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यह क्या माजरा है या फिर पूरा झोल है?

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किसान आंदोलन के बाद इस समय अगर कोई सबसे बड़ा मुद्दा देश के अंदर बना हुआ है तो, वह है महंगाई का. पेट्रोल डीजल और गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं. पेट्रोल पंपों पर 20-30₹ तक का जो पेट्रोल डलवाते थे, वह अब दिखाई नहीं दे रहे हैं.
पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतों का असर दूसरी वस्तुओं की महंगाई पर भी पड़ रहा है. किसानों के आंदोलन से अभी यह सरकार उबर भी नहीं पाई है, किसान देश के अलग-अलग राज्यों में अभी पंचायत कर ही रहे हैं, इस बीच पेट्रोल और डीजल तथा गैस की बढ़ी हुई कीमतों ने सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है.
हर कोई मोदी सरकार से सवाल कर रहा है कि, जब कच्चे तेल की कीमत 104$ बैरल थी तो मनमोहन सरकार 72 रुपए लीटर पेट्रोल बेच रही थी. आज कच्चे तेल की कीमत सिर्फ 63$ बैरल है तो मोदी सरकार 90 से 100 रुपए तक का पेट्रोल बेच रही है. ये क्या माजरा है?
दिन-रात हिंदू मुस्लिम और पाकिस्तान के नाम पर अपने कार्यक्रमों के माध्यम से धार्मिक जाहर घोलकर मोदी सरकार को जनता के सवालों से बचाने वाली मीडिया अभी भी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. अभी भी जिस तरीके की डिबेट पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतों पर होनी चाहिए वह दिखाई नहीं दे रही है.
आम जनता के साथ इस वक्त ना ही सरकार खड़ी है और ना ही मीडिया खड़ी है. आम जनता की सुध लेने वाला कोई नहीं है. हालांकि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार किसानों की मांगों के साथ-साथ पेट्रोल और डीजल तथा गैस की बढ़ी हुई कीमतों पर आवाज उठा रहे हैं.
देखना यह होगा कि हर चीज के लिए कांग्रेस की सरकारों को जिम्मेदार ठहराने वाली मोदी सरकार, आखिर पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतें वापस लेती है या फिर कोई नया मुद्दा लाकर जनता को ही जनता के मुद्दों से अपनी आदत अनुसार फिर से भटका देती है.
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