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देवेंद्र फडणवीस के विरोधी खेमे को आखिर क्यों प्रमोट कर रहा है बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व?

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एक वक्त में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) काफी पसंद थे. लेकिन अब लग रहा है कि शाह और मोदी के दरबार में देवेंद्र फडणवीस की हैसियत कम हो रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में पिछली कुछ घटनाओं का विश्लेषण करें तो यह बात पूरी तरीके से साफ हो जाती है.
जो दिखाई दे रहा है उसके अनुसार महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के विरोधियों का कद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने बढ़ाया है और इसे लेकर अंदर खाने चर्चा है कि, आखिर ऐसा करने के पीछे क्या रणनीति है? सबसे पहले बीजेपी ने विनोद तावडे को सचिव से प्रमोशन देकर पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया.
इसके बाद चंद्रशेखर बावनकुले को महाराष्ट्र की विधान परिषद में भेजा. अगर इसे समझना है तो थोड़ा पीछे मुड़कर देखना होगा. साल 2014 तक यानी केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने से पहले महाराष्ट्र में गोपीनाथ मुंडे, नितिन गडकरी और एकनाथ खडसे बड़े नेता थे. गोपीनाथ मुंडे का निधन हो गया. नितिन गडकरी केंद्रीय मंत्रीमंडल के अंदर शामिल है और खडसे महाराष्ट्र की विधानसभा में विरोधी दल के नेता थे.
2014 मे महाराष्ट्र विधानसभा जीतने के बाद जब बीजेपी और शिवसेना की सरकार बनी तो खडसे मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. लेकिन फडणवीस मुख्यमंत्री बन गए और खडसे को मंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा. लेकिन इसके कुछ ही समय बाद खडसे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और देवेंद्र फडणवीस ने उनका इस्तीफा ले लिया.
एकनाथ खडसे को 1 साल के अंदर ही क्लीन चिट भी मिल गई, लेकिन फडणवीस ने उन्हें मंत्रिमंडल में वापस नहीं लिया. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खडसे को टिकट ही नहीं दिया. ऐसा कहा जाता है कि देवेंद्र फडणवीस ने ही उन्हें किनारे लगाया. कहा जाता है कि देवेंद्र फडणवीस का कद इतना ऊंचा हो गया था कि 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के दौरान नितिन गडकरी भी अपने करीबियों को टिकट नहीं दिला पाए थे.
गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे को भी देवेंद्र फडणवीस से सियासी अदावत के चलते प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं मिल पाया था. लेकिन बीजेपी ने पंकजा की नाराजगी को समझते हुए उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाने के साथ ही मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य के प्रभारी भी बनाया है. बीजेपी के महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर होने के बाद पंकजा मुंडे, एकनाथ खडसे, चंद्रशेखर बावनकुले आदि ने बगावती सुर बुलंद किए थे. लेकिन हाईकमान ने तब मामला शांत करा दिया था.
लेकिन खडसे ने अक्टूबर 2020 में बीजेपी छोड़ दी और वह एनसीपी में शामिल हो गए. खडसे राज्य में ओबीसी आबादी का एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं. निश्चित रूप से बीजेपी को इस बात का एहसास हुआ कि उनके जाने और पंकजा मुंडे सहित बाकी नेताओं की नाराजगी से उसे भारी पड़ सकती है. बीजेपी को इस बात का भी एहसास हो रहा है कि तावडे और बावनकुले का टिकट काटा जाना गलत था.
महाराष्ट्र में बस कुछ ही महीने बाद बीएमसी के चुनाव होने वाले हैं और विधानसभा चुनाव के बाद इस चुनाव को सबसे बड़ा चुनाव माना जाता है महाराष्ट्र के अंदर. बीजेपी ने जिस तरह देवेंद्र फडणवीस के विरोधियों का सियासी कद बढ़ाया है, उससे लगता है कि पार्टी 2024 के विधानसभा चुनाव में देवेंद्र फडणवीस को चेहरा नहीं बनाना चाहती है.
बताया जाता है कि राव साहब दानवे को देवेंद्र फडणवीस ने किनारे लगाने की कोशिश की थी लेकिन दानवे मोदी सरकार में मंत्री हैं. महा विकास अघाडी के तमाम नेता लगातार इस बात को कहते हैं कि वह 25 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता में रहेंगे. ऐसे में बीजेपी हाईकमान महाराष्ट्र जैसे अहम राज्य की सत्ता से खुद को लंबे वक्त तक दूर नहीं रखना चाहता है और अपनी गलतियों को सुधारते हुए उसने उन बड़े नेताओं को अहमियत देना शुरू कर दिया है, जिन्हें देवेंद्र फडणवीस के राज में दरकिनार कर दिया गया था.
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