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जामिया से JNU आते-आते क्यों बदली दिल्ली पुलिस की रणनीति?

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देश की राजधानी दिल्ली. दुनिया भर में मशहूर यूनिवर्सिटी JNU. इसी JNU में सैकड़ों की तादाद में नकाबपोश घुसते हैं. जो सामने आता है उसी को पीटते हैं. हॉस्टल के कमरों में घुसकर मारपीट करते हैं. शिक्षकों पर हमला करते हैं.

पहले तो पुलिस इन हमलावरों को रोक नहीं पाती है और फिर हमले के 24 घंटे बाद भी जेएनयू को जंग का मैदान बनाने वाले किसी एक शख्स को भी गिरफ्तार नहीं कर पाती.  तो फिर दिल्ली की पुलिस कितनी स्मार्ट है और अपने देश में किसका रूल है? JNU से पढ़ाई करने वाले देश की वित्त मंत्री और विदेश मंत्री कह रहे हैं कि JNU से जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं वो भयावह हैं…तो क्या दिल्ली पुलिस के पास केंद्रीय मंत्रियों की चिंता का भी कोई जवाब नहीं है.

JNU छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष का आरोप है कि छात्रों ने मदद के लिए पुलिस को फोन किया था, लेकिन पुलिस दो घंटे बाद आई. पुलिस का जवाब है कि वो तो तुरंत पहुंच गई थी. लेकिन जब पुलिस तुरंत पहुंच गई थी तो मारपीट की गवाही देती तस्वीरें सोशल मीडिया पर क्यों तैर रही हैं? पुलिस हिंसा को क्यों नहीं रोक पाई? कुछ वीडियो तो इसी बात की गवाही दे रहे हैं. JNU के गेट पर स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव के साथ बदसलूकी हुई, उन्हें धक्का दिया गया लेकिन पुलिस वाकई में मूकदर्शक बनी रही. भाषा की रिपोर्टर कुमारी स्नेहा का आरोप है कि JNU के मेन गेट पर जब उन्होंने बैरिकेड की फोटो लेने की कोशिश की तो अचानक 40-50 लोग आ गए और पूछताछ करने लगे. स्नेहा ने अपना परिचय भी बताया, आई कार्ड दिखाया, लेकिन भीड़ उनसे बदसलूकी करती रही. स्नेहा को लात भी मारी गई और ये सब पुलिस के सामने हो रहा था.

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अब जरा कैंपस के अंदर की बात करते हैं. पुलिस कहती है कि कैंपस के अंदर की सुरक्षा पुलिस की जिम्मेदारी नहीं. तो सवाल ये है कि जामिया में पुलिस किस जिम्मेदारी के तहत घुसी थी? जामिया केस में पुलिस का दावा था कि बाहरी प्रदर्शनकारियों का पीछा करते हुए पुलिस जामिया में घुस गई. तो यहां भी ऐसा करने में दिल्ली पुलिस को किसने रोका था.

आरोप लग रहे हैं JNU में ABVP के छात्रों ने मारपीट की. आरोप लग रहे हैं कि JNU पर लेफ्ट विरोधी ताकतों ने हमला किया और पुलिस इन्हें बचा रही है.

नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया है कि JNU पर हमला नाजी शासन की याद दिला रहा है. आरोप ABVP का भी है. उसका कहना है कि मारपीट लेफ्ट से जुड़े छात्रों ने ही की है. इन तमाम आरोपों में कितनी सच्चाई है, ये जांच का विषय है लेकिन इतना तो तय है कि देश की राजधानी के एक प्रीमियम शिक्षण संस्थान और उससे पहले जामिया यूनिवर्सिटी में रात के अंधेरे में जिस तरह से कोहराम मचा है, उससे सवाल पैदा हो गया है कि यहां कानून का राज है या जंगल राज?

इस पूरे हालात को देखकर टीवी पर एक विज्ञापन याद आ रहा है….इस शहर जाने को ये हुआ क्या, कहीं राख है तो कहीं धुआं-धुआं. ये विज्ञापन इसलिए भी याद आ रहा है क्योंकि JNU अकेली जगह नहीं है जहां जंग छिड़ी हुई है. पूरे यूपी में 31 जनवरी तक धारा 144 लागू है. वहां CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले दसियों लोग मारे गए हैं. इस कोहराम के लिए जिम्मेदार कौन है? यूपी में तो यहां तक आरोप लगे कि पुलिस ने लोगों के घर में घुस-घुसकर तोड़फोड़ की.

पुलिस पर लग रहे आरोप झूठे भी हैं तो पुलिस और उनके हुकमरानों पर इतनी आंच तो आएगी ही कि वो शांति कायम नहीं रख पाए.

दिल्ली पुलिस केंद्र के जिम्मे है. जिस केंद्र में बीजेपी है. यूपी में भी बीजेपी की सरकार है. ये वही बीजेपी है जिसके रहनुमाओं ने देश से लेकर विदेश तक हुंकार भरा है कि देश में सब अच्छा है. एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने इसी पर कमेंट किया है- अब तो इस भुलावे में मत रहिए कि सब अच्छा है.

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Thought of Nation राष्ट्र के विचार
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