड में लोगों के बीच जाकर उत्तर प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस को संजीवनी देने की कोशिश की है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर प्रियंका ने सूबे में न केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी को भी घेरने में पूरी ताकत झोंक दी है.
वहीं, प्रियंका गांधी की आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ एयरपोर्ट पर हुई मुलाकात के बात सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी असहज नजर आ रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो प्रियंका गांधी की वजह से यूपी चुनाव से पहले सूबे की राजनीति एक बड़ा बदलाव देखने की ओर कदम बढ़ा रही है. प्रियंका गांधी ने सपा के गठबंधन के लिए हाथ आगे बढ़ाया था. लेकिन, अखिलेश यादव ने इसे झिटक दिया था. जिसके बाद यूपी चुनाव में कांग्रेस ने सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस और प्रियंका गांधी के पास प्रदर्शन के लिए बहुत खास जगह नहीं है. लेकिन, प्रियंका गांधी की रणनीति पर चलते हुए कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल सपा को भी सत्ता से दूर कर स्पष्ट संदेश देना चाह रही है कि गठबंधन नहीं करने का खामियाजा केवल कांग्रेस ही नहीं सपा को भी भुगतना पड़ेगा. और, कांग्रेस अब क्षत्रपों की शर्तों के हिसाब से नहीं चल पाएगी.
मिशन 2024 से पहले अगर प्रियंका गांधी किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश में थोड़ा-बहुत भी प्रभावी प्रदर्शन करने में कामयाब हो जाती हैं, तो यह सीधे-सीधे आधी आबादी यानी महिलाओं को लेकर उनके विजन पर मुहर लगने जैसी स्थिति होगी. अगर प्रियंका गांधी कांग्रेस पार्टी की ओर से यूपी चुनाव में उतरने का मन बना लेती हैं, तो निश्चित तौर पर जो कांग्रेस अभी पीछे नजर आ रही है, वो अखिलेश यादव की सपा के तकरीबन बराबर पर आकर खड़ी हो जाएगी.
खैर, इन तमाम बातों से इतर एक सबसे बड़ी बात ये भी है कि यूपीए के सहयोगी और तमाम विपक्षी दलों के नेताओं के बीच ममता बनर्जी के नाम पर भी अभी कोई एकमत नहीं है. ममता बनर्जी की ओर से साझा विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए खुद को आगे किया जा रहा है. लेकिन, अगर कांग्रेस की ओर से नेतृत्व के लिए प्रियंका गांधी का नाम सामने आता है, तो आधे से ज्यादा विपक्षी दल ममता के नाम पर उनको तरजीह देंगे.
ममता बनर्जी की छवि एक जिद्दी और गुस्से से भरी नेता के तौर पर बनी हुई है. इससे उलट प्रियंका गांधी चुनावी रणनीति के मद्देनजर आक्रामकता के साथ ही शांत व्यवहार के साथ फैसले लेने में भी सक्षम नजर आती हैं. सर्वस्वीकार्यता से इतर प्रियंका गांधी के साथ सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट ये है कि यूपीए के अधिकांश सियासी दल पहले से ही कांग्रेस के साथ कुछ राज्यों में गठबंधन सरकार चला रहे हैं. वहीं, ममता बनर्जी के नाम पर इन दलों का एकमत होना टेढ़ी खेर नजर आता है.
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