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क्या है जनता के इस गुस्से के मायने?

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हाल के दिनों में नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों ने मारपीट का आरोप लगाया है. एनडीएए (NDA) के ये विधायक और मंत्री आरजेडी (RJD) समर्थकों पर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत में माजरा कुछ और ही है.
विहार विधानसभा चुनाव 2020 की सुगबुगाहट के बीच नेताओं के साथ मारपीट की धटनाओं में भी तेजी आ गई है. नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों को बिहार के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है. आरजेडी (RJD) के भी कई विधायकों के साथ इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार की जनता इस बार इतना उग्र क्यों है?
बिहार में अगर विकास हुआ है तो फिर मंत्रियों और विधायकों का जनता विरोध क्यों कर रही है? क्यों इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव बदला-बदला सा नजर आ रहा है? बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा अब किसी भी वक्त हो सकती है. इधर जनता के बढ़ते विरोध से एनडीए गठबंधन में खासी घबराहट हो गई है.
बता दें कि विकास के मुद्दे पर बिहार की जनता तीखे सवालों से परहेज करती रही है, क्योंकि बिहार में हमेशा से ही विकास की नहीं जाति पर बात होती है, लेकिन इस बार जनता सत्ताधारी दल के विधायकों और मंत्रियों से विकास पर ही सवाल पूछ रही है. सोशल साइट्स पर एनडीए विरोधी गतिविधियों ने बीजेपी को सकते में डाल दिया है. हाल के दिनों में नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों ने मारपीट का आरोप लगाया है.
एनडीए के ये विधायक और मंत्री आरजेडी समर्थकों पर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत में नजारा कुछ और ही है. पिछले दिनों बिहार के औरंगाबाद जिले के गोह विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक मनोज शर्मा और बिहार सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता प्रेम कुमार का गोह के एक गांव में ग्रामीणों ने जोरदार विरोध किया. मंच पर बैठे विधायक और मंत्री के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई. इस सभा में सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी हुई.
इसी तरह कुछ दिन पहले ही बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री शैलेश कुमार को उनके विधानसभा क्षेत्र जमालपुर में लोगों ने विरोध किया. एक दिन पहले ही शिवहर के जेडीयू एमएलए सरफुद्दीन का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में जनता विधायक जी खदेड़ रही है. लोगों का आरोप है कि पांच साल तक विधायक जी नहीं आए अब चुनाव है तो कह रहे हैं कि पिछले पंद्रह सालों से यहां विकास की गंगा बह रही है.
बिहार में सत्ताधारी दलों के विधायकों और मंत्री को खदेड़ने का सिलसिला लगातार जारी है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ सत्ताधारी दलों के ही विधायकों को खजेड़ा जा रहा है. आरजेडी के भी कई विधायकों को जनता खदेड़ने के साथ-साथ तीखे सवाल पूछ रही है. कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने बिहार के विकास की पोल खोल दी है. बिहार के 50 प्रतिशत से भी ज्यादा युवाओं के पास रोजगार नहीं है. 2005 मे नीतीश कुमार ने दावा किया था कि राज्य में इतना विकास करेंगे कि राज्य के लोग दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए नहीं जाएंगे.
लेकिन 15 सालों के बाद स्थिति और खराब हो गई है. दूसरे राज्यों में काम कर रहे लाखों मजदूर लॉकडाउन का शिकार हो गए हैं. लॉकडाउन का खामियाजा बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. लाखों प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई है. ऐसे में अगर बिहार में पिछड़े, अति पिछड़े और दलित जातियों का विकास हुआ तो ये दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में क्यों गए?
बिहार का विकास का दावा करने वाली नीतीश सरकार को ये प्रवासी मजदूर ही राज्य के विकास में अपना योगदान देते रहे हैं. ज्यादातर प्रवासी बिहारी हर महीने 3 से 4 हजार रूपया अपने घर भेजता है. घर के सदस्य इस पैसे को बाजार में खर्च करता है, इससे राज्य के विकास में गति आती है. दूसरे राज्यों में कामकाजी बिहारी अपने राज्य में सलाना 30 हजार करोड़ रुपया भेजता है.
यही नहीं बिहार के बहुत सारे लोग खाडी के देशों में भी श्रम कर रहे हैं. बाहरी मुल्कों में काम करने वाले बिहारी सलाना अपने राज्य में लगभग 7 हजार करोड़ रुपये भेज रहे हैं, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की मार इसपर भी पड़ी है. बता दे कि बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज है. राज्य के मुख्यमंत्री राज्य की जनता से राज्य में नए प्रोजेक्ट चालू किये जाने को लेकर लेकर लगातार वादे कर रहे हैं.
लेकिन गुजरे पांच सालों में 1.25 लाख करोड़ रुपए के पैकेज को लेकर जो वादे किये गये थे उनका क्या हुआ? इसपर पार्टी कुछ साफ-साफ बता पाने की स्थिति में नहीं लग रही. पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1.25 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान किया था. लेकिन इसमें से कितने पैसे खर्च किये गये इसको लेकर अभी स्थित साफ नहीं है. हालांकि राज्य के मुखिया नीतीश कुमार राज्य में नए प्रोजेक्ट्स को लेकर लगातार नए वादे कर रहे हैं.
अगस्त 2015 में जब पीएम मोदी ने बिहार के लिए स्पेशल पैकेज का एलान किया था तब उस वक्त नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ चुनाव में उतरे थे और उन्होंने उस वक्त इस पीएम के इस पैकेज पर तंज करते हुए कहा था कि इसमें कुछ नया नहीं है. उस वक्त एनडीए चुनाव हार गई थी तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि जो पैकेज पीएम ने बिहार के लिए ऐलान किया है वो जारी होगा.
जब मार्च 2017 में ललन सिंह जल संसाधन मंत्रालय देख रहे थे तब उन्होंने बिहार विधानसभा में कहा था कि पीएम ने जिस पैकेज का ऐलान किया है उसमें से सिर्फ 28,117 करोड़ रुपए ही मिले हैं. इस साल विधानसभा चुनाव से पहले अभी नीतीश कुमार ने 100 करोड़ रुपए के सड़क विकास प्रोजेक्ट का ऐलान किया है. कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोसी रेल महासेतु का उद्घाटन किया था.
अब विपक्ष इस मुद्दे पर सवाल उठा रहा है कि साल 2015 में पीएम द्वारा जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान किया गया था उसका क्या हुआ? विपक्ष का कहना है कि क्या पुराने पैकेज पर चादर डाल दिया गया? कई अर्थशास्त्री भी 2015 के बिहार आर्थिक पैकेज को लेकर यह राय रखते हैं कि किस फंड के जरिए यह पैकेज दिया जा रहा है इसके बारे में साफ-साफ नहीं बताया गया था.

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